मिल के शुरू होने से स्थानीय दुकानदारों में जगी आस, मिल बंद होने से बाजार बुरी तरह से हुआ था प्रभावित

मिल में कार्यरत कर्मचारी वेतन की प्राप्ति के बाद अपनी आम दिनचर्या के साथ ही शौक की चीजों की खरीद के लिए स्थानीय बाजार का रुख करता था । जिसकी वजह से बाजार में भी रौनक बनी रहती थी।

By Prashant MishraEdited By: Publish:Thu, 10 Jun 2021 05:58 PM (IST) Updated:Thu, 10 Jun 2021 05:58 PM (IST)
मिल के शुरू होने से स्थानीय दुकानदारों में जगी आस, मिल बंद होने से बाजार बुरी तरह से हुआ था प्रभावित
स्थानीय दुकानदारों में अपने कारोबार को लेकर उत्साह देखने को मिल रही है।

जागरण संवाददाता, सितारगंज : करीब चार वर्ष पूर्व घाटे में होने की वजह से सितारगंज स्थित दी किसान सहकारी चीनी मिल को बंद कर दिया गया था। मिल पर ताले लगने की वजह से एक तरफ जहां मिल में काम करने वाले कर्मचारियों के सामने परेशानियां खड़ी हो गई थी वही दूसरी तरफ स्थानीय बाजार पर भी इसका बुरा असर पड़ा था। बड़े से लेकर छोटे दुकानदारों की आमदनी मिल के बंद होने के बाद मानो न के बराबर ही रह गई थी। लेकिन एक बार फिर से मिल के शुरू होने से स्थानीय दुकानदारों में अपने कारोबार को लेकर उत्साह देखने को मिल रही है।

मिल के पुराने कर्मचारियों ने बताया कि पूर्व में करीब सात सौ कर्मचारी मिल में कार्य किया करते थे। इन कर्मियों का हर माह का वेतन करीब तीन करोड़ रुपये के आसपास था। वही मिल में कार्यरत कर्मचारी वेतन की प्राप्ति के बाद अपनी आम दिनचर्या के साथ ही शौक की चीजों की खरीद के लिए स्थानीय बाजार का रुख करता था। जिसकी वजह से बाजार में भी रौनक बनी रहती थी। लेकिन मिलकर बंद होने के बाद यह सिलसिला पूरी तरह थम सा गया। जिससे बाजार भी बुरी तरह टूट गया। चीनी मिल बाजार स्थित मिठाई विक्रेता खेमकरण ने कहा कि मिल के बंद होने के बाद उनकी आमदनी मानो न के बराबर हो गई है।

पहले की अपेक्षा दुकान के कामकाज को कम करते हुए बस जीविका का पालन करने के लिए चार सालों से दुकान चला अपना और अपनों का पेट भर रहे हैं। उन्होंने बताया कि दुकान अपनी होने की वजह से उनका तो गुजारा चल गया लेकिन जो छोटे व्यापारी किराए पर दुकान लेकर व्यापार किया करते थे। वह कुछ ही महीनों में दुकान छोड़ रोजी रोटी कमाने के लिए दूसरे क्षेत्रों में काम करने को चले गए। क्योंकि मिलकर बंद हो जाने के बाद से दुकानदारों के सामने दुकान का किराया तक निकालना भी मुश्किल हो गया था। खेमकरण ने कहा कि मिलकर दोबारा शुरू होने से एक बार फिर हम सभी व्यापारियों में व्यापार को लेकर सकारात्मक आस जगी है। उम्मीद है कि एक बार फिर से मिल के साथ ही बंद पड़ी बाजार फिर से गुलजार हो उठेगी।

एरियर भुगतान दिलाने की मांग

सेवानिवृत्त कर्मियों ने गन्ना एवं चीनी उद्योग मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद को मांग पत्र सौंपा। हरीश चंद्र जोशी, खिलानंद भट्ट, आनंद सिंह, आनंद चौहान, पूरन नाथ गोस्वामी, अमरजीत सिंह, हरदीप सिंह, जसवंत सिंह ने कहा कि सेवानिवृत्त होने के बाद उनके खातों में बीआरएस ग्रेजुएटी अवकाश नकदीकरण पीएफ की धनराशि भेज दी गई। लेकिन नियमानुसार एरियर का भुगतान नहीं किया गया है। इस कारण उनके परिवारों की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई है, वे बच्चों को शिक्षा नहीं दिला पा रहे हैं। इसके अलावा डेलीवेज पर काम करने वाले करीब 40 कर्मचारियों को बीआरएस नहीं दिया गया है।

सोसाइटी कर्मियों का लटका है वेतन

गन्ना विकास कार्यालय के कर्मचारियों का वेतन लंबे अरसे से लटका हुआ है। इसके अलावा मिलो से मिलने वाला कमीशन भी कर्मचारियों को नहीं दिया गया है। गन्ना एवं चीनी उद्योग मंत्री ने कहा कि जल्द ही समस्याओं का समाधान कर दिया जाएगा।

पुरानी मिल को आधुनिक मशीनों की आस

वर्ष 1981 के दशक में स्थापित हुई चीनी मिल को अब आधुनिक तकनीक से लैस मशीनों की आस है। जिससे उसकी गन्ने की पेराई की क्षमता बढ़ सके। वर्तमान में मिल की पेराई क्षमता पड़ोसी राज्य में संचालित मेल से करीब 75 फीसद कम है। सितारगंज चीनी मिल एक बार में 25 हजार कुंटल गन्ने की पेराई कर सकती है जबकि पड़ोसी राज्य के जिले में स्थित पीलीभीत मील की क्षमता करीब एक लाख कुंतल गन्ने की है।

मिल के कर्मचारियों ने बताया कि सितारगंज के अलावा मेला घाट, नानकमत्ता, अमरिया, बरा, बरी, चोरगलिया, खटीमा, आदि क्षेत्रों से मिल में गन्ना लाया जाता था। मिल की प्रतिदिन 25 हजार क्विंटल गन्ने की पेराई क्षमता थी। मिल बंद होने से कर्मचारी बेरोजगार हो गए।

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