Katarmal Sun Temple : पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है देश का दूसरा प्राचीन सूर्य मंदिर, ध्‍यान मुद्रा में विराजित हैं सूर्यदेव

ओडिशा के कोर्णाक के बाद उत्तराखंड के अल्मोड़ा कटारमल स्थित सूर्य मंदिर (Katarmal Sun Temple) को सूर्यदेव का दूसरा सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है। सनातन धर्म में सूर्य उपासना का पुराना इतिहास है। सनातन धर्म के आदि पंच देवों में एक सूर्यदेव भी हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Sun, 27 Sep 2020 04:09 PM (IST) Updated:Sun, 27 Sep 2020 04:09 PM (IST)
Katarmal Sun Temple : पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है देश का दूसरा प्राचीन सूर्य मंदिर, ध्‍यान मुद्रा में विराजित हैं सूर्यदेव
अल्मोड़ा कटारमल स्थित सूर्य मंदिर (Katarmal Sun Temple) को सूर्यदेव का दूसरा सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है।

हल्द्वानी, गणेश पांडे : ओडिशा के कोर्णाक के बाद उत्तराखंड के अल्मोड़ा कटारमल स्थित सूर्य मंदिर (Katarmal Sun Temple) को सूर्यदेव का दूसरा सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है। सनातन धर्म में सूर्य उपासना का पुराना इतिहास है। सनातन धर्म के आदि पंच देवों में एक सूर्यदेव भी हैं। जिन्हें कलयुग का एकमात्र दृश्य देव माना जाता है। अल्मोड़ा जिला मुख्यालय से करीब 17 किमी दूर स्थित कटारमल सूर्य मंदिर में सूर्य भगवान की दुर्लभ प्रतिमा स्थापित है। जगत को अपने तेज से रोशनी देने वाले सूर्यदेव यहां ध्यान मुद्रा में विराजमान हैं। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर पहाड़ियों के बीच स्थित कटारमल सूर्य मंदिर के दर्शनों के लिए आने वाले भक्तों की संख्या हाल के वर्षों में बढ़ी है। कोरोना काल के सन्नाटे के बाद कटारमल सूर्य मंदिर भक्तों के दर्शनार्थ खुल गया है। हालांकि अभी यह संख्या गिनती की है। दूसरे राज्यों से उत्तराखंड आने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा दी जा रही रियायतों के बाद पर्यटकों की संख्या बढ़ने की उम्मीद की जा रही है। 

अदभुत है मंदिर की संरचना

कटारमल सूर्य मंदिर को बड़ आदित्य सूर्य मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इसका कारण है कि मंदिर में स्थापित भगवान आदित्य की मूर्ति पत्थर या धातु की न होकर बड़ के पेड़ की लकड़ी से बनी हुई है। मुख्य मंदिर के आसपास भगवान गणेश, भगवान शिव, माता पार्वती, श्री लक्ष्मीनारायण, भगवान नृसिंह, भगवान कार्तिकेय समेत अन्य देवी-देवताओं के 45 छोटे-बड़े मंदिर हैं। मंदिर का ऊंचा शिखर अब खंडित हो चुका है। गर्भगृह का प्रवेश द्वार जो बेजोड़ काष्ठ कला का उत्कृष्ट उदाहरण था, उसके कुछ अवशेषों को नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा गया है। भारतीय पुरातत्त्व विभाग ने मंदिर को संरक्षित स्मारक घोषित किया है। 

छठी से 13वीं शताब्‍दी के मध्य हुआ निमार्ण

कटारमल सूर्य मंदिर पूर्वाभिमुखी है। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के अधेली सुनार गांव में स्थित सूर्य मंदिर की स्थापना छठीं से नवीं शताब्दी के मध्य मानी जाती है। कहा जाता है कि कत्यूरी राजवंश के शासनकाल में मंदिर की स्थापना हुई। पुरातत्व विभाग द्वारा मंदिर की वास्तुकला व स्तंभों पर उत्कीर्ण अभिलेखों को लेकर किए गए अध्ययनों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण समय तेरहवीं सदी माना गया है। यह कुमांऊ के सबसे ऊंचे मंदिरों की सूची में शामिल है। कटारमल सूर्य मंदिर स्थापत्य और शिल्प कला का बेजोड़ उदाहरण है। मंदिर को एक ऊंचे वर्गाकार चबूतरे पर बनाया गया है। आज भी इसके खंडित हो चुके ऊंचे शिखर को देखकर इसकी विशालता व वैभव का स्पष्ट अनुमान होता है।  

मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार सतयुग में उत्तराखंड में ऋषि-मुनियों पर एक असुर ने अत्याचार किये थे। इस दौरान द्रोणगिरी, कषायपर्वत व कंजार पर्वत के ऋषियों ने कौशिकी यानि कोसी नदी के तट पर पहुंचकर सूर्य-देव की आराधना की। इसके बाद प्रसन्न होकर सूर्य-देव ने वटशिला में अपने दिव्य तेज को स्थापित किया। इसी वटशिला पर तत्कालीन शासक ने सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया। 

ऐसे पहुंचे कटारमल सूर्य मंदिर

कटारमल सूर्य मंदिर अल्मोड़ा-रानीखेत मार्ग के नजदीक स्थित है। मंदिर तक वायु, रेल व सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। पंतनगर नजदकी एयरपोर्ट है। यहां से मंदिर की दूरी 132 किलोमीटर है। काठगोदाम रेलवे स्टेशन की मंदिर की दूरी 100 किमी है। काठगोदाम से उत्तराखंड परिवहन की बस, टैक्सी या फिर खुद के वाहन से कटारमल सूर्य मंदिर पहुंचा जा सकता है। आधे घंटे की पैदल दूरी तय करने के बाद मंदिर तक पहुंच सकते हैं।

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