रानीखेत में नजर आई उड़ने वाली दुर्लभ कश्मीरी गिलहरी, जानिए इसकी खासियत

देश में दुर्लभ स्थिति में पहुंच चुकी स्माल कश्मीरी फ्लांइग स्क्वैरल यानी उडऩ गिलहरी को अल्मोड़ा जिले में वन अनुसंधान की टीम ने कैमरे में कैद किया है। रानीखेत के जंगल में शोध के दौरान जूनियर रिसर्च फैलो (जेआरएफ) ज्योति प्रकाश जोशी की नजर गिलहरी पर पड़ी।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Fri, 20 Aug 2021 09:17 AM (IST) Updated:Fri, 20 Aug 2021 09:17 AM (IST)
रानीखेत में नजर आई उड़ने वाली दुर्लभ कश्मीरी गिलहरी, जानिए इसकी खासियत
रानीखेत में नजर आई उड़ने वाली दुर्लभ कश्मीरी गिलहरी, जानिए इसकी खासियत

गोविंद बिष्ट, हल्द्वानी : देश में दुर्लभ स्थिति में पहुंच चुकी स्माल कश्मीरी फ्लांइग स्क्वैरल यानी उडऩ गिलहरी को अल्मोड़ा जिले में वन अनुसंधान की टीम ने कैमरे में कैद किया है। रानीखेत के जंगल में शोध के दौरान जूनियर रिसर्च फैलो (जेआरएफ) ज्योति प्रकाश जोशी की नजर गिलहरी पर पड़ी। अन्य उडऩ गिलहरी के मुकाबले इसका आकार काफी छोटा है। कश्मीर के अलावा यह शिमला में भी नजर आ चुकी है। 1997 में भी इसे रानीखेत में देखने का दावा किया गया था, लेकिन फोटो प्रमाण नहीं होने के कारण विभाग रिकॉर्ड में शामिल नहीं कर सका।

उत्तराखंड में उडऩ गिलहरी की दो प्रजातियां अब तक ट्रेस हुई थी। इसमें रेड ज्वाइंट स्क्वैरल को इसी साल मुनस्यारी में व बुली स्क्वैरल को उत्तरकाशी में देखा जा चुका है। 2019 में उत्तराखंड वन अनुसंधान ने अनुसंधान सलाहकार समिति से इन गिलहरियों पर रिसर्च को लेकर अनुमति हासिल की थी। उसके बाद से संभावित ठिकानों पर इन्हें तलाशा गया।

रानीखेत की कालिका नर्सरी से एक किमी पहले जंगल में सुरई के पेड़ पर टीम को एक घोसला मिला। जिसके बाद आसपास छह कैमरा ट्रैप लगाए गए थे। 15 अगस्त की रात में इन कैमरों में कुछ फोटो कैद हो गई। जिसके बाद अधिक स्पष्ट फोटो के लिए अगले दिन टीम ने देर रात तक इंतजार किया। घोसले से निकलते ही गिलहरी की कई फोटो क्लिक कर ली गई। पता चला कि यह प्रजाति स्माल कश्मीरी फ्लांइग स्क्वैरल है। यह रेड ज्वाइंट गिलहरी के मुकाबले काफी छोटी होती है।

अनुसंधान के रिसर्च का दायरा बढेगा

मुख्य वन संरक्षक (अनुसंधान) संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि काफी प्रयासों के बाद रानीखेत में कश्मीरी उडऩ गिलहरी का आशियाना मिला है। जिससे वन अनुसंधान के रिसर्च को और मजूबती मिलेगी। आमतौर पर यह जम्मू कश्मीर के ऊंचाई वाले इलाकों में ही मिलती है। कश्मीर पश्चिमी हिमालय का हिस्सा है। जबकि रानीखेत समेत पूरे कुमाऊं को पूर्वी हिमालय का अंतिम छोर माना जाता है।

ज्योति प्रकाश की मेहनत रंग लाई

ट्रैप कैमरा में फोटो क्लीयर नहीं होने के कारण जेआरएफ ज्योति प्रकाश जोशी अगले दिन रात में कैमरा लेकर पेड़ के पास पहुंच गए। घंटों इंतजार के बाद रात 12 से एक बजे के बीच उडऩ गिलहरी एक बार घोंसले से बाहर निकली तो तुरंत फोटो खींच ली गई। ज्योति के मुताबिक स्पीड अधिक व आकार छोटा होने के कारण यह कब घोंसले से बाहर और फिर अंदर चली जाए पता नहीं लग पाता।

जोड़े में रहने वाली गिलहरी

वन अनुसंधान के मुताबिक कश्मीरी उडऩ गिलहरी ने 25 फीट ऊंचाई के बाद पेड़ के छेद में पिरूल आदि से घोसला तैयार किया था। खासियत यह है कि यह जोड़े में रहने वाली प्रजाति है। बच्चे के लिए भोजन लाने के लिए एक बार में एक गिलहरी ही बाहर जाती है। शाकाहारी होने के कारण बीज ही इसकी पसंद हंै।

सर्दी में निष्क्रिय और रात में विचरण

अभी तक रिसर्च से पता चलता है कि कश्मीरी उडऩ गिलहरी नवंबर से फरवरी यानी जाड़े के सीजन में शीत निद्रा की स्थिति में चली जाती है। हालांकि, इसके कारणों को लेकर स्थिति साफ नहीं है। तब रात में यह आधा-एक घंटे के लिए घोंसले से बाहर निकलती है। वैसे भी इन्हें रात्रिचर माना जाता है। दिन में इनका मूवमेंट न के बराबर होता है।

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