राजबुंगा किला बयां करेगा चंद शासकों की शौर्य गाथा, राजा सोमचंद ने चम्पावत की सुरक्षा के लिए किया था निर्माण

राजबुंगा किले को पर्यटन की दृष्टि से आकर्षित करने के लिए यहां लाइट एंड साउंड शो के आयोजन का प्रस्ताव भेजा गया है। यह तभी संभव होगा जब यहां संचालित तहसील कार्यालय को शिफ्ट कर दिया जाएगा। फिलहाल यह प्रस्ताव स्वीकृत नहीं हुआ है।

By Prashant MishraEdited By: Publish:Sat, 09 Oct 2021 11:49 AM (IST) Updated:Sat, 09 Oct 2021 05:58 PM (IST)
राजबुंगा किला बयां करेगा चंद शासकों की शौर्य गाथा, राजा सोमचंद ने चम्पावत की सुरक्षा के लिए किया था निर्माण
वर्तमान में राजबुंगा किला देखरेख के अभाव में उपेक्षा का शिकार है।

विनोद चतुर्वेदी, चम्पावत। चंद वंश की पहचान और चम्पावत में उनकी राजधानी होने का प्रबल प्रमाण राजबुंगा किला अब चंद वंश की शौर्य गाथा बयां करेगा। पर्यटन विभाग ने यहां लाइट एंड साउंड शो के आयोजन की योजना तैयार की है। अगर शासन ने स्वीकृति दे दी तो उपेक्षित किले को नई पहचान मिलेगी और पर्यटन को भी नए अवसर प्राप्त होंगे। हालांकि अभी इस कार्यक्रम में वक्त लग सकता है। लाइट एंड साउंड शो तभी आयोजित होगा जब राजबुंगा किले में चल रही तहसील को अन्यत्र शिफ्ट नहीं किया जाता। वर्तमान में राजबुंगा किला देखरेख के अभाव में उपेक्षा का शिकार है। जिससे यहां अपेक्षा के अनुरूप पर्यटकों की आमद भी नहीं हो पा रही है।

चंद वंश की विरासत और चम्पावत के कुमाऊं की राजधानी होने का प्रबल प्रमाण राजबुंगा किले का निर्माण चंद शासक सोमचंद द्वारा कराया गया था। यह किला चंद शासकों की प्रारंभिक राजधानी चम्पावत के होने का भी प्रमाण है। वर्तमान में इस किले पर चम्पावत तहसील का संचालन हो रहा है। इसे संरक्षित करने के लिए न तो पुरातत्व विभाग और न ही प्रशासन की ओर से ठोस पहल की जा रही है। तत्कालीन काली कुमाऊं के सूर्यवशी कत्यूरी राजा ब्रह्मदेव, वीरदेव प्रतिष्ठानपुर झूंसी, इलाहाबाद से चम्पावत आए और चन्दवंशी सोमचन्द से अत्यंत प्रभावित हुए। इस दौरान उन्होंने अपनी एकमात्र पुत्री का विवाह सोमचन्द से कर दिया। साथ ही 15 बीघा जमीन भी दहेज में दी। चम्पावत में सोमचंद ने अपना एक किला बनवाया जिसका नाम राजबुंगा रखा और चंद शासन की स्थापना की। इस किले का रणनीतिक महत्व था। जब भी कभी किसी युद्ध की संभावना होती थी तो सर्वप्रथम राजबुंगा के किले से नक्कारे की आवाज होती और तत्पश्चात चारों ओर से आलों के प्रतिनिधि अपनी सेना, निशान झंडे व रणभेरी के साथ राजबुंगा में आ जाते थे।

एक ऊंचे टीले पर निर्मित यह किला आकार में अंडाकार हैं जो लगभग 4 से 7 मीटर ऊंची मजबूत दीवारों से परिवेष्ठित हैं। इन प्राचीरों को स्थानीय तराशे गए पत्थरों की सहायता से बनाया गया था। दुर्ग की भित्तियों के प्रस्तर खंडों को लोहे की कीलों की सहायता से जो गया था। राजबुंगा किले में सीढ़ी युक्त दो प्रवेश द्वार हैं। इन द्वारों में मेहराबों का भी प्रावधान है। प्रवेशद्वार के काष्ठ कपाट के अवशेष अभी भी देखे जा सकते हैं। इतिहासकार एवं खटीमा कॉलेज के डा. प्रशांत जोशी  ने बताया कि राजबुंगा किले के मुख्य प्रवेश द्वार के पास ही प्रहरियों हेतु कोठरियां निर्मित हैं जो ब्रिटिश काल में नए सिरे से बनाई गई थीं। बताया कि आज भी राजबुङ्गा किले के समीप प्रहरी परिवार रहते हैं।

