अनियोजित उत्पादन से मिट्टी की उर्वराशक्ति घटी, हरी खाद से बढ़ाएं मिट्टी की क्षमता
ढैंचा की जड़ों पर नाइट्रोजन स्थिर करने वाले जीवाणुओं की ग्रंथियां बनती हैं। ढैंचा फसल को पुष्पावस्था से पहले यानी जब पौध की अधिकतम वानस्पतिक वृद्धि हो चुकी हो उसे खेत में पलटकर सड़ा दिया जाता है। इससे मृदा के भौतिक रासायनिक तथा जैविक गुणों में गुणात्मक सुधार होता है।
जागरण संवाददाता, पंतनगर (ऊधमसिंह नगर) : हरित क्रांति से कृषि क्षेत्र में उच्च उत्पादन वाली बौनी प्रजाति की कई बीज किस्मों का विकास हुआ। रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक, खरपतवारनाशी के असंतुलित मात्रा में अधाधुंध प्रयोग से उपज में वृद्धि हुई, मगर मृदा की सेहत भी बिगड़ती गई। ऐसी स्थिति में लाभदायक सूक्षजीवों की संख्या कम होने लगी और नए-नए रोग एवं कीट भी पनपने लगे। ऐसे हालात में कुछ साल उत्पादन ठहर सा गया।
देश में कृषि क्षेत्र में काम करने वाले कृषि विद्यार्थियों के संगठन ''एग्रीविजन'' ने काेरोना काल में मृदा की उर्वरशक्ति को जैविक विधि से बढ़ाने के मकसद से देश में ''भूमि सुपोषण अभियान'' चलाया गया।इसमें किसानों को उर्वरा शक्ति के फायदे तथा जैविक विधियों का प्रायोगिक तौर पर प्रदर्शन व जानकारी दी जा रही है।
एग्रीविजन उत्तराखंड में पंत विवि में किसानों को ढैंचा के प्रक्षेत्र पर हरी खाद बनाने की विधि, इससे फसल व मृदा को होने वाले फायदे की जानकारी दी गई। गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय में बीज एवं प्रक्षेत्र के संयुक्त निदेशक व एग्रीविजन के राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सदस्य प्रोफेसर प्रभा शंकर शुक्ला ने बताया कि हरी खाद की फसलों में सनई के बाद ढैंचा का प्रमुख स्थान है। इसे ऊसर तथा लवणीय मिट्टी, कम या अधिक वर्षा में लगाई जा सकती है। हालांकि धान के लिए यह ज्यादा उपयुक्त खाद है।
ढैंचा की जड़ों पर नाइट्रोजन स्थिर करने वाले जीवाणुओं की ग्रंथियां आकार में बड़ी तथा स्वस्थ बनती हैं। ढैंचा फसल को पुष्पावस्था से पहले यानी जब पौध की अधिकतम वानस्पतिक वृद्धि हो चुकी हो उसे खेत में पलटकर सड़ा दिया जाता है। इससे मृदा के भौतिक, रासायनिक तथा जैविक गुणों में गुणात्मक सुधार होता है। पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व मृदा को आसानी से मिल जाते हैं। हरी खाद के प्रयोग से खाद का प्रयोग कम हो जाती है। जिससे फसल लागत कम हो जाती है। फसल उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती है।
ढैंचा की फसल से 20-25 टन हरा पदार्थ तथा 85-105 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर मृदा को प्राप्त हो सकती है। प्रोफेसर शुक्ला ने बताया कि 15 जून तक अभियान चलाया जा रहा है। जिससे कृषि विद्यार्थी किसानों के लिए कुछ सकारात्मक प्रयास के रूप में प्रत्यक्ष सहयोग करके लॉकडाउन अवधि का सदुपयोग कर सकें। तथा विद्यार्थियों को उनके विषय का प्रायोगिक अनुभव भी मिल सके।
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