Anupama Gulati Murder Case : जघन्य अपराध के आधार पर राजेश गुलाटी की जमानत अर्जी निरस्त

Anupama Gulati Murder Case हाई कोर्ट ने देहरादून के चर्चित अनुपमा गुलाटी हत्याकांड के मामले में आजीवन की सजा काट रहे राजेश गुलाटी के जमानत प्रार्थना पत्र पर सुनवाई की। कोर्ट ने जमानत प्रार्थनापत्र को यह कहकर निरस्त कर दिया कि यह अपने आप मे एक जघन्य अपराध है।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Tue, 27 Jul 2021 01:12 PM (IST) Updated:Tue, 27 Jul 2021 01:12 PM (IST)
Anupama Gulati Murder Case : जघन्य अपराध के आधार पर राजेश गुलाटी की जमानत अर्जी निरस्त
Anupama Gulati Murder Case : जघन्य अपराध के आधार पर राजेश गुलाटी की जमानत अर्जी निरस्त

नैनीताल, जागरण संवाददाता : Anupama Gulati Murder Case : हाई कोर्ट ने देहरादून के चर्चित अनुपमा गुलाटी हत्याकांड के मामले में आजीवन की सजा काट रहे राजेश गुलाटी के जमानत प्रार्थना पत्र पर सुनवाई की। कोर्ट ने उसके जमानत प्रार्थनापत्र को यह कहकर निरस्त कर दिया कि यह अपने आप मे एक जघन्य अपराध है।

मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खण्डपीठ में राजेश की याचिका पर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान उनकी तरफ से कहा गया कि गुलाटी एक सॉफ्टवियर इंजीनियर है पिछले 11 साल से जेल में है । जेल में उनका आचरण बहुत अच्छा पाया गया है उनको जेल से अच्छे आचरण का सर्टिफिकेट भी दिया गया है। इस आचरण के आधार पर उसे जमानत दी जाय। इसका विरोध करते हुए सरकार की तरफ से कहा गया कि इनके खिलाफ निचली अदालत में 42 गवाह पेश हुए थे ।सभी ने इस हत्या को निर्मम हत्या बताया, जो आरोप लगाए गए थे, वे सही पाए गए।

दरअसल 17 अक्टूबर 2010 को राजेश गुलाटी ने पत्नी अनुपमा की निर्मम तरीके से हत्या करने के बाद शव को छुपाने के लिए उसने शव के 72 टुकड़े कर डी फ्रिज में डाल दिया था । 12 दिसम्बर 2010 को अनुपमा का भाई दिल्ली से देहरादून आया तो हत्या का खुलासा हुआ। देहरादून कोर्ट ने राजेश गुलाटी को पहली सितम्बर 2017 को आजीवन कारावास की सजा के साथ 15 लाख रुपए का अर्थदण्ड भी लगाया। जिसमें से 70 हजार राजकीय कोष में जमा करने व शेष राशि उसके बच्चो के बालिग होने तक बैंक में जमा कराने के आदेश दिए थे। कोर्ट ने इस घटना को जघन्य अपराध की श्रेणी में माना। राजेश गुलाटी पेशे से एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। 1999 में लव मैरिज करके शादी की थी। 2017 में राजेश ने इस आदेश को याचिका दायर कर चुनौती दी थी।

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