सहयोग से समाधान : कोरोनाकाल में ट्रांसपोर्टरों ने संभाला पब्लिक की जरूरतों का दारोमदार
विजय गुड्स फारवर्डिंग एजेंसी के मालिक सौरभ अग्रवाल कहते हैं कि कोरोना काल में जब सभी कारोबार ठप थे। जिंदगी थम जैसी गई थी। लोग घरों से निकलने के लिए डर रहे थे। ट्रांसपोर्टर और ड्राइवरों ने अतिआवश्क सामग्री को एक से दूसरे स्थान तक पहुंचाने का काम किया।
हल्द्वानी, जेएनएन : कारोबार की सफलता के लिए यह जरूरी है कि किसी भी हालात में आपको ग्राहकों के मन की भाषा और उनके साथ एक सामाजिक व मानसिक तारतम्य बिठाने का हुनर आता हो। यही सूत्र आपको मुश्किल घड़ी में भी ग्राहकों का समर्थन जुटा सकने में मददगार होता है। हां, अगर ग्राहक ने ये ठान लिया कि आपका हाथ किसी भी हालत में नहीं छोड़ेगा तो कामयाबी आपकी रहगुजर होगी।
विजय गुड्स फारवर्डिंग एजेंसी के मालिक सौरभ अग्रवाल कहते हैं कि कोरोना काल में जब सभी कारोबार ठप थे। जिंदगी थम जैसी गई थी। लोग घरों से निकलने के लिए डर रहे थे। ऐसे मुश्किल समय में ट्रांसपोर्टर और ट्रक ड्राइवरों ने फ्रंट लाइन में रहकर अतिआवश्कीय सामग्री को एक से दूसरे स्थान तक पहुंचाने का काम किया। लाकडाउन के शुरुआती चरण में जब आवागमन का साधन नहीं था, कई ट्रक चालकों ने मानवता दिखाते हुए मुसाफिरों को अपने जोखिम पर उनके गंतव्य तक पहुंचने का काम किया। सौरभ कहते हैं कि इसी विश्वास और भरोसे की वजह से उनका ट्रांसपोर्ट पिछले छह दशक से अधिक समय से चल रहा है। आइए अग्रवाल ने से ही जानते हैं कि उन्होंने कोरोना की चुनौतियों का समाधान कैसे खोजा।
कारखाना बाजार से शुरू हुआ सफर
सौरभ अग्रवाल बताते हैं कि उनके पिता स्व. विजय शंकर अग्रवाल ने 1958 में कारखाना बाजार से ट्रांसपोर्ट कारोबार की शुरुआत की। उस समय गिनती के ट्रांसपोर्ट कारोबारी हुआ करते थे। तब वह दिल्ली से सामान लाकर हल्द्वानी व उत्तराखंड के दूसरे शहरों में पहुंचाने का काम करते थे। 2004 में रामपुर रोड से लगे ट्रांसपोर्ट नगर और बरेली रोड में अब्दुल्ला बिल्डिंग के पास से कारोबार को आगे बढ़ाया। विजय गुड्स पेंट्स, टायर कंपनियों के सामान को पूरे उत्तराखंड में ट्रांसपोर्ट करते हैं।
समाधान 1 : जोखिम लेकर पहली पंक्ति में खड़े रहे
अग्रवाल बताते हैं कि कोरोना को देखते हुए जब लाकडाउन की घोषणा हुई। तब पूरे देश का भार ट्रांसपोर्टर पर आ गया था। इंडस्ट्री बंद हो गई थी। 20 से 30 प्रतिशत ही ट्रांसपोर्ट कारोबार चल रहा था। हमने जान की परवाह किए बगैर सामान का आवागमन किया। हम जानते थे कि हमारा काम पब्लिक करियर से जुड़ा है, इसलिए हमने कभी अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश नहीं की। मैं मानता हूं कि इससे ग्राहक और लोगों के बीच हमारा भरोसा और मजबूत हुआ।
समाधान 2 : कोरोना से बचाव के उपाय अपनाए
ट्रांसपोर्ट कारोबार को बंद नहीं किया जा सकता। यह चेन से जुड़ा मामला है। एक कड़ी टूटने का मतलब पूरा सिस्टम धड़ाम हो जाना। हमने खुद के बचाव के लिए उपाय अपनाए। ड्राइवरों और ट्रांसपोर्ट में काम करने वाले कामगारों का समय-समय पर कोरोना जांच कराई गई। कर्मचारियों की सेहत का पूरा ध्यान रखा। हम जानते हैं कि कामगार और चालक हमारे व्यवसाय का अहम कड़ी हैं।
समाधान 4 : सामाजिक दायित्व को बखूबी निभाया
कोरोना काल में तेजी से हेल्थ सेटअप को बढ़ाया जाना था। मरीज बढ़ रहे थे। हमने स्वास्थ्य विभाग को उपकरण लाने-ले जाने के लिए वाहन उपलब्ध कराए। परिवहन विभाग या प्रशासन ने जब भी वाहनों की मांग की, तत्काल उपलब्ध कराया। जरूरतमंदों तक भोजन के पैकेज पहुंचाए।
समाधान 3 : दुश्वारियों को कम करने की जरूरत
सौरभ अग्रवाल कहते हैं ट्रांसपोर्ट कारोबार के साथ तमाम दुश्वारियां लगी है। तीन माह के टैक्स माफी की घोषणा पर अभी तक काम नहीं हुआ। केंद्र सरकार के नए नियम के मुताबिक एक अक्टूबर से परिवहन से जुड़े कागजों की डिजिटल चैकिंग होनी थी, मगर परिवहन व पुलिस विभाग अभी तक दस्तावेजों की फिजिकल चैकिंग कर रहे हैं। कई जगह निकायों में पर्ची काटी जा रही। ऐसी दिक्कतों को दूर करने की जरूरत है।