नाइलोन के बढ़ते प्रचलन ने भांग की पारंपरिक रस्सियों को किया गायब, भांग के और भी हैं फायदे

नाइलोन से बनी रस्सियां भी मजबूत होती हैं लेकिन उनमें लचक नहीं होती। भांग के रेसे से बनी रस्सियां तब लोगों के रोजगार का साधन भी हुआ करती थी। बड़े बुजुर्ग घरों में रस्सियां तैयार कर उन्हें बेचते थे।

By Prashant MishraEdited By: Publish:Sat, 28 Aug 2021 05:52 PM (IST) Updated:Sat, 28 Aug 2021 05:52 PM (IST)
नाइलोन के बढ़ते प्रचलन ने भांग की पारंपरिक रस्सियों को किया गायब, भांग के और भी हैं फायदे
भांग के रेसे की बिनाई कर चटाईयां भी तैयार की जाती थीं।

गौरी शंकर पंत, लोहाघाट। पर्वतीय क्षेत्रों में भांग के रेशे (लोध) से बनने वाली रस्सियां अब विलुप्ति की कगार पर हैं। इनका स्थान नाइलोन की रस्सियों ने ले लिया है। भांग के रेसे से बनी रस्सियां काफी लचकदार एवं मजबूत होती थीं। जिसका उपयोग लोग मवेशियों को बांधने में करते थे। जंगलों से चारा पत्ती और जलौनी लकड़ी लाने के लिए भी इन रस्सियों का उपयोग किया जाता था। हालांकि नाइलोन से बनी रस्सियां भी मजबूत होती हैं, लेकिन उनमें लचक नहीं होती। भांग के रेसे से बनी रस्सियां तब लोगों के रोजगार का साधन भी हुआ करती थी। बड़े बुजुर्ग घरों में रस्सियां तैयार कर उन्हें बेचते थे। भांग की खेती में प्रशासन द्वारा लगाई गई पाबंदी और रस्सियों को तैयार     

भांग की लकडिय़ों को किसी तालाब या पोखर में तीन दिन से एक सप्ताह तक भिगाने के लिए रखा जाता है। भीगने के बाद उनमें से रेखा निकाल लिया जाता है। जिसके बाद लकड़ी से बने विशेष खांचे में फेरकर उन्हें रस्सी की शक्ल दी जाती है। भांग की खेती कम होने और इस कला में माहिर लोगों के हुनर को आगे बन बढ़ाने के कारण अब गिने चुने दूरस्थ गांवों में ही रस्सियां बनती हैं, लेकिन सीमित संख्या होने के कारण इन्हें बेचा नहीं जाता बल्कि अपने काम में ही लगाया जाता है। बाराकोट ब्लाक के इजड़ा गांव निवासी प्रकाश सिंह, दिनेश राम व नाथ राम ने बताया कि पहले उनके बुजुर्ग भांग के रेसे की रस्सियां तैयार करते थे। लेकिन उन्होंने उस हुनर को नहीं सीखा। फलस्वरूप उनके इंतकाल के बाद रस्सियां बनना बंद हो गया। यही नहीं भांग के रेसे की बिनाई कर चटाईयां भी तैयार की जाती थीं। 

कई प्रकार से फाइदेमंद है भांग का बीज  

भांग का दुुरूपयोग न हो तो यह कई प्रकार से फाइदेमंद है। इसके बीज से स्वादिष्ट नमक और चटनी तैयार होती है। सूखी मूली, पत्ता गोभी, गडेरी, पिनालू समेत विभिन्न सब्जियों में इसके बीच को पीसकर डालने से सब्जी का स्वाद कई गुना बढ़ जाता है। भांग के बीच की तासीर काफी गर्म होती है। इसका प्रयोग पहाड़ों में जाड़े के दिनों में किया जाता है। वर्तमान में  बाजार में भांग के दाने की कीमत 80 से 100 रुपया प्रति किग्रा है। इसकी लकड़ी आग जलाने के काम  आती है। पहले गांवों में जब आग जलाने के लिए मिट्टी का तेल नहीं होता था। तब भांग  की सूखी लकडिय़ों को आग जलाने के प्रयोग में लाया जाता था। 

अब प्रतिबंधित है भांग की खेती 

कई लोग भांग की खेती का दुरूपयोग करते हैं। भांग की हरी पत्तियों से चरस और सूखी पत्तियों से गांजा तैयार किया जाता है। जिसकी तस्करी कर लोगों को नशे के गर्त में ढ़केला जा रहा है। भांग मादक पदार्थों की श्रेणी में आता है। हाईकोर्ट ने भांग की खेती पर प्रतिबंध लगा रखा है। पिछले पांच साल से पुलिस लगातार लोगों को भांग की खेती न करने के लिए प्रेरित कर रही है। कुछ लोग प्रतिबंध के बाद भी भांग की खेती कर रहे हैं। हर साल पुलिस खेती को नष्ट कर ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है। अब लोग जागरूक होने लगे हैं। पुलिस की सख्ती के बाद इसकी खेती बंद हो रही है। 

आबकारी विभाग ने जारी किए है लाइसेंस

विशेष प्रकार की भांग की खेती के लिए आबकारी विभाग ने जिले में तीन लोगों को लाइसेंस जारी किए हैं। सभी लोग भांग की खेती कर रहे हैं। यह विशेष प्रकार की भांग है। जिसके बीज विदेशों से लाए जा रहे हैं।

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