Subhash Chandra Bose Jayanti 2021 : सुभाष बाबू को खुद से ज्यादा उत्तराखंडियों पर रहा भरोसा
Parakram Diwas 2021 इतिहासकार डा. अजय सिंह रावत व नेताजी रिसर्च ब्यूरो के अनुसार नेताजी लड़ाई में मोर्चाबंदी हो या देश के प्राण न्योछावर करने की बात हो हर मामले में उत्तराखंड के लोगों पर अधिक भरोसा करते थे।
हल्द्वानी, अभिषेक राज। स्वतंत्रता संग्राम को समझने। करीब से परखने और जिद को जुनून में तब्दील होने की असल कहानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बिन अधूरी है। भले ही नेताजी का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में हुआ। लेकिन उनका जीवन पर्यंत उत्तराखंड से आत्मीय लगाव रहा। ऐतिहासिक दस्तावेजों, प्रतिष्ठित इतिहासकार डा. अजय सिंह रावत व नेताजी रिसर्च ब्यूरो के अनुसार सुभाष बाबू को कई मामलों में खुद से ज्यादा उत्तराखंड के अपने सहयोगियों पर भरोसा रहा। बात चाहे आजाद हिंद फौज में मार्चेबंदी की हो या फिर देश के लिए मर मिटने का जुनून, नेताजी ने हर अवसर पर उत्तराखंड के जांबाजों को ही सर्वोत्तम माना।
उनके निजी सुरक्षा व सहायक से लेकर फौज में बड़े अधिकारी भी उत्तराखंड के ही रहे। उत्तराखंड के समूचे इतिहास पर प्रकाशित डा. अजय सिंह रावत की पुस्तक-'उत्तराखंड का समग्र राजनैतिक इतिहास' में इसका बखूबी जिक्र है।
डा. रावत बताते हैं कि आजाद हिंद फौज में उत्तराखंड के जवानों का सर्वाधिक योगदान रहा। उस दौरान आजादी की लड़ाई में उत्तराखंड के 600 लाल शहीद हुए थे। सुभाष बाबू ने गढ़वाल निवासी लेफ्टिनेंट कर्नल चंद्र सिंह नेगी को सिंगापुर में आफीसर्स ट्रेनिंग स्कूल का कमांडर नियुक्त किया। मेजर देव सिंह दानू नेताजी की निजी सुरक्षा की कमान संभालते थे। इतना ही नहीं, नेताजी ने मेजर पदम सिंह को तीसरी बटालियन का कमांडर और लेफ्टिनेंट कर्नल पीएस रतूड़ी को सुभाष रेजीमेंट की प्रथम बटालियन के कमांडर की जिम्मेदारी सौंपी थी।
डा. रावत बताते हैं कि 1944 के बर्मा कैंपेन में सामरिक महत्व की पोस्टों पर अधिकार करने के लिए नेता जी ने खुद अपने हाथों से आजाद हिंद फौज का शीर्ष सम्मान सरदार-ए-जंग से लेफ्टिनेंट कर्नल पीएस रतूड़ी को नवाजा।
महान लेखक फिलिप मेसन ने लिखा है कि उत्तराखंड के जवानों ने आजाद हिंद फौज में अद्भुत बहादुरी का परिचय दिया। उन्होंने तो अपने संस्मरण में यहां तक जिक्र किया कि उत्तराखंडी जवानों में देश व स्वामी निष्ठा की ऐसी मिसाल कहीं और नहीं दिखती जितनी आजाद हिंद फौज में नजर आती है।
महेंद्र सिंह बागड़ी, अंग्रेजों के लिए नाम ही काफी था
बागेश्वर जिले के मल्ला दानपुर पट्टी के बागड़ गांव निवासी महेंद्र सिंह बागड़ी का नाम ही अंग्रेजों के लिए काफी माना जाता था। मोर्चे पर महेंद्र सिंह बागड़ी की मौजूदगी जान अंग्रेजी सैनिक सहम जाते थे। यूं तो बागड़ी ने दो-दो महायुद्ध लड़े। बाद के दिनों में उन्होंने आजाद हिंद फौज में अहम जिम्मेदारी निभाई। नेताजी ने इन्हें सेकेंड इंफैंटरी की तीसरी पल्टन की कमान सौंपी।