स्वामी विवेकानंद ने अद्वैत आश्रम में दिया था जैविक खेती व जल संरक्षण का संदेश

सेवा और त्याग के लिए दुनिया में प्रसिद्ध वेदांत दर्शन के ज्ञाता स्वामी विवेकानंद ने लोहाघाट के अद्वैत आश्रम में जल संरक्षण व जैविक खेती का संदेश दिया था। वर्ष 1901 में अपनी उत्तराखंड की अंतिम यात्रा के दौरान उनका यह संदेश आज भी प्रेरित करता है।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Tue, 12 Jan 2021 07:21 AM (IST) Updated:Wed, 13 Jan 2021 12:28 AM (IST)
स्वामी विवेकानंद ने अद्वैत आश्रम में दिया था जैविक खेती व जल संरक्षण का संदेश
स्वामी विवेकानंद ने अद्वैत आश्रम में दिया था जैविक खेती व जल संरक्षण का संदेश

हल्द्वानी, गणेश जोशी : सेवा और त्याग के लिए दुनिया में प्रसिद्ध वेदांत दर्शन के ज्ञाता स्वामी विवेकानंद ने लोहाघाट के अद्वैत आश्रम में जल संरक्षण व जैविक खेती का संदेश दिया था। वर्ष 1901 में अपनी उत्तराखंड की अंतिम यात्रा के दौरान उनका यह संदेश आज भी प्रेरित करता है। दुनियाभर के लिए ईश्वर उपासना के इस अहम केंद्र में स्वामी जी ने 15 दिन प्रवास किया था।

स्वामी विवेकानंद लंबे समय से हिमालय के किसी खूबसूरत प्राकृतिक स्थल पर अद्वैत आश्रम की स्थापना करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने कई शिष्यों को पत्र लिखे। यहां तक कि उन्होंने अल्मोड़ा के लाला बद्रीसाह को भी पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने लिखा, प्रिय शाह जी... मैं एक मठ स्थापित करना चाहूता हूं। मेरी इच्छा है कि वह अल्मोड़ा या उसके समीप किसी स्थान पर हो। मैं चाहता हूं एक छोटी सी पहाड़ी मिल जाए तो अच्छा हो। उनके इस कार्य में अंग्रेज शिष्य कैप्टन सेवियर व उनकी पत्नी जुट गई। सेवियर दंपती ने 19 मार्च, 1899 को अद्वैत आश्रम तैयार कर लिया, जो मायावती आश्रम नाम से भी प्रचलित है। पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों से आच्छादित निर्जन वन में स्थित इस आश्रम में स्वामी विवेकानंद तीन जनवरी 1901 में पहुंचे। इस आश्रम में स्वामी जी 15 दिन रुके और उन्होंने अध्ययन, लेखन व ध्यान में समय व्यतीत किया।

राजकीय महाविद्यालय लोहाघाट में राजनीति विज्ञान के सहायक प्राध्यापक डा. प्रकाश चंद्र लखेड़ा ने बताया कि स्वामी विवेकानंद सेवा व त्याग की प्रतिमूॢत थे। युवाओं को जगाने के लिए किया गया उनका योगदान आज भी प्रासंगिक है। मायावती आश्रम नाम से प्रचलित अद्वैत आश्रम में आज भी वैसा ही मौसम रहता है, जैसा 100 साल पहले था। जैव विविधता देखते ही बनती है। वह जगह ईश्वर उपासना का अद्भुत केंद्र है। इसी जगह धर्मार्थ अस्पताल भी संचालित है, जिसमें डाक्टर वही हैं, जिन्होंने संन्यास ग्रहण कर लिया।  

ग्रंथ रचना तथा संगीत में अपना समय बिताऊंगा

स्वामी विवेकानंद राजकीय महाविद्यालय लोहाघाट में राजनीति विज्ञान के सहायक प्राध्यापक डा. प्रकाश चंद्र लखेड़ा बताते हैं कि उत्तराखंड के पांचवे व अंतिम प्रवास के दौरान स्वामी जी ने इस आश्रम में रहते हुए जैविक खेती को बढ़ावा देने की पहल की थी। आज भी इस आश्रम में गायें हैं। जिन्हेंं पौष्टिक चारा दिया जाता है। उनके गोबर की खाद से खेती की जाती है। गेहूं के अलावा तमाम तरह की सब्जियां उगाई जाती हैं। इसके अलावा आश्रम परिसर में ही कृत्रिम झील है। जब स्वामी जी ने इस जगह को देखा तो वह काफी प्रभावित हुए। उन्होंने इसे कृत्रिम झील के रूप में विकसित करने को कहा। इस जगह से वह बेहद रोमांचित हुए थे। तब उन्होंने कहा था, अपने जीवन के अंतिम भाग में मैं समस्त जनहित के कार्यों को छोड़ यहां आऊंगा और ग्रंथ रचना तथा संगीत में अपना समय बिताऊंगा। डा. लखेड़ा बताते हैं, इस जगह को अब और खूबसूरत बना दिया गया है, जो जल संरक्षण का संदेश भी देता है।

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