उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सरकार से कहा, सिर्फ चॉपर से नहीं बुझेगी आग, साधन जुटाने होंगे
हाई कोर्ट ने जंगलों की आग का स्वत संज्ञान लेते हुए बुधवार को सुनवाई की। इस मामले में सरकार की ओर से दाखिल शपथपत्र से कोर्ट संतुष्ट नहीं हुई। कोर्ट ने विस्तृत शपथपत्र पेश करने के साथ ही पीसीसीएफ को 12 दिसंबर को वीसी के माध्यम से तलब कर लिया।
जागरण संवाददाता, नैनीताल : हाई कोर्ट ने जंगलों में लगने वाली आग का स्वत: संज्ञान लिए जाने वाली जनहित याचिका पर बुधवार को सुनवाई की। इस मामले में सरकार की ओर से दाखिल शपथपत्र से कोर्ट संतुष्ट नहीं हुई। कोर्ट ने विस्तृत शपथपत्र पेश करने के साथ ही पीसीसीएफ को 12 दिसंबर को वीसी के माध्यम से तलब कर लिया। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि बस चॉपर से जंगल की आग नहीं बुझेगी। इसके लिए साधन जुटाने होंगे।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक वर्मा की खंडपीठ में वीसी के माध्यम से पीसीसीएफ राजीव भरतरी पेश हुए। उन्होंने बताया कि कोर्ट के आदेश के बाद सरकार ने वन विभाग के खाली पदों पर भर्ती की विज्ञप्ति जारी कर दी है। दिसंबर तक भर्ती प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। इसपर कोर्ट ने पूछा कि आग बुझाने के लिए क्या सुरक्षा उपकरण लगाए हैं, जिसका जिक्र शपथपत्र में नहीं किया गया है। पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने के लिए राज्य व केंद्र सरकार से आग बुझाने को लेकर कितने बजट की मांग की गई है, इसका भी उल्लेख नहीं किया है। कोर्ट ने कहा कि हमें आने वाली पीढ़ी का ध्यान भी रखना है। बिना साधन जुटाए यह संभव नहीं है।
कोर्ट ने 2018 में इन द मैटर आफ प्रोटेक्शन आफ फॉरेस्ट एरिया फॉरेस्ट हेल्थ एंड वाइल्ड लाइफ से संबंधित मामले को जनहित याचिका के रूप में स्वत: संज्ञान लिया था। जंगलों को आग से बचाने के लिए तमाम दिशा-निर्देश जारी किए थे। 2021 में फिर अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली व राजीव बिष्ट ने मामले को मेंशन किया। उनका कहना था कि जंगल जल रहे हैं और सरकार ठोस कदम नहीं उठा रही है। उच्च न्यायालय ने 2016 में भी गाइड लाइन जारी की थी। कोर्ट ने गांव स्तर से ही आग बुझाने के लिए कमेटियां गठित करने को कहा था, जिस पर आज तक अमल नही किया गया। सरकार आग बुझाने के लिए हेलीकाप्टर का उपयोग कर रही है, उसका खर्चा बहुत अधिक है और पूरी तरह से आग भी नहीं बुझती है।