खत्म हो रहा ग्रीष्मकालीन प्रवास, उच्च हिमलाय से नीचे की ओर आने लगे भेड़-बकरियां और चरवाहे
उच्च हिमालयी घाटियों में ग्रीष्मकालीन प्रवास अब समाप्ति की तरफ है। उच्च हिमालय में बुग्यालों की जड़ी बूटी मिश्रित मुलायम घास चरने के बाद भेड़ बकरियों के झुंड नीचे की तरफ आने लगे हैं। धारचूला की दारमा घाटी से भेड़ बकरियों के झुंड धारचूला तक पहुंचने लगे हैं।
पिथौरागढ़, जेएनएन : उच्च हिमालयी घाटियों में ग्रीष्मकालीन प्रवास अब समाप्ति की तरफ है। उच्च हिमालय में बुग्यालों की जड़ी बूटी मिश्रित मुलायम घास चरने के बाद भेड़, बकरियों के झुंड नीचे की तरफ आने लगे हैं। धारचूला की दारमा घाटी से भेड़, बकरियों के झुंड धारचूला तक पहुंचने लगे हैं। जहां से चरवाहे अपने भेड़, बकरियों के साथ लंबे प्रवास के लिए रवाना होने लगे हैं। दो माह बाद भेड़-बकरियां मध्य हिमालय और शिवालिक की पहाडिय़ों के घास चरने के बाद भावर पहुंचेंगी।
भेड़ बकरियों के उच्च हिमालय से उतरने के बाद अब धीरे-धीरे मानव की निचले इलाकों की तरफ आने लगेंगे। दारमा घाटी के ग्रामीण इस माह के अंत तक अपने शीतकालीन प्रवास जौलजीबी से गोठी तक पहुंच जाएंगे। भेड़ ,बकरियों का उच्च हिमालय से गहरा संबंध है। हिमालय में जिस ऊंचाई तक कोई नहीं पहुंच पाता है वहां तक भेड़ बकरियां और चरवाहे पहुंचते हैं। बताया जाता है कि भेड़, बकरियां और चरवाहे साढ़े चार हजार मीटर से अधिक की ऊंचाई तक जाते हैं। चरवाहे सारा जीवन खानाबदोश की तरह व्यतीत करते हैं।
यही नहीं उच्च हिमालय में भेड़, बकरियां चराते -चराते हिमांचल प्रदेश और गढ़वाल के चरवाहे दर्रे पार कर जोहार, दारमा और व्यास तक पहुंच जाते हैं। पिथौरागढ़ के चरवाहे हिमांचल तक पहुंच जाते हैं। इधर अब उनका माइग्रेशन प्रारंभ हो चुका है। उनके माइग्रेशन का संकेत उच्च हिमालय में सुनसानी का संदेश है। आने वाले बीस दिनों के बीच उच्च हिमालयी गांव सुनसान हो जाएंगे। पहले दारमा फिर व्यास घाटी के ग्रामीण माइग्रेशन करेंगे।