Labour Day 2021 : सूनी हुईं नदियां, फावड़े की खनक न खंती की टनक, पहली बार अप्रैल में बंद हो गई खनन नदियां
Labour Day 2021 नदियों में काम करने वाले करीब 15 हजार प्रवासी श्रमिक मजदूर दिवस पर यहां नजर नहीं आएंगे। खनन की समय सीमा खत्म होने के कारण श्रमिक बिहार झारखंड और उत्तर प्रदेश अपने घरों को रवाना हो चुके हैं।
जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : कुमाऊं की नदियां खनन से सरकार को अरबों का राजस्व व हजारों लोगों को रोजगार मुहैया कराती हैं। लेकिन ऐसा पहली बार है कि इन नदियों में काम करने वाले करीब 15 हजार प्रवासी श्रमिक मजदूर दिवस पर यहां नजर नहीं आएंगे। खनन की समय सीमा खत्म होने के कारण श्रमिक बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश अपने घरों को रवाना हो चुके हैं। इस कारण सभी नदियां सूनी हैं। पूरे मई गौला में रहने वाली चहलपहल भी इस बार नहीं दिखेगी। न फावड़े की खनक होगी और न ही खंती की टनक। अब बस उम्मीद है कि कोरोना की दूसरी लहर का संकट खत्म हो। ताकि अक्टूबर में इन मजदूरों के कदम फिर नदियों की ओर बढऩे लगे।
उत्तराखंड में खनन को रोजगार का बढ़ा जरिया माना जाता है। वन निगम के अलावा निजी पट्टाधारक भी आवंटित क्षेत्र से उपखनिज निकाल रॉयल्टी के जरिये सरकार की झोली भरते हैं। गौला, नंधौर, कोसी, शारदा, दाबका, अमृतपुर, रामनगर, बेतालघाट के अलावा टनकपुर में खनन कार्य होता है। अनुमान के मुताबिक इन नदियों में करीब 15 हजार श्रमिक हर साल बाहरी राज्यों से काम करने के लिए आते हैं।
गौला और नंधौर में सिर्फ आठ हजार से ज्यादा प्रवासी श्रमिक डेरा जमाते हैं। मगर इस बार इस बार इन नदियों में लक्ष्य कम होने की वजह से संचालन बंद हो चुका है। जिस वजह से श्रमिक घरों को रवाना हो गए। हालांकि, कई मजदूर नदी बंद होने के बाद हल्द्वानी में अन्य कामों पर लग गए थे। मगर कोविड कफ्र्यू के बाद उन्हें लॉकडाउन का डर सताने लगा। जिस वजह से पिछले हफ्ते यह लोग भी चले गए।
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