राजबुङ्गा किले में लालुवापनी के जंगलों से मिट्टी के पाइपों द्वारा शुद्ध पेय जल की आपूर्ति होती थी। इसके अतिरिक्त समीप के विभिन नौलों को भी प्रयोग में लाया जाता था। किले के  समीप ही चंद शासकों के ईष्ट देवता नागनाथ बाबा का मंदिर हैं तथा समीप ही एक पुरानी हाट अथवा बाजार भी हैं। रानियों के प्रयोग में आने वाला रानी का नौला भी राजबुङ्गा के किले के समीप स्थित है। अब पर्यटन विभाग ने यहां पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए लाइट एंड साउंड शो का आयोजन करने का निर्णय लिया है। यह प्रस्ताव अभी स्वीकृत नहीं हुआ है। यह तभी संभव हो पाएगा जब यहां चल रही तहसील को अन्यत्र शिफ्ट किया जाएगा।

किलेदारों को कहा जाता था आलेदार

राजबुंगा किले के चारों ओर किले निर्मित हैं। इन किलों की जिम्मेदारी चार किलेदारों को दी गई थी। इन किलेदारों को आलेदार भी कहा जाता था। किलेदारों में कार्की, तड़ागी, बोरा और चौधरी समुदार के लोग शामिल थे। इतिहास में दर्ज है कि सोमचंद ने राज बुंगा किले के समीप ही द्रोणकोट के स्थानीय रावत कौम के खस राजा को अपने फौजदार कालू तड़ागी की सहायता से परास्त कर आस-पास के सम्पूर्ण क्षेत्र पर कब्जा कर लिया।

राजबुंगा किले में अभी हो रहा तहसील का संचालन

राजबुंगा किले में अभी तहसील कार्यालय का संचालन हो रहा है। तहसील का अभी भी अपना भवन नहीं बन पाया है। तहसील होने के कारण किले के संचालन में भी दिक्कतें आ रही हैं। किले की दीवारें क्षतिग्रस्त होनी शुरू हो गई हैं। पूर्वी और पश्चिमी छोर की दीवारें एकदम टूट चुकी हैं। किले का उचित संरक्षण नहीं किया गया तो आने वाले समय में इसके केवल भग्नावशेष ही रह जाएंगे। किले के रखरखाव की जिम्मेदारी पुरातत्व विभाग की है। लेकिन विभाग की ओर से इसे संरक्षित करने के ठोस प्रयास नहीं किए जा रहे हैं।

विभागाध्यक्ष इतिहास, पीजी कॉलेज खटीमा का कहना है कि डा. प्रशांत जोशी राजबुंगा किला चंद शासकों की धरोहर है। इसी किले के कारण चम्पावत की पहचान भी है। लेकिन संरक्षण एवं देखरेख के अभाव में यह किला बदहाल होता जा रहा है। इसके संरक्षण के लिए पुरातत्व विभाग को विशेष पहल करनी चाहिए। स्थानीय लोगों को भी इसे सहजने के लिए अपनी ओर से प्रयास करने की जरूरत है।

जिला पर्यटन अधिकारी चम्पावत लता बिष्ट का कहना है कि राजबुंगा किले को पर्यटन की दृष्टि से आकर्षित करने के लिए यहां लाइट एंड साउंड शो के आयोजन का प्रस्ताव भेजा गया है। यह तभी संभव होगा जब यहां संचालित तहसील कार्यालय को शिफ्ट कर दिया जाएगा। फिलहाल यह प्रस्ताव स्वीकृत नहीं हुआ है। प्रस्ताव स्वीकृत भी हो जाता है तो इसके लिए तहसील कार्यालय शिफ्ट होने का इंतजार किया जाएगा।

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