पुराना है सरोवर नगरी के रंगमंच का इतिहास, बंगाली समुदाय ने 1884 में शुरू की थी नैनीताल में मंचन की शुरुआत

1900 में इंडियन क्लब की शुरुआत की। बंगाली समुदाय की देखादेखी से स्थानीय लोग भी नाट्य मंचन के लिए प्रेरित हुए और तब 1900 में इंडियन एमेच्योर क्लब व 1910 में फ्रेंड्स एमेच्योर ड्रामेटिक क्लब की स्थापना की गई थी।

By Prashant MishraEdited By: Publish:Sat, 23 Jan 2021 09:20 AM (IST) Updated:Sat, 23 Jan 2021 09:20 AM (IST)
पुराना है सरोवर नगरी के रंगमंच का इतिहास, बंगाली समुदाय ने 1884 में शुरू की थी नैनीताल में मंचन की शुरुआत
1962 तक नैनीताल में लगातार अखिल भारतीय नाटक प्रतियोगिता होती थी।

किशोर जोशी, नैनीताल। सरोवर नगरी के रंगमंच का इतिहास बहुत पुराना है। यहां 1862 में  ग्रीष्मकालीन राजधानी बनने के बाद सेक्रेटीएट बना तो सेक्रेटीएट में कार्यरत अधिकांश बंगाली समुदाय के अधिकारी कर्मचारियों द्वारा अपने मनोरंजन के लिए नाटकों के मंचन की शुरुआत की। साथ ही 1884 में बंगाली एमेच्योर ड्रैमेटिक क्लब की स्थापना की। जिससे स्थानीय लोग प्रेरित हुए और 1900 में इंडियन क्लब की शुरुआत की। उस दौर में ज्यादातर नाटक धार्मिक होते थे। बंगाली समुदाय की देखादेखी से स्थानीय लोग भी नाट्य मंचन के लिए प्रेरित हुए  और तब 1900 में इंडियन एमेच्योर क्लब व 1910 में फ्रेंड्स एमेच्योर ड्रामेटिक क्लब की स्थापना की गई थी।

इतिहासकार प्रो अजय रावत के मुताबिक 1900 तक अधिकांश नाटक धार्मिक होते थे। जैसे अर्जुन, अभिमन्यु व महाभारत आदि। 1952 में पहली बार नैनीताल में ऑटम फेस्टिवल आयोजित किया गया। आयोजन की जिम्मेदारी शारदा संघ को दी गई। 1962 तक नैनीताल में लगातार अखिल भारतीय नाटक प्रतियोगिता होती थी। तब तक यहां 162 नाटकों का मंचन किया गया।

प्रो रावत के अनुसार 1920-21 में नाट्य संस्था जनसेवक सभा, हरिहर पार्टी का गठन हुआ। 1922 में पारसी थियेटर पर आधारित नाटकों का मंचन यहां किया गया। नाटककार आगा हस्र कश्मीरी द्वारा राधेश्याम,  बेताब जैसे हिट नाटकों का मंचन किया। वॉकी टॉकी सिनेमा आने के बाद 1838 से 1948 तक शारदा संघ द्वारा नाटकों को नया जीवनदान दिया।

स्थानीय चन्द्रलाल साह द्वारा स्थानीय युवकों को साथ लेकर शारदा संघ की स्थापना की थी। उस दौर में रामलीला मंचन के बाद उसी स्थान पर एक नाटक का मंचन होता था। प्रो रावत बताते हैं कि तब लखनऊ विवि में नाटक रीढ़ की हड्डी व ढोंग का मंचन किया गया। इसमें भी चन्द्रलाल साह शामिल रहे। इन नाटकों ने तहलका मचा दिया था। इसका श्रेय प्रो आरएन नागर को जाता है। जो महान लेखक अमृत नागर के भाई हैं। रंगकर्मी मदन मेहरा के अनुसार शहर में रंगकर्मियों की कमी नहीं है मगर नाट्य मंचन के लिए जगह व सुविधाओं की कमी है। बीएम साह पार्क में ओपन थियेटर बनने के बाद यह दिक्कत दूर होने की उम्मीद है।

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