नैनीताल की बेटी के शोध का डंका दुनिया में बजा, बताया जलवायु संकट कैसे बर्बाद कर देगा सामाजिक तानेबाने और अर्थव्‍यवस्‍था को

जलवायु परिवर्तन पर वैज्ञानिकों ने शोध निष्कर्ष के आधार पर कहा है कि अनियमित वर्षा पर आधारित कृषि की वजह से राजनीतिक अशांति व अर्थव्यवस्था के अपंग होने का खतरा है।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Mon, 18 Nov 2019 09:39 AM (IST) Updated:Tue, 19 Nov 2019 10:52 AM (IST)
नैनीताल की बेटी के शोध का डंका दुनिया में बजा, बताया जलवायु संकट कैसे बर्बाद कर देगा सामाजिक तानेबाने और अर्थव्‍यवस्‍था को
नैनीताल की बेटी के शोध का डंका दुनिया में बजा, बताया जलवायु संकट कैसे बर्बाद कर देगा सामाजिक तानेबाने और अर्थव्‍यवस्‍था को

नैनीताल, किशोर जोशी : जलवायु परिवर्तन पर वैज्ञानिकों ने शोध निष्कर्ष के आधार पर कहा है कि अनियमित बारिश पर आधारित कृषि के कारण देश को गंभीर राजनीतिक और अर्थव्यवस्था का संकट झेलना पड़ता है। वैज्ञानिकों के अनुसार जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की वजह से 612 से 609 ईसवीं तक इराक के नियो-असीरियर साम्राज्य का पतन हो गया। उत्तरी इराक के प्राचीन शहर की गुफा के भू रसायनिक संकेतों का उपयोग कर उत्तरी मैसापोटामिया पर वर्षा पैटर्न में बदलाव का रिकॉर्ड विकसित किया है। इसके अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण ही इस देश को कई बार आर्थिक और राजनीतिक संकट से गुजरना पड़ा।

प्रोफेसर गायत्री कठायत ने किया शोध

यूरेनियम थोरियम डेटिंग विशेषज्ञ नैनीताल निवासी प्रोफेसर गायत्री कठायत ने स्टेलाग्माइट की विकास परतों पर उच्च सटीक यूरेनियम थोरियम माप के काल चक्र बना जलवायु रिकार्ड एकत्र किया। अध्ययन में पाया कि नव असीरियन राज्य का विस्तार चरण पिछले चार हजार सालों की विसंगति से हुई गीली जलवायु के दो सदियों के अंतराल के दौरान हुआ। सातवीं शताब्दी के प्रारंभिक ईसा पूर्व के दौरान सूखे की अवधि अकाल में परिवर्तित हो गई। राज्य का आर्थिक कोर हमेशा उत्तरी मैसापोटामियां में एक क्षेत्र तक सीमित था, जिसने कृषि के दम पर राजस्व पैदा किया और सैन्य अभियानों का संचालन किया। इस क्षेत्र में दो शताब्दियों तक असामान्य रूप से बारिश हुई और वर्षा ने एक उत्प्रेरक का काम किया। नतीजा यह रहा कि सीमांत इलाकों में शहरी व ग्रामीण बस्तियों में घनी आबादी बस गई। फिर दशकों तक अकाल पड़ा। उत्तरी इराक और सीरिया वही क्षेत्र है, जो एक बार असीरियन कोर था, जो पिछले सौ साल में बार-बार अकाल की चपेट में आया।

जलवायु परिवर्तन से ही बर्बाद हुआ असीरिया

प्रो. गायत्री ने बताया कि 2007-08 में इराक में विनाशकारी सूखा पड़ा, जो पिछले 50 साल में सबसे गंभीर रहा। शोध बताता है कि इस भूमि के गलियारे में जहां बारिश अत्यधिक अनियमित होती थी और वर्षा आधारित खेती का जोखिम अधिक होता है। अनियमित बारिश होने के कारण बार बार फसल बर्बाद होने से असीरिया में राजनीतिक संकट बढ़ गया, जिसका सीधा असर वहां की अर्थव्‍यवस्‍था पड़ा।

