रामनगर में दो दोस्‍तों ने नौकरी छोड़ अपना कैफे शुरू किया, महीने की पगार अब एक दिन में कमात हैं

नैकरी की तलाश में भटकने वाले युवाओं को रामनगर के दो दोस्‍तों ने स्‍वरोजगार का रास्‍ता दिखाया है। उन्‍होंने न केवल अपनी नौकरी को हमेशा के लिए छोड़ दिया बल्कि खुद का शानदार कैफे खड़ा करने के साथ ही अब अपनी नौकरी से भी कहीं अधिक आय कर रहे हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Wed, 22 Sep 2021 11:01 AM (IST) Updated:Wed, 22 Sep 2021 11:01 AM (IST)
रामनगर में दो दोस्‍तों ने नौकरी छोड़ अपना कैफे शुरू किया, महीने की पगार अब एक दिन में कमात हैं
रामनगर में दो दोस्‍तों ने नौकरी छोड़ अपना कैफे शुरू किया, महीने की पगार अब एक दिन में कमात हैं

विनोद पपनै, रामनगर : नैकरी की तलाश में दर-दर भटकने वाले युवाओं को रामनगर के दो दोस्‍तों ने स्‍वरोजगार का रास्‍ता दिखाया है। उन्‍होंने न केवल अपनी नौकरी को हमेशा के लिए छोड़ दिया बल्कि खुद का शानदार कैफे खड़ा करने के साथ ही अब अपनी नौकरी से भी कहीं अधिक आय कर रहे हैं। यह कहानी है रामनगर निवासी दीपक जीना और हिमांशु बिष्ट की।

रामनगर से महज तीन किलोमीटर की दूरी पर फॉर्मर एंड संस का बोर्ड देखकर हर किसी के कदम ठहर जाते हैं। अंदर जाकर देखा तो एक खूबसूरत कैफे नजर आया है। जिसे दीपक जीना और हिमांशु बिष्ट दो दोस्तों ने मिलकर बनाया है। आकर्षक तरीके से तैयार इस जगह पर लोगों के बैठने वाले स्थान के चारों ओर छोटे छोटे गमले लटकाकर उन पर सुंदर पौधें लगाए गए हैं। फर्श पर छोटे छोटे कंकड़ और पत्थर हैं । एक छोर पर आई लव कॉर्बेट लिखा हुआ है। रेस्ट्रोरेंट पूरी तरह से पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता नजर आता है।

कुल्हड़ की चाय जायकेदार

सामने कुल्हड़ चाय का स्टॉल है। कॉर्बेट जाने वाला पर्यटक हों या गिरिजा मंदिर जाने वाले श्रद्धालु एक पल इस कैफे में आकर कुल्हड़ की चाय के लिए जरूर रुकते है। यहां ब्रेक फास्ट के साथ साथ लंच और डिनर की भी पूरी व्यवस्था है।

नौकरी को छोड़ शुरू किया कारोबार

दीपक जीना और हिमांशु बिष्ट दोनों आपस मे गहरे दोस्त हैं। दोनों ढिकुली स्थित ताज रिसोर्ट में काम कर चुके हैं, लेकिन नौकरी करने में दोनों का मन नहीं लगा तो उन्होंने कुछ अपना करने का इरादा कर लिया। बस क्या था थोड़ा थोड़ा करके दोनों दोस्तों ने रिगोड़ा में किराए पर जगह ली और अपना कैफे खड़ा कर दिया। दीपक बताते हैं कि उन्होंने ताज रिसोर्ट में ट्रेनिंग से लेकर साढे चार साल तो हिमांशु ने दो साल नौकरी की। खाना बनाने का हुनर उन्होंने रिसोर्ट में काम करने के दौरान ही सीख लिया था जो अब उनके कारोबार के काम आ रहा है।

जो आनंद अपने काम में है वो नौकरी में कहां

दीपक और हिमांशु कहते हैं कि नौकरी में सीमित वेतन हर समय देर रात तक ड्यूटी की वजह से मन खट्टा हो गया था, यही सोचकर नौकरी छोड़ दी। अब अपना व्यवसाय चल निकला है तो लगता है जो आनंद अपने काम में है वह नौकरी में नहीं है।

जितनी पगार थी उतनी दो दिन में हो रही आमदनी

दीपक बताते हैं कि जब वह रिसॉर्ट में काम करते थे तो उन्हें दस हजार रुपया और उनके दोस्त हिमांशु को आठ हजार रुपया महीना वेतन मिलता था। आज हम सारे खर्चे काटकर एक दिन में ही कोई पांच से सात हजार एक दिन में कमा लेते हैं।

कोरोना में कइयों ने खोया रोजगार

कोरोना के चलते बड़ी संख्या में युवाओं ने रोजगार खोया है। इस तरह के कुछ हटकर दिखने वाले स्वरोजगार के इन दो दोस्तों के प्रयास और लोगों के बीच नयी उम्मीद तो जगाते हैं, जो अन्य बेरोजगार युवकों को स्वरोजगार की दिशा में ले जाने का मार्ग प्रशस्त करते है।

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