World Elephant Day 2021 : पालतू हाथियों के रखे गए हैं अनोखे नाम, किसी का नाम अलबेली तो किसी का आशा

World Elephant Day 2021 कॉर्बेट टाइगर रिजर्व यानी सीटीआर में हाथियों का अपना अलग ही संसार है। बाघों के संरक्षण के लिए विख्‍यात सीटीआर में 1226 जंगली हाथियों की संख्‍या जबकि 11 हाथी कॉर्बेट प्रशासन ने गश्‍त और अन्‍य कारणों से खुद पाले हुए हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Thu, 12 Aug 2021 10:13 AM (IST) Updated:Thu, 12 Aug 2021 10:15 AM (IST)
World Elephant Day 2021 : पालतू हाथियों के रखे गए हैं अनोखे नाम, किसी का नाम अलबेली तो किसी का आशा
World Elephant Day 2021 : कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में पालतू हाथियों के रखे गए हैं अनोखे नाम

रामनगर, जागरण संवाददाता : World Elephant Day 2021 : कॉर्बेट टाइगर रिजर्व यानी सीटीआर में हाथियों का अपना अलग ही संसार है। बाघों के संरक्षण के लिए विख्‍यात सीटीआर में 1226 जंगली हाथियों की संख्‍या, जबकि 11 हाथी कॉर्बेट प्रशासन ने गश्‍त और अन्‍य कारणों से खुद पाले हुए हैं। पालतू हाथि‍यों की देखभाल और उन्‍हें ट्रेंड करने लिए बड़ी तादाद में महावत और कर्मचारी रखे गए हैं। कॉर्बेट प्रशासन ने अपनी सभी पालतू हाथियों को एक नाम दिया है। इनमें आशा, अलबेली, पवनपरी, लक्षमा, गोमती, सोनाकली, कपिला, कंचभा, तुंगा, गंगा, शिवगंगे मादा हाथियों के बीच रामा, गजराज, भीष्मा, करना व सावन नर हाथी शामिल हैं। दो अगस्त को चौथे साल में प्रवेश कर चुके सावन को छोड़कर सभी हाथी प्रशिक्षित हैं। कार्बेट प्रशासन ने अब सावन को भी प्रशिक्षण देने की शुरुआत कर दी है।

जंगली हाथियों से बना रहता है खतरा

कॉर्बेट नेशनल पार्क में पालतू और जंगली हाथियों के बीच टकराव का खतरा अक्‍सर बना रहता है। जंगल में गश्त और चारे के लिए जाते समय पालतू हाथियों का जंगली टस्कर से विशेष ध्यान रखना होता है। महावत शरीफ खान बताते हैं कि जंगली हाथियों के झुंड दिखने पर पालतू हाथी को खतरा नहीं रहता है। लेकिन अकेला टस्कर दिख जाए तो पालतू हाथी को वापस लाना पड़ता है। कई बार टस्कर हाथी द्वारा पालतू हाथियों पर हमले की घटनाएं हो चुकी है।

तीन हाथियों को कार्बेट ने किया रिटायर

उतराखंड में पहली बार इस साल टाइगर शिफ्टिंग की सफल योजना में भी आशा, अलबेली, पवनपुरी व लक्षमा का योगदान रहा। चारों हथिनियों को पुराना अनुभव होने की वजह से ही रेस्क्यू टीम द्वारा इनकी मदद ली गई। हथिनियों ने बाघ को ढूंढऩे में काफी मदद की। बाघ के सामने निडरता से खड़ी रहने वाली इन हथिनियों पर बैठकर ही वरिष्ठ वन्यजीव चिकित्साधिकारी दुष्यंत शर्मा ने दो बाघों को टे्रंकुलाइज किया। हालांकि आशा को छोड़कर इन तीनों हथिनियों को अब विभाग ने 60 साल आयु पूरी होने पर रिटायर कर दिया है। अब इन हथिनियों को विभाग ने कालागढ़ कैंप में रखा है।

जैवविविधता में भी योगदान

सीटीआर के एसडीओ आरके तिवारी बताते हैं कि वन्य जीवों की सुरक्षा के अलावा जंगल को बचाने में भी हाथी योगदान देते हैं। पेड़ व टहनी होने से उनके नीचे उगने वाले पौधे या अन्य खरपतवार बड़ी नहीं हो पाती है। हाथी पेड़ से पत्ते व बीज खाता है। जब वह जंगल में गोबर करते हुए जाता है तो साथ में बीज भी बाहर आते हैं। यही बीज जगह-जगह जंगल में उगकर हरियाली बढ़ाते हैं।

खानपान में पौष्टिकता का रखा ख्याल

कार्बेट पार्क के वार्डन आरके तिवारी बताते हैं कि जंगली हरा चारा, आटा, मक्के के आटे की रोटियां, काला चना, गुड़, नमक के अलावा मिनरल व मल्टी विटामिन सीरप हाथियों को दिया जाता है। गर्मी व सर्दी में खाने की डाइट में बदलाव किया जाता है। गन्ने के अलावा रोणी के पत्ते हाथी को यहां पर्याप्त उपलब्ध रहते हैं।

काफी अच्छी होती है हाथी की याददाश्त

वरिष्ठ वन्य जीव पे्रमी एजी अंसारी बताते है कि हाथी चार से पांच घंटे सोता है। जबकि 14-16 घंटे वह खाता रहता है। खास बात यह है कि हाथी की याददाश्त काफी अच्छी होती है। वह पुराने परंपरागत रास्तों को नहीं भूलता है और न ही अपने महावत को। जंगली हाथियों की औसत आयु 45 से 60 साल व पालतू हाथियों की 70-80 साल मानी जाती है। 

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