त्योहारों में खाली हैं भगवान को गढ़ने वाले कलाकारों के हाथ, ढाई दशक में पहली बार गंभीर संकट से जूझ रहा रूप राम का परिवार
त्योहारों में हर तरफ खुशियों का माहौल है लेकिन 70 वर्षीय रूप राम के परिवार से खुशियां जैसे रूठी हैं। बचपन में मस्त छोटे सदस्यों को छोड़ दें तो परिवार में हर किसी के चेहरे पर चिंता बिखरी है।
गणेश पांडे, हल्द्वानी : त्योहारों में हर तरफ खुशियों का माहौल है, लेकिन 70 वर्षीय रूप राम के परिवार से खुशियां जैसे रूठी हैं। बचपन में मस्त छोटे सदस्यों को छोड़ दें तो परिवार में हर किसी के चेहरे पर चिंता बिखरी है। रामपुर रोड किनारे पानी भरे जगह से बच-बचाकर कोई उनके ठिकाने की तरफ बढ़ता है तो हर आंख उम्मीद से देखने लगती है कि छोटी-मोटी मूर्ति की डिमांड लेकर कोई आया है। मुझे देखकर भी सगन को यही लगा, मगर मेरे बात करने के अंदाज से उसे समझते देर न लगी कि मैं केवल उसे कुरेदने भर के लिए आया हूं।
सगन को बतियाते देख लाठी-छाता हाथ लिए उसके पिता रूप भी करीब आ गए। कहने लगे पीओपी से बने खिलौने-मूर्ति बेचने के सिलसिले में 25 साल पहले राजस्थान से हल्द्वानी आ गए। आठ साल तक नैनीताल रोड, फिर रामपुर रोड किनारे को ठिकाना बनाया। रूप कहते हैं कि गुजरात में रहते हुए यह काम सीखा। शादी के बाद बेटे सगन, अमित व मंगल राठौर अलग होकर काम करने लगे। 15 साल का कैलाश पिता के साथ रहकर काम करता है। रूप कहते हैं कि कोरोना की वजह से मूर्तियों का काम ठप हाे गया। जीवन में इतना कठिन समय पहले नहीं देखा। भगवान की कृपा व हाथ के हुनर ने कभी हाथ फैलाने की नौबत न आने दी..। आगे कुछ कहने की हिम्मत वह नहीं कर पाते।
मौसम ने भी दिया दर्द
रामपुर रोड के बराबर में जहां पिछले सात वर्षों से रूप के परिवार का ठिकाना था, वह जमीन कुछ माह पहले बिक गई। परिवार कुछ आगे की तरफ शिफ्ट कर गया। पिछले दिनों नहर का पानी ओवरफ्लो होने से झोपड़ियों में पानी घुस गया। कोरोना काल के बाद दो मूर्तियों की डिमांड आई थी, पानी भरने से तैयार मूर्तियां खराब होने से नुकसान हो गया।
उम्मीद को जिंदा रखे है सगन
सगन ने कोरोना काल से पहले की तैयार भगवान विश्वकर्मा, गणेशजी की मूर्तियों को अभी भी जगह-जगह से छलनी पाॅलीथिन से ढका है। कई जगह से खंडित व धूप-पानी से धुंधली पड़ी मूर्तियों को इसलिए संभाला है कि डिमांड आने पर रंग-रौगन के बाद कम दाम में इन्हें निकाला जा सके। ताकि नुकसान की कुछ हदतक भरपाई हो सके। जन्माष्टमी, गणेश महोत्सव, विश्वकर्मा जयंती, दीवाली, नवरात्र आदि पर 200 छोटी-बड़ी मूर्ति बिकती थी। डेढ़ साल से सब चौपट है।
इलाज के लिए भी पैसा नहीं
रूप की पत्नी मुंह के कैंसर से जूझ रही हैं। छह माह पहले उनकी बीमारी का पता चला। परिवार के पास बीमारी के इलाज तो दूर दवाओं तक के लिए पैसे नहीं हैं। बीमारी के कारण वह बोल नहीं पातीं। खाना खाने में भी मुश्किल होती है। सगन ने बताया कि पीओपी व पेंट की पुरानी उधारी नहीं चुका पाए हैं।