1971 तक चीन सीमा से लगे मिलम गांव में 20 फीट तक होता था हिमपात, अब महज दो फीट

हिमालय में लगातार कम हो रहा हिमपात चिंता का विषय बना गया है। जनवरी में चमकने वाली चोटियां काली पड़ चुकी हैं। चार दशक पूर्व तक मिलम गांव में बीस फीट बर्फ रहती थी अब जनवरी में मात्र दो से तीन फीट बर्फ बची है।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Sun, 24 Jan 2021 05:39 PM (IST) Updated:Sun, 24 Jan 2021 05:39 PM (IST)
1971 तक चीन सीमा से लगे मिलम गांव में 20 फीट तक होता था हिमपात, अब महज दो फीट
1971 तक चीन सीमा से लगे मिलम गांव में 20 फीट तक होता था हिमपात, आज महज दो फीट

मुनस्यारी, संवाद सूत्र  : ग्लोबल वार्मिंंग हो या ग्लेशियर क्षेत्रों में मानवीय दखल। कारण जो भी हो, हिमालय में लगातार कम हो रहा हिमपात चिंता का विषय बना गया है। जनवरी में चमकने वाली चोटियां काली पड़ चुकी हैं। चार दशक पूर्व तक मिलम गांव में बीस फीट बर्फ रहती थी, लेकिन अब हिमपात अब काफी कम हो गया है। जनवरी में महज दो फीट बर्फ बची है। 

जनवरी गुजरने वाला है। हिमनगरी के नाम से प्रख्यात मुनस्यारी नगर में इस साल हिमपात नहीं हुआ है। एक बार हल्की हिम की फाहें गिरने के अलावा  मुनस्यारी सूखा पड़ा है। मुनस्यारी के बुजुर्ग बताते हैं कि जनवरी में मुनस्यारी से लेकर खलिया तक चार से सात फीट बर्फ रहती थी। इस वर्ष बर्फ का नामोनिशान नहीं है। मिलम निवासी अस्सी वर्षीय कालू राम बताते हैं कि मिलम में दस से पंद्रह फीट तक हिमपात आम बात थी। 39 साल पूर्व जनवरी माह में मिलम गांव में बीस फीट तक हिमपात हुआ था। सारा गांव बर्फ से ढक गया था। ग्रीष्म काल में जब ग्रामीण माइग्रेशन पर गए, तब तक भी घरों के दरवाजों और खिड़कियों तक बर्फ जमी थी। 

वह बताते हैं कि मुनस्यारी में पांच फीट तक बर्फ रहती थी। मुनस्यारी से बलाती, कालामुनि होते तल्ला जोहार जाने वाला मार्ग पूरी तरह बंद हो जाता था। लोग वाया मदकोट, जौलजीबी, ओगला, डीडीहाट थल होते हुए तल्ला जोहार जाते थे। तीन से चार माह तक पैदल मार्ग चलने योग्य नहीं रहता था। यह हिमपात वर्ष 2005 तक पांच फीट हिमपात होता था। पंद्रह वर्षो बाद जनवरी माह तक हिमपात नहीं हुआ है। पंचाचूली की चोटियां काली नजर आ रही है । 

पर्यावरणविद्  धीरेंद्र जोशी ने बताया कि  मौसम में काफी अंतर आ चुका है। इस सीजन तक मुनस्यारी तो दूर पिथौरागढ़ के थलकेदार, ध्वज की चोटियों तक बर्फ से लद जाती थीं। शीतकाल में पांच से छह दिनों तक लगातार बारिश होती थी। अब दो दिन तक बारिश नहीं हो रही है। ऐसे में पर्यावरण को खतरा पैदा हो रहा है। हिमालय के ग्लेशियर वाले क्षेत्रों के लिए सरकार को मानक तय करने चाहिए। इन क्षेत्रो में मानवीय चहलकदमी का असर पड़ रहा है। शीतकाल में कम हिमपात होना भविष्य के लिए गंभीर चेतावनी है।

स्नो स्कीइंग के शौकीन मायूस 

बीते वर्ष मुनस्यारी के पातलथौड़ से खलिया टाप तक स्नो स्कीइंग के लिए बर्फ थी। इन दिनों स्कीइंग के शौकीन स्नो स्कीइंग करते थे। इस वर्ष खलिया टाप में हल्की बर्फ है। कालामुनि से लेकर पातलथौड़ तक बर्फ नजर नहीं आ रही है। बीते वर्ष जनवरी माह में कई बार हिमपात के चलते मार्ग बंद हो गया था। इस वर्ष एक बार भी मार्ग बंद नहीं हुआ है।

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