kargil vijay diwas : चोटी फतह करने के बाद ब्रिगेडियर को उपहार में जवानों ने दिया पाक सेना के नायक का सिर
कारगिल पर विजय पताका फहराने के लिए हमारे देश के शूरवीरों ने जो अदम्य साहस दिखाया वह रोमांचित कर देता है। इस युद्ध में हमारे योद्धा अपने प्राणों की आहूति देने से भी पीछे नहीं हटे।
हल्द्वानी, संदीप मेवाड़ी : कारगिल पर विजय पताका फहराने के लिए हमारे देश के शूरवीरों ने जो अदम्य साहस दिखाया, वह रोमांचित कर देता है। इस युद्ध में हमारे योद्धा अपने प्राणों की आहूति देने से भी पीछे नहीं हटे। पाक सेना को शिकस्त देने के साथ ही हमारे रणबांकुरों ने साथियों की शहादत का बदला भी पाक सैनिकों का सर कलम कर लिया। एक पाक सैनिक का सर कलम कर हमारे जांबाजों ने ट्रे यानि प्लेट में रखा और ब्रिगेडियर के पास लेकर आ गए। इस युद्ध के साक्षी बने दो नागा रेजीमेंट के सेवानिवृत्त आनरेरी कैप्टन सुरेश भट्ट की जुबानी जानिए वीरगाथा की कहानी...।
आनरेरी कैप्टन सुरेश भट्ट बताते हैं की छह जुलाई 1999 की बात है। उस समय हमारी पल्टन मशको वैली में तैनात थी। पाकिस्तानी दुश्मन ऊंची चोटियों पर बैठा था। वह आसानी से हमारी गतिविधियों को देख रहा था। पाक सैनिक लगातार हमारे योद्धाओं, बंकरों व ठिकानों को निशाना बना रहे हैं। हम युद्ध की तैयारी कर रहे हैं। आला अफसरों ने पलटनों के इतिहास, वीर गाथा और युद्ध के जज्बे को देखकर पलटनों का चयन किया। मैं उस समय रैकी एंड सर्विलांस प्लाटून कमांडर की डयूटी कर रहा था। इसलिए मुझे हर समय अपने कमांडिंग अफसर व कंपनी कमांडर के साथ रहना पड़ता था।
छह सुलाई की सुबह ब्रिगेडियर ने स्पेशल तौर पर अपनी ब्रिगेड में अटैच कर दिया। इसके साथ ही प्वाइंट 4875 और ट्वीन बंप फतह करने का टास्क दे दिया। छह जुलाई की शाम पांच बजे हमने मार्च शुरू कर दिया। हमने कमांडिंग अफसर के साथ हमारे जवानों ने प्वाइंट 4875 की चढ़ाई चढ़ना शुरू कर दिया। चढ़ाई चढ़ते समय दुश्मन के गोले हमारे सर के ऊपर से निकल रहे थे। एक चाेटी में पहुंचते ही सामने से दुश्मन से अंधधुंध फायरिंग हम पर शुरू कर दी। हम उसी चोटी पर रुक गए और कारगर जवाब देने के लिए अपना फायर बेस तैयार किया। रात करीब 12 से एक बजे का समय था। आमने-सामने अंधाधुंध गोलियाें के साथ तोप और मोर्टार के गोले चल रहे थे। कमांडिंग अफसर खुद फायरिंग कर रहे थे। दुश्मन कुछ ही दूृरी पर था। उसी समय दुश्मन के तोप के गोलों से हमारे आठ जवान शहीद हो गए।
साथी जवानों की शहादत देख हमारा खून खौल गया और प्राणों की चिंता किए बना कंपनियों ने आगे बढ़ना शुरू कर दिया। हमारे हौसला देख दुश्मनों ने फायरिंग करते हुए पीछे हटना शुरू कर दिया। सुबह करीब चार बजे का समय था। मैंने देखा हमारे दो जवान दुश्मनों पर फायर करते हुए उनके पीछे भाग रहे हैं। मैंने अपने कमांडिंग अफसर को इसकी जानकारी दी। इतने में टीम के एक जवान ने सामने जाकर पाकिस्तानी सेना के नायक का सर धड़ से अलग कर दिया। सुबह होने पर हमने वह सर प्लेट पर रखवाकर ब्रिगेडियर को भिजवा दिया।
पाक बटालियन मुख्यालय पर कर लिया था कब्जा
आनरेरी कैप्टन सुरेश भट्ट बताते हैं की आठ जुलाई की सुबह हमने रैकी की। दुश्मन के भारी हथियार, उनके बटालियन मुख्यालय पर हमने कब्जा कर लिया था। उनके पास इतना राशन था कि हमने एक सप्ताह तक उसी को खाया। पूरा सप्ताह हमने बर्फ के बीच प्वाइंट 4875 पर समय बीताया और दुश्मनों की गतिविधियों पर नजर रखे रहे।
दो नागा को यूनिट साइटेशन से नवाजा गया
आनरेरी कैप्टन ने बताया कि प्वाइंट 4875 को फतह करने पर दो नागा को यूनिट साइटेशन से नवाजा गया था। 9-10 जुलाई को हमें इसकी जानकारी मिली थी। जब हम पाकिस्तानी घुसपैठियों की कब्जा की गयी चोटी पर अपना तिरंगा फहरा चुके थे।
सेवानिवृत्ति के बाद हल्द्वानी आकर बस गया परिवार
सेनि. आनरेरी कैप्टन सुरेश भट्ट मूल रूप से उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के ग्राम भाटकोट, सेराघाट में रहने वाले हैं। वर्ष 2010 में सेवानिवृत्त होने के बाद वह परिवार के साथ हल्द्वानी के पीपलपोखरा नंबर दो, फतेहपुर में बस गए। उनके तीनों बच्चे साफ्टवेयर इंजीनियर हैं। बड़ी बेटी रेनू भट्ट हैदराबार, बड़ा बेटा रितेश भट्ट गुरुग्राम व छोटा बेटा राहुल भट्ट भी हैदराबाद में तैनात है। आनरेरी कैप्टन भट्ट यहां वृद्ध पिता गोविंद बल्लभ भट्ट, पत्नी ममता भट्ट व बहू कृतिका भट्ट के साथ रहते हैं।
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