आंखों में तिरछेपन का इलाज है चश्मा और ऑपरेशन, जानिए क्‍या कहते हैं नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. नितिन

आंखों का तिरछापन केवल देखने में ही असहज नहीं लगता बल्कि इससे एंबलोपिया होने का खतरा भी रहता है। इसलिए जरूरी है समय पर इलाज। डा. नितिन मेहरोत्रा ने बताया कि तिरछेपन का इलाज बचपन में ही करा लेना चाहिए। इलाज से घबराने की जरूरत नहीं है।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Sun, 19 Sep 2021 07:34 PM (IST) Updated:Sun, 19 Sep 2021 07:34 PM (IST)
आंखों में तिरछेपन का इलाज है चश्मा और ऑपरेशन, जानिए क्‍या कहते हैं नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. नितिन
आंखों में तिरछेपन का इलाज है चश्मा और ऑपरेशन, जानिए क्‍या कहते हैं नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. नितिन

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी: आंखों का तिरछापन केवल देखने में ही असहज नहीं लगता, बल्कि इससे एंबलोपिया होने का खतरा भी रहता है। इसलिए जरूरी है समय पर इलाज। डा. नितिन मेहरोत्रा ने बताया कि तिरछेपन का इलाज बचपन में ही करा लेना चाहिए। इलाज से घबराने की जरूरत नहीं है। कई बार चश्मा पहनने से ही बीमारी ठीक हो जाती है। अगर इससे ठीक न हो तो ऑपरेशन करना पड़ता है। डा. नितिन राजकीय मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। वह रविवार को दैनिक जागरण के हैलो डाक्टर में परामर्श दे रहे थे।

तिरछापन इसलिए है खतरनाक

डा. नितिन ने बताया कि तिरछी आंख की समस्या यह है कि व्यक्ति देखना कहीं और चाहता है और देखता कहीं और है। इसके चलते ब्रेन से कनेक्शन नहीं बन पाता है। इस समस्या को एंबलोपिया कहते हैं। इसलिए जरूरी है समय पर इलाज। सबसे जरूरी है कि एक साल से कम उम्र के बच्चों में तिरछेपन की समस्या है तो परदे की जांच की जानी चाहिए।

बीमारी का कारण

तिरछेपन की समस्या पैदाइशी भी हो सकती है। या फिर पैदा होते समय आंखों से संबंधित कोई बीमारी है तो भी खतरा रहता है। कई बार विजन में बदलाव की वजह से भी समस्या होती है।

इन भ्रांतियों से बचें

- तिरछेपन का ऑपरेशन बचपन में भी हो सकता है - एक बार ऑपरेशन करने पर दोबारा बीमारी होने की संभावना नहीं रहती है - ऑपरेशन से आंख खराब होने का खतरा नहीं रहता है।

डाक्टर ने आइ डोनेशन के लिए की अपील

डा. नितिन ने कहा कि भारत में अंधता का दूसरा बड़ा कारण कॉर्निया डिजीज है। अगर लोग आइ डोनेशन के लिए पहल करें तो प्रतिवर्ष लाखों लोगों की रोशनी लौटाई जा सकती है। अब डा. सुशीला तिवारी राजकीय चिकित्सालय में भी आइ बैंक बनने जा रहा है। इसलिए लोगों से अपील है कि आइ डोनेशन कराएं। मृत्यु के चार घंटे के भीतर आइ डोनेट करना होता है। तब तक उसकी आंख में गीली रूई रख देनी चाहिए। कई लोग सोचते हैं कॉर्निया निकालने पर चेहरा खराब हो जाता है। जबकि ऐसा नहीं है। डोनेशन प्रक्रिया में 30 से 45 मिनट का ही समय लगता है।

इन्होंने किया फोन

भीमताल से हेम पांडे, डीडीहाट से रेनू, हल्द्वानी से रमेश, संजय, सरस्वती, विक्रम सिंह, गोपाल पडलिया, काशीपुर से हरपाल सिंह, बाजपुर से आराध्या, नैनीताल से देवकी देवी, टनकपुर से गीता बिष्ट, पिथौरागढ़ से गीता, बिंदुखत्ता एलएस जग्गी, बागेश्वर से रवि आदि ने फोन कर परामर्श लिया।

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