बेहद महत्वपूर्ण है रिसर्च

यह शोधपत्र इसलिए महत्वपूर्ण है कि भारत और मध्य पूर्व जैसी घनी आबादी वाले क्षेत्रों में जल संकट विनाशकारी हो सकता है। गायत्री के अनुसार 2017 में शोध पत्र में जलवायु एवं ऐतिहासिक सामाजिक परिवर्तनों के बीच की रूपरेखा बताई गई थी जबकि वर्तमान अध्ययन में मध्य-पूर्व में इसके तथ्यों को समान पाया गया। दोनों अध्ययनों का सबक यह है कि भारत सतत दर से विकसित हो रहा है, पिछले 150 सालों से मानसून सामान्य है मगर भारत या इराक का रिकार्ड यह दर्शाता है कि जलवायु अधिक समय तक भी सामान्य परिस्थिति से हटकर सूखे की दिशा में विचलित हो सकती है। आने वाले समय में यदि भारतीय मानसून की वर्षा कमजोर होगी तो इसका प्रभाव नियो असीरियन से अलग नहीं होगा।

कभी नियो साम्राज्य के नियंत्रण का केंद्र था इराक

प्राचीन मैसापोटोमियां, टाइग्रिस व यूफेट्स नदियों के बीच की जमीन या आधुनिक इराक कभी नियो सामाज्य के नियंत्रण का केंद्र था। अपने समय में 912 से 609 ईसा पूर्व यह सबसे बड़ा व शक्तिशाली साम्राज्य था। दुनिया के तमाम विद्वान भी मानते हैं कि नियो-असीरियन राज्य आर्थिक महाशक्ति था।

गायत्री की ऊंची छलांग

वैश्विक जलवायु वैज्ञानिक प्रो. गायत्री ने भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका, इराक आदि देशों की जलवायु का अध्ययन किया है। अब तक गायत्री के पांच शोधपत्र प्रकाशित हो चुके हैं। गायत्री क्षीयान जियोतांग यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। नैनीताल निवासी पूर्व पालिका कर्मी चंदन कठायत व भाजपा नेत्री तुलसी कठायत की बेटी गायत्री का शोधपत्र साइंस एडवांस में प्रकाशित है।

असीरियन सभ्‍यता जानें इतिहास

मेसोपोटामिया मूल रूप से दो शब्दों से मिलकर बना है-मेसो+पोटामिया। मेसो का अर्थ मध्य (बीच) और पोटामिया का अर्थ नदी है। अर्थात दो नदियोँ के बीच के क्षेत्र को मेसोपोटामिया कहा जाता था। पश्चिमी एशिया में फारस की खाड़ी के उत्तर में स्थित वर्तमान इराक को प्राचीन समय में मेसोपोटामिया कहा जाता था। मेसोपोटामिया की सभ्यता दजला और फरात दो नदियों के मध्य क्षेत्र में जन्म पली और विकसित हुई। इन नदियों के मुहाने पर सुमेरियन बीच में बेबीलोनिया तथा उत्तर में असीरिया सभ्यता का विकास हुआ। इन सभ्यताओं के विषय में यह कहावत प्रचालित है सुमेरिया ने सभ्यता को जन्म दिया बेबीलोनिया ने उसे उत्पत्ति के चरम शिखर तक पहुँचाया और असीरिया ने उसे आत्मसात किया दूसरे शब्दो में सुमेरिया, बेबीलोनिया और असीरिया इन तीनों सभ्यताओं के सम्मिलन से जो सभ्यता विकसित हुई उसे मेसोपोटामिया की सभ्यता कहा गया। मेसोपोटामिया में चार प्रसिद्ध सभ्यताएं हुईं हैं - सुमेरिया, बेबीलोन, असीरिया, कैल्ड्रिया। दो नदियों दजला और फरात के बीच की धरती पर इंसानी सभ्यता के पहले शहर बसे।

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