दुनिया ने समझी, भारत ने भुला दी पंत किरण

प्रमोद पांडे हल्द्वानी आणविक भौतिकी को पंत किरण से जगमगाने वाले उत्तराखंड के महान वैज्ञ्‍

By JagranEdited By: Publish:Sun, 13 Oct 2019 10:01 PM (IST) Updated:Wed, 16 Oct 2019 06:17 AM (IST)
दुनिया ने समझी, भारत ने भुला दी पंत किरण
दुनिया ने समझी, भारत ने भुला दी पंत किरण

प्रमोद पांडे, हल्द्वानी

आणविक भौतिकी को पंत किरण से जगमगाने वाले उत्तराखंड के महान वैज्ञानिक प्रो. डीडी पंत की मेधा को सम्मान देने वाली पूरी दुनिया के इतर भारत ने उन्हें भुला दिया है। नोबल पुरस्कार से सम्मानित महान वैज्ञानिक सीवी रमन के प्रिय शिष्य रहे पंत का यह जन्म शताब्दी वर्ष है, जिसकी खबर उत्तराखंड सरकार ने ली न केंद्र सरकार ने। विज्ञान के आविष्कारों के अलावा पंत के योगदान शिक्षा के उन्नयन में भी कम नहीं हैं। 1973 स्थापित कुमाऊं विश्वविद्यालय को इसके पहले कुलपति के रूप में अपनी विस्तृत दृष्टि से उन्होंने जिस प्रकार देश-दुनिया में विख्यात किया, अब तक की राज्य सरकारें उसी का संज्ञान ले लेतीं तो वैज्ञानिक, ब्यूरोक्रेट, शिक्षाविद, ईमानदार नागरिकों की भावी खेप निरंतर प्राप्त होती रहतीं। भला हो हिमालयी राज्यों के सरोकारों पर केंद्रित पहाड़ संस्था के शेखर पाठक का, जिन्होंने हल्द्वानी में रविवार को उनका जन्म शताब्दी समारोह आयोजित कर आज की युवा पीढ़ी को उनसे वाकिफ कराया।

यह वह शख्स है, जिसके बारे में दुनिया के पठित समाज में जहां कहीं भी चर्चा होगी, स्वाभाविक रूप से द्वितीय विश्वयुद्ध के कबाड़ से नैनीताल स्थित डीएसबी महाविद्यालय में 1952 में तैयार की गई उनकी फोटो फिजिक्स लैब अवश्य इसके केंद्र में रहेगी। देश की चुनिंदा पीकोसेकेंड लेजर सुविधा से संपन्न इस प्रयोगशाला में आणविक संसार में सेकेंड के एक खरबवें हिस्से में होने वाली भौतिक व रासायनिक घटनाओं को रिकार्ड करने की सुविधाएं मौजूद हैं। इस प्रयोगशाला में ही पहली बार तैयार टाइम डोमेन स्पेक्ट्रोमीटर की मदद से पंत और उनके सहयोगी डीपी खंडेलवाल की जोड़ी ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण शोध किए थे। यूरेनियम के लवणों की स्पेक्ट्रोस्कोपी पर हुए इस शोध पर अब तक लिखी गई सबसे चर्चित पुस्तक फोटोकेमिस्ट्री ऑफ यूरेनाइल कंपाउंड, ले. राबिनोविच एवं बैडफोर्ड में दर्जनों बार पंत के काम का वर्णन पंत की महानता को ही दर्शाता है। यह वही पुस्तक है, जिसे भौतिकी का बाइबिल भी कहा जाता है।

समय के सूक्ष्मतम हिस्सों के पारखी इस विज्ञानी ने उत्तराखंड के अच्छे समय के लिए अपना जीवन तभी से खपाना शुरू कर दिया, जब सीवी रमन के भारतीय मौसम विज्ञान विभाग में वैज्ञानिक बनने के प्रस्ताव को ठुकराया। उत्तराखंड के आम आदमी के विकास के लिए चिंतित इस विज्ञानी को अनेक सम्मान मिले। 1960-61 में फुलब्राइट फैलोशिप, 1969 में अमेरिका की सिग्मा-साई फैलोशिप, इंडियन अकादमी ऑफ बंगलौर की फैलोशिप, सीवी रमन सेंटेनरी सम्मान, पहला आसुंदी सेंटेनरी सम्मान, लेकिन तत्कालीन कुलाधिपति से वैचारिक मतभेद के चलते विवि के कुलपति से इस्तीफा देने के बाद जिस प्रकार जनता आंदोलित हुई और कुलाधिपति को अपना कदम पीछे खींच उन्हें दोबारा यह दायित्व दिया गया, वह सम्मान निश्चितरूप से अप्रतिम कहा जाएगा।

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