हिमाचल की तर्ज पर सख्त भू कानून की तैयारी, विपक्ष को मुद्दाविहीन करने की रणनीति

उत्तराखंडियों के बीच इंटरनेट मीडिया में लंबे समय से चल रही सख्त भू कानून की मांग जल्द पूरी हो सकती है। भू कानून को लेकर पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अगुवाई मेें बनी कमेटी की सात दिसंबर को बैठक तय है।

By Prashant MishraEdited By: Publish:Sat, 04 Dec 2021 09:43 AM (IST) Updated:Sat, 04 Dec 2021 09:43 AM (IST)
हिमाचल की तर्ज पर सख्त भू कानून की तैयारी, विपक्ष को मुद्दाविहीन करने की रणनीति
नौ व दस दिसंबर को विधानसभा सत्र में धामी सरकार यह विधेयक ला सकती है।

किशोर जोशी, नैनीताल : देवस्थानम बोर्ड अधिनियम को रद करने की घोषणा के बाद अब राज्य के युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी एक और बड़ा सियासी धमाका करने की तैयारी में है। राज्य समेत प्रवासी उत्तराखंडियों के बीच इंटरनेट मीडिया में लंबे समय से चल रही सख्त भू कानून की मांग जल्द पूरी हो सकती है। भू कानून को लेकर पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अगुवाई मेें बनी कमेटी की सात दिसंबर को बैठक तय है। कमेटी को भू कानून में संशोधन को लेकर 160 से अधिक सुझाव मिले हैं। जिसमें अधिकांश हिमाचल की तर्ज पर सख्त भू कानून की पैरवी की गई है। अटकलें यह भी हैं कि नौ व दस दिसंबर को विधानसभा सत्र में धामी सरकार यह विधेयक ला सकती है।

उत्तराखंड में पड़ोसी राच्य हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर सख्त भू कानून लाने की तैयारी अंतिम चरण में पहुंच गई है। भू कानून को लेकर बनाई गई कमेटी के सदस्य अजेंद्र अजय ने यह संकेत दिए हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सितंबर पहले ही सप्ताह में नैनीताल के नयना देवी मंदिर में दर्शन के उपरांत पत्रकारों से बातचीत में जागरण के सवाल पर साफ  कहा था कि विधानसभा चुनाव से पहले मजबूत भू कानून लाने की कोशिश की जाएगी। सियासी जानकारों के अनुसार युवा मुख्यमंत्री सख्त भू कानून लाकर चुनाव में विपक्ष को पूरी तरह मुद्दाविहीन करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। विपक्षी दल सख्त भू कानून की मांग का पुरजोर समर्थन करने के साथ ही सत्ता में आने पर वादा भी कर रहे हैं। 

इंटरनेट मीडिया में तेज हुई मुहिम

दरअसल, राच्य में सख्त भू कानून को लेकर इंटरनेट मीडिया में लंबे समय से मुहिम चल रही है। राच्य के साथ ही प्रवासी उत्तराखंडी सख्त भू कानून की पैरवी कर रहे हैं। अल्मोड़ा, नैनीताल, मसूरी के साथ ही अन्य पर्यटन स्थलों, वन्य जीव विहार समेत फारेस्ट रिजर्व इलाकों में जमीन की बढ़ती खरीद-फरोख्त ने इस मुहिम को हवा दी। पिछले एक माह से ठंडी पड़ी यह मुहिम एक बार फिर तेज हो गई है। देवस्थानम बोर्ड भंग करने के मुख्यमंत्री के ऐलान के बाद अब भू कानून को लेकर आंदोलन कर रहे संगठन उत्साहित हैं। वह अभी नहीं तो कभी नहीं, वाली रणनीति बना रहे हैं। 10 दिसंबर से तमाम आंदोलनकारी संगठन इस मामले को लेकर पूरे राच्य में एक हजार किलोमीटर की यात्रा निकालने की तैयारी कर रहे हैं। यात्रा का नेतृत्व कभी आम आदमी पार्टी के संस्थापक अब मुखर विरोधी प्रभात कुमार कर रहे हैं। ट्वीटर में आजकल भू कानून को लेकर स्पेस के माध्यम से आंदोलन की रणनीति बन रही है। संगठन त्रिवेंद्र राज में 2019 में संशोधन को खत्म करने की मांग कर रहे हैं। भू कानून को लेकर बनाई कमेटी के सदस्य अजेंद्र अजय के अनुसार कमेटी की बैठक सात दिसंबर को होनी है। सुझावों का अध्ययन किया जा रहा है। 

2018 में किया गया बदलाव
वर्ष 2018 में तत्कालीन सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भू कानून में संशोधन का विधेयक विधानसभा के शीतकालीन सत्र में पारित कराया। चार जून 2019 को मंत्रिमंडल ने फैसला लिया कि राज्य के मैदानी जिलों हरिद्वार, देहरादून, ऊधमसिंह नगर में भूमि की हदबंदी या सीलिंग खत्म कर दी जाएगी। इन जिलों में तय सीमा से अधिक भूमि खरीदी या बेची जा सकेगी। दिसंबर 2018 में विधानसभा सत्र में उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम-1950 में संशोधन विधेयक पारित किया गया। इस संशोधन के तहत विधेयक में धारा-143 क जोड़कर यह प्रविधान किया गया कि औद्योगिक प्रयोजन के लिए भूमिधर स्वयं भूमि बेचे या उससे कोई भूमि क्रय करे तो इस भूमि को अकृषि करवाने के लिए अलग प्रक्रिया नहीं अपनानी पड़ेगी।

औद्योगिक प्रयोजन के लिए खरीदे जाते ही भू उपयोग स्वत: बदला जाएगा और वह अकृषि या गैर कृषि हो जाएगा। इसके साथ ही अधिनियम में धारा-154 दो जोड़ी गई। उत्तर प्रदेश जमींदारी एवं विनाश अधिनियम 1950 के अनुसार बाहरी व्यक्ति 12.5 एकड़ जमीन खरीद सकता है और राज्य में 2002 में बाहरी व्यक्ति के लिए भूमि खरीद की सीमा पांच सौ वर्ग मीटर तय की गई थी, 2007 में खंडूरी सरकार ने इस सीमा को घटाकर ढाई सौ कर दिया। नए संशोधित अधिनियम के बाद पर्वतीय क्षेत्रों में भूमि खरीद की सीमा को औद्योगिक प्रयोजन के लिए पूरी तरह खत्म कर दिया गया और इससे पर्वतीय इलाकों में कृषि भूमि की बेहिसाब खरीद का रास्ता सरकार ने खोल दिया। 

यह है हिमाचल का कानून
पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश में कानूनी प्रविधानों की वजह से कृषि भूमि की खरीद करीब-करीब नामुमकिन है। हिमाचल प्रदेश टिनैंसी एंड लेंड रिफार्म एक्ट 1972 की धारा-118 मेें प्रविधान है कि कोई भी कृषि भूमि किसी गैर कृषि कार्य के लिए नहीं बेची जा सकती। धोखे से यदि बेची तो जांच उपरांत जमीन सरकारी खाते में निहित हो जाएगी। जमीन मकान के लिए खरीदने पर सीमा निर्धारित है। यह भी प्रविधान है कि जिससे जमीन खरीदी जाए, वह जमीन बेचने के कारण भूमिहीन या आवासविहीन नहीं होना चाहिए। 
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