'सल्‍तनत' के लिए जिम कॉर्बेट पार्क में बाघों में बढ़ा संघर्ष, संख्या बढ़ने से और भी टकराव के आसार

जंगल का नियम है कि जो ताकतवर होगा वही राज करेगा। कमजोर की जंगल में भी कोई जगह नहींं है। चाहे वह जंगल का राजा बाघ हो या फिर जंगलों में मदमस्त होकर घूमने वाले गजराज।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Mon, 23 Sep 2019 08:30 AM (IST) Updated:Tue, 24 Sep 2019 10:58 AM (IST)
'सल्‍तनत' के लिए जिम कॉर्बेट पार्क में बाघों में बढ़ा संघर्ष, संख्या बढ़ने से और भी टकराव के आसार
'सल्‍तनत' के लिए जिम कॉर्बेट पार्क में बाघों में बढ़ा संघर्ष, संख्या बढ़ने से और भी टकराव के आसार

रामनगर, जेएनएन : जंगल का नियम है कि जो ताकतवर होगा वही राज करेगा। कमजोर की जंगल में भी कोई जगह नहींं है। चाहे वह जंगल का राजा बाघ हो या फिर जंगलों में मदमस्त होकर घूमने वाले गजराज। सब पर यही नियम लागू होता है कि जो बलवान होगा उसके आगे दूसरे को या तो जंगल छोडऩा पड़ेगा या फिर अपनी जान चुकानी होगी।

आंकड़े बताते हैं कि कॉर्बेट टाईगर रिजर्व में अब तक मारे गए बाघों में से अधिकांश की मौत आपसी संघर्ष के कारण ही हुई है। यानि ताकतवर बाघ ने या तो अपने से कमजोर को मार गिराया या फिर उसे अपने क्षेत्र से भगा दिया। ग्लोबल टाइगर-डे पर दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में हुए टाइगर अनुमान के आंकड़े जारी किए थे। जिसमें उत्तराखंड में बाघों की संख्या 340 से बढ़कर 442 बताई गई थी। यह बात दीगर है कि अभी कॉर्बेट टाईगर रिजर्व में बाघों की संख्या को घोषित नही किया गया है लेकिन बाघों की संख्या बढऩे का अनुमान है। 2014 में यहां टाइगर की कुल संख्या 215 थी, जिसके अब 250 का आंकड़ा पार करने की बात कही जा रही है। आंकड़ों के मुताबिक कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में प्रति 100 वर्ग किलोमीटर में करीब 20 टाइगर मौजूद हैं। यानि पांच वर्ग किलोमीटर के दायरे में एक बाघ होने का अनुमान है। कॉर्बेट के सीमित जंगल के चलते कॉर्बेट प्रशासन के सामने अब बाघों के बीच वर्चस्व की जंग को रोकना बड़ी चुनौती है। शनिवार को यहां ढेला क्षेत्र में एक बाघिन की मौत भी इस ओर ही इशारा करती है। कहा जाता है कि आपसी संघर्ष के बाद जो बाघ बच निकलेगा वह आबादी की ओर रुख करेगा। यह निश्चित तौर पर मानव व वन्यजीव संघर्ष का भी कारण बन सकता है। 

सीटीआर के निदेशक राहुल ने बताया कि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व इकोलॉजी है, इस इकोलॉजी में कितने टाइगर होंगे यह इस बात पर निर्भर करता है कि क्षेत्र में कितना भोजन एवं कितना पानी बाघों के लिए उपलब्ध है। किसी क्षेत्र में भोजन की कमी के कारण आपसी संघर्ष हो सकते हैं एवं अनुकूल परिस्थिति एवं उचित भोजन मिलने पर कम क्षेत्र में भी अधिक टाइगर हो सकते हैं। रहा सवाल वन्यजीवों के आपसी संघर्ष का तो यह उनकी स्वभाविक प्रक्रिया है। इसमें मानव की दखलअंदाजी संभव नहीं है। 

ढेला में आपसी संघर्ष में मारी गई थी बाघिन

कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के ढेला रेंज में मृत मिली बाघिन के आपसी संघर्ष में मारे जाने की पुष्टि हो रही है। पोस्टमार्टम के बाद मृत बाघिन का बिसरा व अन्य अंगों के नमूने फोरेंसिक जांच के लिए आइवीआरआइ बरेली भेजे जा रहे हैं।  शनिवार को वनकर्मियों को ढेला रेंज के अंतर्गत हिल ब्लॉक कंपार्टमेंट नंबर दो में एक बाघिन मृत मिली थी। उन्होंने इसकी सूचना वनाधिकारियों को दी। सूचना मिलने पर कालागढ़ के एसडीओ आरके तिवारी मौके पर पहुंचे। उसके शरीर पर चोट के निशान पाए गए। अंधेरा अधिक होने की वजह से बाघिन के शव की पोस्टमार्टम की कार्रवाई रविवार को की गई। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक राहुल व एसडीओ आरके तिवारी की मौजूदगी में पशु चिकित्सक डॉ. दुष्यंत कुमार व डॉ. आयुष उनियाल ने बाघिन के शव का पोस्टमार्टम किया। तिवारी ने बताया कि बाघिन की उम्र करीब पांच साल है। उस क्षेत्र में एक और बाघ भी घूम रहा है। आशंका यही है कि दोनों के बीच संघर्ष हुआ, जिसमें बाघिन की मौत हो गई। फोरेंसिक जांच के लिए मृत बाघिन का बिसरा व अन्य अंगों के नमूने बरेली भेजे जा रहे हैं। पोस्टमार्टम के उपरांत मृत बाघिन को जलाकर नष्ट कर दिया गया। वहीं निदेशक कॉर्बेट टाइगर रिजर्व राहुल ने बताया कि ढेला के हिल ब्लॉक कंपार्टमेंट नंबर दो में घूम रहे दूसरे बाघ पर भी वन कर्मियों द्वारा नजर रखी जा रही है। आपसी संघर्ष में यदि वह घायल हुआ होगा तो हिंसक हो सकता है। 

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