उत्तराखंड की जनजातियों में सिकल सैल एनीमिया का खतरा अधिक
कुमाऊं विवि के शोध छात्र दीपक मेलकानी ने अपने शोध अध्ययन में पाया कि उत्तराखंड में वन रावत भोटिया थारू व बोक्सा में आनुवांशिक बीमारी सिकल सैल एनीमिया का खतरा अधिक है। अलबत्ता जागरूकता काउंसलिंग व प्री मैरिज काउंसलिंग से इसे कम किया जा सकता है।
नैनीताल, जागरण संवाददाता : कुमाऊं विवि के शोध छात्र दीपक मेलकानी ने अपने शोध अध्ययन में पाया कि उत्तराखंड में वन रावत, भोटिया, थारू व बोक्सा में आनुवांशिक बीमारी सिकल सैल एनीमिया का खतरा अधिक है। अलबत्ता जागरूकता, काउंसलिंग व प्री मैरिज काउंसलिंग से इसे कम किया जा सकता है। इस बीमारी में शरीर में आक्सीजन का संचरण प्रभावित होता है, लीवर, किडनी व हृदय प्रभावित होता है। दुनियां में यह बीमारी लाइलाज है। इस बीमारी में लाल रक्त कणिकाओं की संरचना बिगड़ जाती है।
जन्तु विज्ञान विभाग के सीनियर प्रोफेसर सतपाल सिंह बिष्ट के निर्देशन में चार साल तक चला यह शोध कुमाऊं के जनजातीय व गैर जनजातीय लोगों पर आधारित है। इसमें 54 चिकित्सकों तथा 1369 लोगों से जानकारी जुटाई गई। प्रिमिलेंस एंड इपिडिमियोलॉजी ऑफ सिकिल सैल एनीमियां इन ट्राइबल एंड नॉन ट्राइबल पोपुलेशन ऑफ कुमाऊं रीजन उत्तराखंड विषयक शोध का यह निष्कर्ष निकला है।
प्रो. बिष्ट के अनुसार इस बीमारी में रोगी को सांस लेने में दिक्कत होती है, बार-बार रक्त चढ़ाना पड़ता है। दिल का दौरा पडऩे की आशंका अधिक रहती है। शोध में पता चला है कि जनजातीय समाज में थारू में यह बीमारी अधिक है। शोधार्थी दीपक मेलकानी धारी क्षेत्र से जिला पंचायत सदस्य भी हैं। दीपक को इस उपलब्धि पर कुलपति प्रो एनके जोशी, परिसर निदेशक प्रो एलएम जोशी, शोध निदेशक प्रो ललित तिवारी, विभागाध्यक्ष प्रो एचसीएस बिष्टï, कार्य परिषद सदस्य अरविंद पडियार, सांसद अजय भट्ट, भाजपा जिलाध्यक्ष प्रदीप बिष्ट, विधायक संजीव आर्य, जिला पंचायत अध्यक्ष बेला तोलिया, भीमताल विधायक राम सिंह कैड़ा आदि ने बधाई दी है।
एचबीएस हीमोग्लोबिन से होती है बीमारी
सिकल सेल एनीमिया रक्त में लाल रंग का प्रोटीन होता है, जिसे हीमोग्लोबिन कहते हैं। सामान्य व्यक्ति के रक्त में एचबीए, एचबीएफ और एटू यानी तीन प्रकार का हीमोग्लोबिन पाया जाता है। कुछ व्यक्तियों में इनसे अलग प्रकार का हीमोग्लोबिन पाया जाता है, जिसे एचबीएस (सिकल सेल एनीमिया) कहते हैं। यह बीमारी पैदा करता है, क्योंकि किसी कारणवश शरीर में आक्सीजन की कमी होने पर हीमोग्लोबिन लाल रक्त कणों के अंदर छोटे-छोटे टुकड़ों में बदल जाता है। इससे गोल आकार की कणिकाएं हंसिए के आकार वाली हो जाती हैं। इससे धमनियों में रक्त का प्रवाह रुक जाता है और शरीर के जिस हिस्से में रक्त पहुंच नहीं पाता वहां दर्द और सूजन आ जाती है। इस बीमारी का पूरी तरह से इलाज सिर्फ अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण से ही संभव है।
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