घोटाले की स्वतंत्र जांच की मांग से क्यों डर रहा ऊर्जा निगम, जानिए क्या है मामला
ऊर्जा निगम के 16 डिवीजनों में सात साल पहले हुए घोटाले का जिन्न आज तक बाहर नहीं आ सका है। शिकायतकर्ता ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर पूरे प्रकरण की जांच किसी स्वतंत्र जांच एजेंसी से कराए जाने की मांग की थी।
हल्द्वानी, जागरण संवाददाता : ऊर्जा निगम के 16 डिवीजनों में सात साल पहले हुए घोटाले का जिन्न आज तक बाहर नहीं आ सका है। शिकायतकर्ता ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर पूरे प्रकरण की जांच किसी स्वतंत्र जांच एजेंसी से कराए जाने की मांग की थी। तब ऊर्जा निगम ने अपने शपथपत्र में जांच स्वंय करने की बात की। आखिर ऊर्जा निगम स्वतंत्र एजेंसी की जांच से बचना क्यों चाहता है।
वर्ष 2005 से 2013 के मध्य देहरादून, हरिद्वार व उधमसिंहनगर के 16 डिवीजनों में हुए इस बड़े घोटाले में बिल्डरों-कॉलोनाइजरों के साथ मिलकर उत्तराखंड के राजकोष को करोडों-अरबों रुपए की चपत लगाने के आरोप ऊर्जा निगम के अधिकारियों पर लगे हैं। विभागीय जांच मात्र एक काशीपुर डिवीजन में की गई, जिसकी रिपोर्ट को मुख्यालय द्वारा ही नकारा जा चुका है। शेष डिवीजनों में आजतक कोई जांच नही की गई है।
अपनी जनहित याचिका में गौलापार हल्द्वानी निवासी रवि शंकर जोशी ने उक्त प्रकरण में जांच एक स्वतंत्र जांच एजेंसी से कराए जाने की मांग की गई है। जनहित याचिका पर हाईकोर्ट में दिए अपने शपथपत्र में ऊर्जा निगम अब स्वयं जांच करने पर जोर दे रहा है। ऊर्जा निगम के एमडी ने दिनांक 16 सितंबर 2020 के अपने एक आदेश में चार सदस्यों की एक कमेटी गठित की गई है। जो केवल उधमसिंहनगर जिले के डिवीजनों की जांच करेगी। देहरादून और हरिद्वार जनपदों के विभिन्न डिवीजनों की जांच पर ऊर्जा निगम द्वारा चुप्पी साध ली गई है।
याचिकाकर्ता रविशंकर जोशी ने बताया कि उत्तराखंड में ऊर्जा निगम मुख्यमंत्रियों के अधीन ही रहा है। राज्य सरकार के प्रभाव से मुक्त जांच एजेंसी से ही इसकी निष्पक्ष जांच संभव है। अपने भ्रष्ट अधिकारियों को बचाने के लिए ऊर्जा निगम अब जांच का दिखावा मात्र कर रहा हैं।