पहाड़ में पाले से खराब हो रहीं सब्जियां, काश्तकार कर रहे मुआवजे की मांग

पाले से सब्जी पौधों को खासा नुकसान हुआ है। जिला मुख्यालय समेत लोहाघाट पाटी एवं बाराकोट में 80 फीसदी काश्तकार सब्जी उत्पादन करते हैं जिनमें से 40 फीसद लोग सब्जी उत्पादन को व्यवसाय के रूप में अपनाते हैं।

By Prashant MishraEdited By: Publish:Tue, 19 Jan 2021 03:55 PM (IST) Updated:Tue, 19 Jan 2021 03:55 PM (IST)
पहाड़ में पाले से खराब हो रहीं सब्जियां, काश्तकार कर रहे मुआवजे की मांग
काश्तकारों के लिए पाला आर्थिक संकट का कारण बन गया है।

जागरण संवाददाता, चम्पावत : जिले के पर्वतीय क्षेत्रों में पिछले एक माह से गिर रहा पाला अब सब्जी उत्पादक काश्तकारों के लिए घाटे का कारण बन गया है। पाले से सब्जी पौध पीले पड़ गए हैं जिससे उन्हें बाजार भाव नहीं मिल पा रहा है। खासकर पालक, राई, मेथी और धनियां की पत्तियां झुलस गई हैं। पॉलीहाउस में लगाई गई सब्जियां ही पाले की मार से बची हैं, लेकिन जिले में पॉलीहाउस में खेती करने वाले काश्तकारों की संख्या काफी कम है।

गत वर्ष की तुलना में इस बार पाला ज्यादा गिर रहा है। नवंबर माह से ही जिले के पर्वतीय क्षेत्रों में पाला गिरने की शुरुआत हो गई थी लेकिन दिसंबर दूसरे पखवाड़े से अत्यधिक पाला गिरना शुरू हो गया, जिसका सिलसिला अभी तक जारी है। पाले से सब्जी पौधों को खासा नुकसान हुआ है। जिला मुख्यालय समेत लोहाघाट, पाटी एवं बाराकोट में 80 फीसदी काश्तकार सब्जी उत्पादन करते हैं, जिनमें से 40 फीसद लोग सब्जी उत्पादन को व्यवसाय के रूप में अपनाते हैं।

सब्जी बेचकर आजीविका चलाने वाले काश्तकारों के लिए पाला आर्थिक संकट का कारण बन गया है। प्रतिवर्ष सीजन में 30 से 40 हजार रुपये की सब्जी बेचने वाले सुईं के काश्तकार उर्बादत्त चौबे ने बताया कि खुले खेतों में लगाई गई सब्जी से उन्हें इस बार कोई मुनाफा नहीं हुआ। पाला गिरने से पौधों की पत्तियां झुलस गई हैं। बताया कि दो पॉलीहाउस में उन्होंने पालक और टमाटर लगाया है जो काफी अच्छा हुआ है। अब तक पांच हजार रुपये का पालक बेच भी चुके हैं। चम्पावत के खर्क निवासी काश्तकार सुरेश जोशी, विक्रम सिंह का भी यही हाल है, दोनों काश्तकार सीजन में 20 से 25 हजार की मेथी और पालक बेचते थे लेकिन इस बार पाले से हुए नुकसान के कारण एक रूपये की आमदनी नहीं कर पाए हैं। रमेश चतुर्वेदी, मुन्नी खर्कवाल, उमेश चौबे, हरीश चौबे, महेश सुतेड़ी ऐसे काश्तकार  हैं जो खाने भर के लिए सब्जी उत्पादन करते थे, लेकिन इस बार उन्हें भी बाजार से खरीदकर हरी सब्जी खानी पड़ रही है।

एडीओ उद्यान भूपेंद्र प्रकाश जोशी ने बताया कि पौधों को पाले से बचाने के लिए शाम के समय सिंचाई या फिर उन्हें प्लास्टिक की पन्नी से ढ़कने के अलावा कोई उपाय नहीं है। सिंचाई सुविधा का अभाव और बड़े क्षेत्र में सब्जी उत्पादन करने वाले काश्तकारों के लिए यह संभव नहीं है। इस बार पाले से सबसे अधिक नुकसान सब्जी उत्पादकों को हुआ है।

सब्‍जी उत्‍पादक जगत प्रकाश चतुर्वेदी ने बताया कि इस बार पिछले साल की तुलना में पाला ज्यादा गिर रहा है। मैंने एक नाली क्षेत्र में पालक, मेथी, धनिया, राई, लहसुन, प्याज, मूली आदि सब्जियां लगाई थी लेकिन पाले से उनकी पत्तियां पीली पड़ चुकी हैं। इस बार खाने भर के लिए सब्जी नहीं निकल पा रही है। उद्यान विभाग को इसका सर्वे कर काश्तकारों को मुआवजा देना चाहिए।

वहीं, रमेश पुनेठा पाले ने इस बार सारी मेहनत पर पानी फेर दिया है। गत वर्ष तक पालक, प्याज की पत्तियां और मेथी बेचकर सीजन में 20 हजार रुपया कमा लेता था, लेकिन अभी तक सब्जी बाजार नहीं पहुंचा पाया हूं। पाले से पत्तियां गिरने लगी हैं और पौधों की ग्रोथ रुक गई है।

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