जंगल की आग के कारण गौला घाटी में नजर आने वाली तितलियों की सात संरक्षित प्रजातियां नदारद
फॉरेस्ट फायर की घटनाओं ने नैनीताल के ईको सिस्टम को बिगाड़ कर रख दिया है। आग के कारण जहां लाखों की वन संपदा जलकर राख हो रही है वहीं वन्यजीवों और पर्यावरण को भी गंभीर नुकसान पहुंचा है।
भीमताल, जागरण संवाददाता : फॉरेस्ट फायर की घटनाओं ने नैनीताल के ईको सिस्टम को बिगाड़ कर रख दिया है। आग के कारण जहां लाखों की वन संपदा जलकर राख हो रही है, वहीं वन्यजीवों और पर्यावरण को भी गंभीर नुकसान पहुंचा है। इस सीजन में आमतौर गौलाघाटी में नजर आने वाली तितली की सात प्रजातियां नजर नहीं आ रही हैं। आशंका जताई जा रही है कि ये प्रजातिया दावानल में जलकर राख हो गईं।
इस साल उत्तराखंड में दावानल की घटनाएं कहर मचा रही हैं। फारेस्ट फायर की घटनाओं से जंगलात और और वन्यजीवों को खासा नुकसान पहुंचा है। हर सीजन में महेशखान के जंगल से लेकर रानीबाग डोलमार तक गौला घाटी में नजर आने वाली तितली की सात प्रजातियां नजर नहीं आ रही हैं। यह सभी प्रजातियां पहले से ही जीव संरक्षण अधिनियम 1972 में शेडयूल टू में संरक्षित हैं।
ये प्रजातियां नहीं आ रहीं नजर
देश की सबसे बड़ी तितली गोल्डल बर्ड विंग गौला घाटी से गायब है। वहीं किलमोड़े की झाड़ी को खाने वाली ग्रेट ब्लैक वेन, लेसर पुम भी नजर नहीं आ रही है। रानीबाग के पास अरबों की संख्या में मौजूद रहने वाली पंचिन नीलू को विज्ञानी नहीं ढूंढ पाए हैं। झाडिय़ों को खाने वाली तितलियों पर ही आग का प्रभाव नहीं पड़ा है, बल्कि निगाल आदि पर निभर रहने वाली लेथेइसाना और नियोपे पुलाहा और नियोपे यमा भी गौला घाटी से नदारद हैं। तितलियों के गायब होने का मुख्य कारण तितली के जानकार जंगलों के आग को बता रहे हैं।
आग के कारण लुप्त हो रहीं प्रजातियां
निदेशक बटरफ्लाई शोध संस्थान पीटर स्मैटाचैक ने बताया कि जंगलों की आग के कारण वन्यजीवों व पतंगों को नुकसान पहुंच रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार ने जहां पांच वर्ष पहले 260 से अधिक लोंगों को जंगल में आग लगाने के कारण हिरासत में लिया था, वहीं अब कोई सक्रियता नजर नहीं आ रही है। वन विभाग भी शांत बैठा है। यह चिंता का विषय है। तितलियों के गायब होने पर शोध प्रारंभ कर दिया गया है।
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