यशपाल के जाने और आने दोनों की वजह हरदा, चार साल आठ महीने बाद घर वापसी कराने में कामयाब हुए पूर्व सीएम
अमित शाह की मौजूदगी में बेटे संजीव आर्य संग भाजपा का दामन थामा था। यशपाल आर्य के इस फैसले से हर कोई हैरान था। तत्कालीन सीएम हरीश रावत और कांग्रेस हाईकमान भी उनके संकेतों को भांप नहीं सका। नाराजगी के पीछे हरदा व उनके सिपहसलारों को वजह माना गया।
जागरण संवाददाता, हल्द्वानी: कांग्रेस में रहकर संगठन पदाधिकारी, विधायक, प्रदेश अध्यक्ष, विधानसभा अध्यक्ष से लेकर कैबिनेट मंत्री तक की जिम्मेदारी निभाने वाले यशपाल आर्य ने 16 जनवरी 2017 को दिल्ली में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की मौजूदगी में बेटे संजीव आर्य संग भाजपा का दामन थामा था। मार्च 2016 में बागियों का साथ न देने वाले यशपाल आर्य के इस फैसले से हर कोई हैरान था। तत्कालीन सीएम हरीश रावत और कांग्रेस हाईकमान भी उनके संकेतों को भांप नहीं सका। तब यशपाल की नाराजगी के पीछे हरदा व उनके सिपहसलारों को वजह माना गया। हालांकि चार साल आठ माह बाद हरीश रावत पुराने साथी को मनाने में कामयाब हो गए। प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव की रणनीति भी काम आई।
मार्च 2016 में उत्तराखंड की राजनीति में बड़ा घटनाक्रम हुआ था। बागी बने नेताओं ने हरीश रावत सरकार को संकट में डाल दिया था। तब कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य को अपने खेमे में करने के लिए भी विरोधियों ने काफी जोर लगाया, लेकिन आर्य कांग्रेस में टिके रहे। जनवरी 2017 में यशपाल ने बगावत की राह पकड़ ही ली। भाजपा ने उनके अलावा बेटे को भी टिकट थमाया। दोनों जीते भी। जबकि सीएम रहते हरीश रावत खुद दो सीटों से हार गए। वहीं, पिछले दिनों लगातार यशपाल की नाराजगी की चर्चाएं चल रही थी। सीएम पुष्कर सिंह धामी उनसे मिलने भी पहुंचे, मगर भाजपा व यशपाल दोनों ने ही अटकलों को बेबुनियाद बताया। हालांकि, अब यशपाल बेटे संग फिर से पुराने दल में पहुंच गए हैं।
हरदा-यशपाल और संजीव एक कार में पहुंचे
दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय में ज्वाइनिंग कार्यक्रम रखा गया था। सोमवार सुबह हरीश रावत, यशपाल आर्य व संजीव तीनों एक ही कार से यहां पहुंचे। हरदा पिछली सीट पर संजीव संग गुफ्तगू करते आ रहे थे। कांग्रेस मुख्यालय में उतरते ही संजीव ने हाथ जोड़ वहां मौजूद लोगों का अभिवादन भी किया।