राज्य आंदोलनकारियों ने सरयू में बहाई शासनादेश की प्रत्तियां, प्रशासन पर उपेक्षा का आरोप

गुरुवार को सरयू तट पर एकत्र हुए। उन्होंने जमकर नारेबाजी की और कहा कि राज्य आंदोलनकारियों की उपेक्षा हो रही है। मकर संक्रांति पर्व पर सरयू तट पर कुली बेगार का अंत हुआ था और वह इतिहास बना। कहा कि सरकार को राज्य आंदोलनकारियों को तत्काल प्रमाणपत्र निर्गत करने चाहिए।

By Prashant MishraEdited By: Publish:Thu, 14 Jan 2021 04:38 PM (IST) Updated:Thu, 14 Jan 2021 04:38 PM (IST)
राज्य आंदोलनकारियों ने सरयू में बहाई शासनादेश की प्रत्तियां, प्रशासन पर उपेक्षा का आरोप
जब तक जिले के आंदोलनकारियों को प्रमाणपत्र निर्गत नहीं करता है तब तक आंदोलन जारी रहेगा।

जागरण संवाददाता, बागेश्वर : उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों ने मकर संक्रांति पर्व पर शासनादेश की प्रत्तियां सरयू नदी में बहाई। उन्होंने कहा कि सरकार ने राज्य आंदोलनकारियों के चिह्निकरण के लिए शासनादेश बनाया। जिसे अफसरों ने फाइलों में दबा दिया है। राज्य आंदोलनकारियों को प्रमाणपत्र निर्गत नहीं किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश में व्यापक आंदोलन की शुरूआत की जाएगी।

  राज्य आंदोलनकारी गोकुल जोशी के नेतृत्व में तमाम लोग गुरुवार को सरयू तट पर एकत्र हुए। उन्होंने जमकर नारेबाजी की और कहा कि राज्य आंदोलनकारियों की उपेक्षा हो रही है। मकर संक्रांति पर्व पर सरयू तट पर कुली बेगार का अंत हुआ था और वह इतिहास बना। उन्होंने कहा कि सरकार को राज्य आंदोलनकारियों को तत्काल प्रमाणपत्र निर्गत करने चाहिए। ताकि उनका सम्मान हो। उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन जब तक जिले के आंदोलनकारियों को प्रमाणपत्र निर्गत नहीं करता है तब तक आंदोलन जारी रहेगा। इस मौके पर जीवन चौधरी, लीलाधर चौबे, दिनेश गुरुरानी, बची राम, केवलानंद, गिरीश पाठक, कैलाश पाठक आदि मौजूद थे।

  इधर, राज्य आंदोलनकारी मोहन पाठक ने सरयू तट पर मौन धरना दिया। उन्होंने सुशीला तिवारी अस्पताल हल्द्वानी को एम्स के तर्ज पर विकसित करने और बागेश्वर जिला अस्पताल में सुशीला तिवारी अस्पताल जैसी सुविधाएं प्रदान करने की मांग की। इस मौके पर रमेश राम आदि मौजूद थे।

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उत्तरायणी पर्व पर आयोजित हुई काव्य गोष्ठी, कवियों ने कविताओं के जरिए किया मेले का वर्णन

गरुड़ : उत्तरायणी पर्व पर गरुड़ में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से उत्तरायणी मेले के धार्मिक, सांस्कृतिक व ऐतिहासिक महत्त्व का बखूबी वर्णन किया। उत्तराखंड साहित्यकार समिति के अध्यक्ष मोहन जोशी की अध्यक्षता में आयोजित गोष्ठी का शुभारंभ करते हुए वरिष्ठ कवि गोपाल दत्त भट्ट ने कहा नीलम जल का मनहर दर्पण, गिरी शिखरों को करती अर्पण, मधुधार बहाती है कि सरयू बहती जाती है। युवा कवि मनोज खोलिया ने कहा आयो घुघुतिया पर्व मनाएं, सरयू में डुबकी लगाकर महादेव को जल चढ़ाएं।

कवि संतोष जोशी ने कामना करते हुए कहा रहे सदा जन के मन में शांति, मिलजुलकर मनाएं मकर संक्रांति। युवा कवयित्री आशा जोशी ने कहा आयो इस पर्व को मनाएं उल्लास से, एकजुटता व विश्वास से। युवा कवि सीएस बड़सीला ने अपनी कविता में कहा यहीं बहाया कुली बेगार याद दिलाता घुघुतिया त्यार। अध्यक्षता करते हुए कवि मोहन जोशी ने उत्तरायणी पर अपनी कविता में कहा उतरैणी कौतिक हिट बागनाथ जौंल नुमैश की चर्खी घुमी सुणी औल भगनौल। इस दौरान डा. हेम चंद्र दुबे, भुवन कैड़ा, जीवन दोसाद, रमेश पांडे, एडवोकेट डीके जोशी, ओमप्रकाश फुलारा, आनंद दुबे, बची गिरी, संतोष तिवारी आदि मौजूद थे।

जागरण की रात बैर-भगनौल के गायन की रही धूम

उत्तरायणी कौतिक पौराणिक, सांस्कृतिक, व्यापारिक, राजनीतिक विधाओं को पिरोए हुए है। बैर-भगनोल गायन की परंपरा उत्तरायणी मेले को चार चांद लगा देती है। इस बार धार्मिक मेले का आयोजन किया जा रहा है। बुधवार की रात चौक बाजार में बैर-भगनौल का आयोजन किया गया। लोगों ने तमाम भगनौल का गायन किया। जिसमें महिलाएं भी शामिल रही। खोल दे माता खोल भवानी धार मे किवाड़ा, उत्तरायणी कौतिक लगा सरयू किनारा समेत तमाम चांचरी का भी गायन किया गया। सुबह चार बजे तक इस विधा का आयोजन चलता रहा। उसके बाद श्रद्धालुओं ने सरयू में स्नान किया।

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माघी खिचड़ी का आयोजन किया

हिन्दू संगठनों ने सरयू तट पर माघी खिचड़ी का आयोजन किया। मेले में स्नान और पूजा-अर्चना के बाद लोगों ने प्रसाद के रूप में माघी खिचड़ी का सेवन किया। पंडित घनानंद कांडपाल शास्त्री के अनुसार ने बताया कि खिलजी के आक्रमण के दौरान नाथ योगियों के पास खाने के लिए कुछ नहीं था। तब बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और हरी सब्जियों को एक साथ पकाने की सलाह दी थी। इस दिन से खिचड़ी खाने और बनाने का रिवाज चला आ रहा है। खिचड़ी को पौष्टिक आहार के रूप में भी ग्रहण किया जाता है।

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