पिथौरागढ़ में सड़कें बंद होने से चरमराने लगी गांवों की अर्थव्यवस्था

उच्च हिमालयी गांवों से ग्रामीणों को हैलीकॉप्टर से एयर लिफ्ट किया जा रहा है। मानव तो हैलीकॉप्टर से लिफ्ट हो रहे हैं परंतु जानवरों के लिए संकट पैदा हो चुका है। उच्च हिमालयी दारमा घाटी में सोमवार सुबह से हिमपात भी होने लगा है।

By Prashant MishraEdited By: Publish:Mon, 01 Nov 2021 04:27 PM (IST) Updated:Mon, 01 Nov 2021 04:27 PM (IST)
पिथौरागढ़ में सड़कें बंद होने से चरमराने लगी गांवों की अर्थव्यवस्था
मार्ग बंद होने के कारण आवश्यक वस्तुओं की कमी होने से वस्तुओं के दाम बढ़ चुके हैं

जागरण संवाददाता, पिथौरागढ़ : सीमांत की तवाघाट- सोबला- दारमा मार्ग विगत एक पखवाड़े से बंद होने के कारण सीमांत के गांवों की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। उच्च हिमालयी गांवों से ग्रामीणों को हैलीकॉप्टर से एयर लिफ्ट किया जा रहा है। मानव तो हैलीकॉप्टर से लिफ्ट हो रहे हैं परंतु जानवरों के लिए संकट पैदा हो चुका है। उच्च हिमालयी दारमा घाटी में सोमवार सुबह से हिमपात भी होने लगा है।

तवाघाट - सोबला -तिदांग मार्ग छिरकिला के पास से बंद है। यह मार्ग मानसून काल में पूरे 118 दिन बंद रहा। लगभग चार माह बाद मार्ग खुलने के बाद 17 अक्टूबर की बारिश से छिरकिला के पास बंद हो गया। इसी के साथ छिरकिला से लेकर चीन सीमा पर स्थित अंतिम गांव सीपू का सम्पर्क भंग हो गया। मार्ग बंद होने से तल्ला दारमा के एक दर्जन से अधिक गांवों की अर्थव्यवस्था पूर्ण रू प से ध्वस्त हो गई है। तल्ला दारमा के छिरकिला , जम्कू, खेत, कंच्योती, न्यू, न्यु सुवा, सोबला, दर, वतन, उमचिया सहित अन्य गांव पूरी तरह धारचूला बाजार पर आश्रित हैं। इन गांवों से ग्रामीण उत्पाद धारचूला बाजार तक बिकने आता है। धारचूला बाजार से ही इन गांवों तक आवश्यक वस्तुाओं की आपूर्ति होती है।

मार्ग बंद होने के कारण इस क्षेत्र में आवश्यक वस्तुओं की कमी होने से वस्तुओं के दाम बढ़ चुके हैं सबसे बड़ी बात तो यह है कि सामान तक नहीं मिल पा रहा है। दर से आगे दारमा के सीपू गांव तक स्थिति खराब हो गई थी। इस वर्ष बीते दिनों दारमा में भारी हिमपात हो गया। ग्रामीण शीतकालीन प्रवास के लिए घाटियों की तरफ आने लगे परंतु मार्ग बंद होने से फंस गए। प्रशासन ने ग्रामीणों को निकालने के लिए शासन और वायु सेना  से हैलीकॉप्टर मांगे। बीते चार दिनों से हैलीकॉप्टर से रेस्क्यू किया जा रहा है।

उच्च हिमालय में माइग्रेशन करने वाले ग्रामीणों के साथ जानवर भी होते हैं। जानवरों को पैदल ही घाटियों तक आना होगा। यदि मार्ग नहीं खुला तो जानवरों को बचाना ग्रामीणों के सम्मुख चुनौती होगी। रेस्क्यू कार्य में अहम भूमिका निभा रहे सेला गांव के समाज सेवी नरेंद्र सिंह सेलाल का कहना है कि दारमा घाटी के सर्वाधिक ऊंचाई वाले गांवों से अधिकांश ग्रामीण नीचे को आ चुके हैं। घाटी के प्रारंभ में स्थित सेला, चल , बालिंग ,नागलिंग के ग्रामीणों का रेस्क्यू होना है। इन गांवों के ग्रामीणों को हैलीकॉप्टर से  आने के लिए कई किमी दूर ढाकर हैलीपैड जाना पड़ता है। उन्होंने बताया कि दारमा में जानवरों को लाने के लिए भी नीचे से जानवरों के मालिकों को हैलीकॉप्टर से भेजा गया है अब प्रतीक्षा मार्ग खुलने की है।

उन्होंने बताया कि दारमा घाटी में सोमवार की सुबह से ही हिमपात भी होने लगा है। इधर प्रशासन का कहना है कि सेला तक दो तीन दिन में मार्ग खुलने की संभावना है। सेला तक मार्ग खुलने पर चार गांवों के लोग भी पैदल नीचे को आ सकते हैंं। एसडीएम धारचूला एके शुक्ल ने बताया कि दारमा घाटी से हैलीकॉप्टरों से ग्रामीणों को एयरलिफ्ट करने का कार्य जारी है। चौथे दिन भी वायु सेना के हैलीकॉप्टर से ग्रामीणों को धारचूला लाया गया है। सीपीडब्ल्युडी को मार्ग खोलने में तेजी लाने के निर्देश दिए गए हैं।

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