मंगलवार के योग में मनेगी भौमावस्या, स्नान-दान के साथ पितृ कर्म का रहता है विशेष महत्व

11 मई को सूर्य व चंद्रमा के भरणी नक्षत्र में एक साथ होने से भौमावस्या का योग बन रहा है। सूर्य और चंद्रमा के एक राशि या एक-दूसरे के पास वाली राशि में होने पर यह योग बनता है। भरणी नक्षत्र का स्वामी शुक्र है।

By Prashant MishraEdited By: Publish:Sun, 09 May 2021 10:30 PM (IST) Updated:Mon, 10 May 2021 06:55 AM (IST)
मंगलवार के योग में मनेगी भौमावस्या, स्नान-दान के साथ पितृ कर्म का रहता है विशेष महत्व
मंगलवारी अमावस्या होने से मंगल दोष से बचने के लिए व्रत और पूजा करने का विधान है।

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी: मंगलवार 11 मई को सूर्य व चंद्रमा के भरणी नक्षत्र में एक साथ होने से भौमावस्या का योग बन रहा है। सूर्य और चंद्रमा के एक राशि या एक-दूसरे के पास वाली राशि में होने पर यह योग बनता है। भरणी नक्षत्र का स्वामी शुक्र है। जिससे इस दिन पितरों के लिए किए श्राद्ध व पूजा से सुख-समृद्धि बढ़ती है। श्री महादेव गिरि संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य डा. नवीन चंद्र जोशी का कहना है कि मंगलवार को पड़ने वाली भौम अमावस्या पर पितरों की विशेष पूजा की जाए तो परिवार के रोग, शोक व दोष खत्म हो जाते हैं। मंगलवारी अमावस्या होने से मंगल दोष से बचने के लिए व्रत और पूजा करने का विधान है।

घर पर इस तरह करें गंगा स्नान

भौमवती अमावस्या के दिन स्नान, दान करने का विशेष महत्व है। वैशाख महीना होने से इसका पुण्य और भी बढ़ जाता है। दान करने को सबसे अच्छा माना गया है। देव ऋषि व्यास ने ग्रंथों में कहा है कि भौमावस्या में स्नान व दान करने से हजार गायों के दान का पुण्य फल मिलता है। कोरोना महामारी के कारण श्रद्धालुओं को देश-काल परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करना चाहिए। अमावस्या के शुभ संयोग में स्नान और दान करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। सूर्योदय से लेकर दोपहर करीब तीन बजे तक की अवधि में अमावस्या तिथि के दौरान स्नान और दान करने का खास महत्व है। साथ ही इस समय में पितरों के लिए श्राद्ध करना चाहिए।

अन्न-जल और दीपदान का महत्व

वैशाख मास की अमावस्या पर जरूरतमंद लोगों को खाना खिलाना चाहिए। ऐसा करने से स्वर्ण दान करने जितना पुण्य मिलता है। इसके साथ ही वैशाख महीने की अमावस्या पर पितरों के लिए एक लोटे में पानी, कच्चा दूध और उसमें तिल मिलाकर पीपल पर चढ़ाकर दीपक जलाना चाहिए। दीपदान करने से पितृ संतुष्ट होते हैं।

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