हरिद्वार महाकुंभ में बिखरी अल्मोड़ा में हाथ से बने गागरों की चमक
आइजी महाकुंभ संजय गुंज्याल की पहल पर अल्मोड़ा के मंद पड़े तांबे के कारोबार को बल मिला है। चंद राजवंश की राजधानी रही अल्मोड़ा में ताम्र कारोबार की नींव सवा चार सौ वर्ष पहले पड़ी थी। 70 से ज्यादा परिवार तांबे से हर किस्म के बर्तन बनाने में माहिर थे।
जागरण संवाददाता, अल्मोड़ा : महाकुंभ के बहाने ही सही, अस्तित्व के संकट से जूझ रही ऐतिहासिक ताम्र नगरी की अहमियत खाकी ने समझी। आधुनिक दौर में मशीनों के बढ़ते प्रभाव से बेजार यहां के कारीगरों ने दिन-रात माहभर मेहनत कर ढाई सौ छोटे-बड़े गागर (पारंपरिक फौले) तैयार किए। इन्हें जिला पुलिस मुख्यालय से हरिद्वार भेज दिया गया है। आइजी (महाकुंभ) संजय सिंह गुंज्याल की इस पहल से अल्मोड़ा के ताम्र उद्योग को नए सिरे से विकसित करने की उम्मीद भी जगी है।
जानकारों की मानें तो चंद राजवंश की राजधानी रही अल्मोड़ा में ताम्र कारोबार की नींव सवा चार सौ वर्ष पहले पड़ी थी। एक दौर था, जब यहां के 70 से ज्यादा परिवार तांबे से हर किस्म के बर्तन बनाने में माहिर थे। डेढ़ सौ से 200 लोग सीधे रोजगार से जुड़े रहे। टम्टा मोहल्ले के कारखानों में बने बर्तनों की उत्तर प्रदेश ही नहीं, दिल्ली मुंबई तक धाक थी। कालांतर में सरकारों व योजनाकारों की बेरुखी से ताम्र नगरी का वजूद संकट में पड़ता गया। मशीन निर्मित बर्तनों से उमदा गुणवत्ता होने के बावजूद ताम्र कारीगर बेहाल हैं।
आइजी संजय गुंज्याल ने दिया था ऑर्डर
आइजी संजय सिंह गुंज्याल ने उपेक्षित पड़ी ताम्र नगरी की अहमियत समझी। महाकुंभ के लिए उन्होंने एसएसपी पंकज भट्ट से खासतौर पर हस्तनिर्मित 250 ताम्र गागर बनवाने को कहा था। मुख्य कारीगर नवीन टम्टा की अगुआई में गागर तैयार कर हरिद्वार भेज दिए गए हैं। इन्हें तैयार करने में मंजू टम्टा, योगेश, निशांत, प्रदीप, मदनमोहन व अरुण टम्टा ने भी हाथ बंटाया।
मीनाक्षी व काजल ने ऐपण से सजाए
गागर यानी फौले व कलश तैयार होने के बाद मीडिया सेल प्रभारी हेमा ऐठानी ने लोकविधा ऐपण में पारंगत एसएसजे परिसर में एमए की छात्राएं मीनाक्षी व काजल को गागरों में डिजाइन का जिम्मा दिया। दोनों ने करीब 10 दिन में सभी गागरों को ऐपणकला से आकर्षक पेंटिंग की।
ताम्र कारीगर नवीन टम्टा ने बताया कि तांबा उद्योग को बढ़ावा मिले तो ताम्र नगरी को उसका खोया वजूद फिर मिल सकता है। आइजी संजय साहब व एसएसपी पंकज भट्ट जी के हम आभारी हैं कि तांबे के कारीगरों को काम दिया। सरकारें प्रोत्साहित करें तो मशीन निर्मित बर्तनों से उमदा गुणवत्ता वाले बर्तन बनाए जा सकते हैं। हाथ की कारीगरी टिकाऊ व मजबूत होती है। उम्मीद है इस ओर नीति नियंताओं का ध्यान जाएगा।
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