जंगलों में रहने वाला वनराजि समाज मुख्‍यधारा से जुड़कर अब अपने अधिकारों के लिए लड़ रहा nainital news

मुख्य धारा से हट कर जंगलों में जीवन जीने वाला वनराजि समाज अपने अधिकारों के संघर्ष के लिए सक्षम हो चुका है। मुख्य धारा से जुडऩे के लिए उसका संघर्ष चरम पर है।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Tue, 21 Jan 2020 06:12 PM (IST) Updated:Wed, 22 Jan 2020 06:22 PM (IST)
जंगलों में रहने वाला वनराजि समाज मुख्‍यधारा से जुड़कर अब अपने अधिकारों के लिए लड़ रहा nainital news
जंगलों में रहने वाला वनराजि समाज मुख्‍यधारा से जुड़कर अब अपने अधिकारों के लिए लड़ रहा nainital news

पिथौरागढ़, जेएनएन : मुख्य धारा से हट कर जंगलों में जीवन जीने वाला वनराजि समाज अपने अधिकारों के संघर्ष के लिए सक्षम हो चुका है। मुख्य धारा से जुडऩे के लिए उसका संघर्ष चरम पर है। अन्य समाज के बराबर आने के लिए जागरू क हने चुका समाज अगुवाई करने में सक्षम हो चुका है।  इस समाज को यहां तक पहुंचाने के लिए दो देवियों रेनू ठाकुर और खीमा जेठी का नियोजित कार्य कारगर साबित हुआ है।

वनराजि प्रदेश की एकमात्र आदिम जनजाति

उत्त्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की सीमांत की डीडीहाट और धारचूला तहसीलों में नौ स्थानों पर वनराजि जिसे स्थानीय लोग वनरावत के नाम से जानते हैं निवास करती है। यह जनजाति प्रदेश की एकमात्र आदिम जनजाति की श्रेणी में आती है। सदियों से इस जनजाति का संबंध जंगलों से रहा और गुफाएं इनके आवास रहे। पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर यह जनजाति मुख्य धारा से न तो खुद जुड़ सकी और नहीं व्यवस्था ने इन्हें समाज से जोडऩे के लिए कदम उठाए। आजादी के बाद इन्हें वनराजि शब्द दिया गया। शिक्षा, स्वास्थ्य कुछ भी इस समाज को नहीं मिल सका। बाल मृत्युदर अधिक होने से इस जनजाति को संरक्षित श्रेणी  में रखा गया ।

रेनू ठाकुर ने समाज काे मुख्‍यधारा से जोड़ने की कोशिश

वर्ष 1993 के आसपास वनराजि समाज के बारे में एकसमाज सेवी महिला रेनू ठाकुर इनके बीच गई और इनकी बदहाली को देखते इस समाज को मुख्य धारा तक लाने का प्रयास किया। उन्होंने चार साल तक इन लोगों के बीच जाकर इनके जीवन को देखा । अर्पण संस्था बना कर  वर्ष 1997 में वनराजि के उत्थान और इनको समता दिलाने के लिए एक कार्ययोजना बनाई। वर्ष 1998 में वनराजि गांव कनतोली में बालवाड़ी खोली। जिसके माध्यम से  इनको जागरूक करने का प्रयास किया। प्रथम चरण में महिला संगठन बनाए। यह प्रयास सफल होने लगा।

महिला संगठनों के माध्‍यम से समाज के लोगाें को किया जागरूक

एक गांव में प्रयास सफल होने पर वर्ष 2000 से 2007 तक सभी नौ गांवों में बालवाड़ी खोल कर महिला संगठनों के माध्यम से जागरूक किया गया।  भूमिहीन इन परिवारों को भूमि अधिकार देने की लड़ाई जारी है। 198 परिवारों में 45 परिवारों को भूमि के पट्टे मिल चुके हैं। अन्य की कार्यवाही चल रही है। रेनू ठाकुर और खीमा जेठी का  समाज की मुख्य धारा से जोडऩे के प्रयास रंग ला चुका है। आज वनराजि समाज के लोग अपने हकों के लिए स्वयं अगुवाई करने लगे हैं। शिक्षा से दूर रहने वाले समाज की चार बालिकाएं ग्रेजुएट हो चुकी हैं। बच्चे विद्यालय जाकर पढ़ रहे हैं।

लड़ाई इस समाज के अधिकारों की थी

समाज सेविका रेनू ठाकुर ने बताया कि मेरा उद्देश्य इस निर्बोध, निरीह और विलुप्त होती जनजाति को जानकारी देकर सक्षम बनाना था। लड़ाई इस समाज के अधिकारों की थी। इसकी अगुवाई भी समाज के ही लोग करें इसका प्रयास था जो सफल रहा। सभी परिवारों को भूमि और उनके अधिकार दिला कर ही चैन मिलेगा।

वनराजियों के गांव और जनसंख्या

किमखोला, भगतिरवा, गाणागांव, कनतोली, कूटा, चौरानी , मदनपुरी, औलतड़ी, चिफलतरा, कुलेख।

कुल जनसंख्या - 693 और परिवार 198

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