जज्बे को सलाम : हल्द्वानी में संत ने किया कोरोना संक्रमण से मृतक का अंतिम संस्कार

अंजली वर्मा के 52 वर्षीय पति विमल की तबीयत सोमवार को अधिक बिगड़ गई। लोग मदद को तैयार नहीं हुए तो वह पास में महात्मा सत्यबोधानंद से मिली। महात्मा ने अपने वाहन से तत्काल उन्हें सुशीला तिवारी अस्पताल में भर्ती करवाया। मंगलवार दोपहर में विमल की मौत हो गई।

By Prashant MishraEdited By: Publish:Thu, 06 May 2021 10:53 AM (IST) Updated:Thu, 06 May 2021 10:53 AM (IST)
जज्बे को सलाम : हल्द्वानी में संत ने किया कोरोना संक्रमण से मृतक का अंतिम संस्कार
बुधवार सुबह महात्मा मोर्चरी पहुंते तो अंतिम संस्कार के लिए कोई भी तैयार नहीं हुआ।

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : घर पर अकेला दंपती। पति को खांसी, बुखार हुआ तो अस्पताल जाने के बजाय घर में दुबके रहे। घर पर ही उपचार शुरू किया। चार दिन बाद हालात अधिक बिगड़ी तो कोरोना के भय से कोई भी अस्पताल ले जाने को तैयार न हुआ। बदकिश्मती ने यहीं पीछा नहीं छोड़ा। अस्पताल में भर्ती करने से पहले एंटीजन टेस्ट में मरीज कोरोना पाॅजिटिव निकला। दूसरे दिन मरीज की मौत हो गई। अंतिम संस्कार के लिए कोई आगे नहीं आया। ऐसे में पहले मरीज को अस्पताल भर्ती कराने के लिए आगे आए संत ने मृतक का अंतिम संस्कार कर मानवता की मिसाल कायम की।

कुसुमखेड़ा के उषा रूपक कॉलोनी में रहने वाली अंजली वर्मा के 52 वर्षीय पति विमल की तबीयत सोमवार को अधिक बिगड़ गई। आसपास के लोग मदद को तैयार नहीं हुए तो वह पास में सतपाल महाराज के आश्रम पर महात्मा सत्यबोधानंद से मिली। महात्मा ने अपने वाहन से तत्काल उन्हें सुशीला तिवारी अस्पताल में भर्ती करवाया। जांच में कोरोना की पुष्टि हुई। मंगलवार दोपहर में विमल की मौत हो गई। शव को मोर्चरी में रखा गया। बुधवार सुबह महात्मा मोर्चरी पहुंते तो अंतिम संस्कार के लिए कोई भी तैयार नहीं हुआ।

लखनऊ से आए मृतक के छोटे भाई संजय वर्मा मोर्चरी का नजारा देख घबरा गए। छोटे बच्चों की चिंता में वह मोर्चरी में प्रवेश करने से घबरा रहे थे। तभी महात्मा ने खुद पीपीई किट खरीदी और उसे पहनकर मार्चरी में विमल का शव ढूंढा। प्राइवेट एंबुलेंस से शव को राजपुरा श्मशान घाट ले जाया गया। संस्कार करने वाली टीम ने चिता में आधी लकड़ी रखने के बाद डेड बॉडी व उसके ऊपर लकड़ी रखने से मना कर दिया। महात्मा ने मृतक के छोटे भाई को ढांढस बधाया और खुद आगे बढ़कर डेड बाॅडी को चिता पर रखने के लिए आगे आए और उनका दाह संस्कार कराया। उनकी इस पहल की सराहना हो रही है।

मानवता की सेवा ही संत जीवन का उद्देश्य

16 साल की उम्र में संन्यास लेने वाले महात्मा सत्यबोधानंद ने बताया कि मानवता की सेवा ही संत जीवन का एकमात्र उद्देश्य है। अपनी इसी प्रतिज्ञा को याद करते हुए वह मृतक का अंतिम संस्कार करने आगे आए।

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