उत्‍तराखंड : हल्‍द्वानी के दो बच्‍चों में दुर्लभ बीमारी, देश में इलाज संभव नहीं, विदेश में 16 करोड़ का एक इंजेक्शन

शहर में दुर्लभ बीमारी एसएमए (स्पाइनल मास्क्युलर एट्रोफी) से ग्रस्त दो मरीज मिले हैं। एक मरीज तीन साल की बच्ची है। जबकि दूसरी की उम्र 14 साल है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान नई दिल्ली से इस आनुवंशिक बीमारी की पुष्टि हुई है।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Thu, 28 Oct 2021 08:53 AM (IST) Updated:Thu, 28 Oct 2021 08:53 AM (IST)
उत्‍तराखंड : हल्‍द्वानी के दो बच्‍चों में दुर्लभ बीमारी, देश में इलाज संभव नहीं, विदेश में 16 करोड़ का एक इंजेक्शन
हल्‍द्वानी के दो बच्‍चों में दुर्लभ बीमारी, देश में इलाज संभव नहीं, विदेश में 16 करोड़ का एक इंजेक्शन

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : शहर में दुर्लभ बीमारी एसएमए (स्पाइनल मास्क्युलर एट्रोफी) से ग्रस्त दो मरीज मिले हैं। एक मरीज तीन साल की बच्ची है। जबकि दूसरी की उम्र 14 साल है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान नई दिल्ली से इस आनुवंशिक बीमारी की पुष्टि हुई है। दुनिया में इस बीमारी का इलाज सबसे महंगा है, लेकिन भारत में इसका इलाज भी संभव नहीं है। विदेश में इस बीमारी के लिए प्रचलित एक इंजेक्शन की कीमत करीब 16 करोड़ रुपये है। ऐसे में दोनों मासूमों का इलाज करना संभव नहीं है।

14 साल की किशोरी को एसएमए टाइप थ्री बीमारी है। जबकि तीन साल की बच्ची को टाइप टू बीमारी है। स्वजन इलाज को लेकर हल्द्वानी से दिल्ली तक भटकते रहते हैं। नीलकंठ अस्पताल के वरिष्ठ छाती व श्वांस रोग विशेषज्ञ डा. गौरव सिंघल बताते हैं, वैसे एसएमए का इलाज नहीं है। इस बीमारी में तंत्रिका तंत्र पूरी तरह नष्ट हो जाता है। यह बीमारी चार प्रकार की है। टाइप वन में दो साल से पहले ही बच्चे की मौत हो जाती है।

टाइप टू में कुछ समय तक बच्चा जी लेता है, लेकिन अक्षम होने लगता है। टाइप थ्री में बीमारी डेढ़ साल बाद आती है। बार-बार फेफड़ों में संक्रमण होने लगता है। वेंटीलेटर पर रखने की जरूरत पड़ती है। इसमें बचने की संभावना नहीं रहती है। टाइप फोर में बच्चे सामान्य जिंदगी जी सकते हैं, लेकिन दिक्कतें रहती हैं। डा. सिंघल ने बताया कि भारत में इस समय इस बीमारी के 800 बच्चे हैं।

विदेश की कुछ कपंनियां बनाती हैं दवा

भारत में इस बीमारी का न इलाज है और न दवाइयां बनती हैं। डा. सिंघल बताते हैं कि स्विटजरलैंड की एक कंपनी दवा बनाती है। इसकी कीमत करीब 16 करोड़ बताई गई है। इसमें परिणाम भी 50 फीसद ही हैं। यह जीन थेरेपी पर आधारित है। वहीं कुछ और कंपनियां भी दवाइयां बनाती हैं। इसमें एक कंपनी की दवा की कीमत प्रतिवर्ष एक करोड़ से अधिक है। इसलिए लोगों के लिए यह उपचार संभव नहीं है।

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