लालू-मुलायम के द्वारा शंकराचार्य बनाया जाना अधर्म की पराकाष्ठा थी : शंकराचार्य

हाईकोर्ट बार एसोसिएशन सभागार में अधिवक्ताओं को संबोधित करते व उनके साथ संवाद करते हुए शंकराचार्य ने कहा कि दूसरों के प्रति विनम्र बनना ही न्याय की आधारशिला है। दूसरों के प्रति संयम रहना ही बुद्धि की बलिहारी है।

By Prashant MishraEdited By: Publish:Tue, 30 Nov 2021 03:59 PM (IST) Updated:Tue, 30 Nov 2021 03:59 PM (IST)
लालू-मुलायम के द्वारा शंकराचार्य बनाया जाना अधर्म की पराकाष्ठा थी : शंकराचार्य
स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा है कि न्यायालय ही दोहरे चरित्र का स्थान है।

जागरण संवाददाता, नैनीताल। जगन्नाथपुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा है कि न्यायालय ही दोहरे चरित्र का स्थान है । पापी हमेशा अपनी दृष्टि में गिरता है, हमें ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए, जिससे अपनी दॄष्टि में गिर जाएं। उन्होंने कहा कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने रमई राम को संत बनाकर चार पीठ का शंकराचार्य बना दिया, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने अंगद को शंकराचार्य बना दिया। यह अधर्म की पराकाष्ठा थी। शंकराचार्य ने कहा कि इन मामलों को सुप्रीम कोर्ट को संज्ञान लेना चाहिए। हिंदू धर्म की आस्था से राजनीति खिलवाड़ नहीं कर सकती। धार्मिक पदाें पर राजनीतिक हस्तक्षेप से शंकराचार्य के पद की गरिमा से खिलवाड़ हुआ है। कहा कि सनातन धर्म ने ही भोजन, विवाह, स्वास्थ्य, आवास, वस्त्र , गणित आदि का विज्ञान दिया। सृष्टि की आयु तक बताई है, जो पूरा विश्व मानता है। मैकाले की कूटनीति का क्रियान्वयन होने से न्याय प्रणाली में भी विकृति आई है। सनातन की न्यायिक प्रणाली ही श्रेष्ठतम है। दोषी को दोषमुक्त करने की न्यायिक प्रणाली से पाप की प्रवत्ति बढ़ रही है।

मंगलवार को हाईकोर्ट बार एसोसिएशन सभागार में अधिवक्ताओं को संबोधित करते व उनके साथ संवाद करते हुए शंकराचार्य ने कहा कि दूसरों के प्रति विनम्र बनना ही न्याय की आधारशिला है। दूसरों के प्रति संयम रहना ही बुद्धि की बलिहारी है। बोले हिंसा करने वाला की भावना होती है, उंसके साथ हिंसा ना हो, झूठे की भावना होती है, उसके साथ कोई झूठ ना बोले, चोर चाहता है कि उसकी संपत्ति चोरी ना हो। व्यभिचारी चाहता है, उसके साथ कभी व्यभिचार ना हो, लुटेरे की भावना है कि उसके साथ लूट ना हो। नींद में कभी मृत्यु का भय प्राप्त नहीं होता। गहरी नींद में दुःख का बोध नहीं होता। पानी का अस्तित्व तब तक है, जब तक प्यास लगेगी। भूख लगना ही अन्न के अस्तित्व को साबित करता है। देह का नाश होता है, जीवात्मा का नहीं। उन्होंने कहा कि गांव गांव धर्म का प्रचार होना चाहिए, प्रायश्चित व पश्चाताप की भावना होनी चाहिए। हर व्यक्ति दुर्व्यसनों से मुक्त होगा तो आर्थिक विषमता नहीं होगी। इस अवसर पर महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर, अपर महाधिवक्ता मोहन चंद्र पांडे, हाईकोर्ट बार एसोसिएशन सचिव विकास बहुगुणा, संजय भट्ट, पुष्पा जोशी, किशोर राय समेत दर्जनों अधिवक्ता उपस्थित थे।

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