नौकरी छूटी, प्राण छूटे पर नहीं छूटा निगम की संपत्ति से कब्जा, वर्षों से सरकारी आवास कब्जाए हैं कर्मचारी
नगर निगम के कर्मचारी झूठे शपथपत्र देकर सरकारी आवास कब्जा लेते है और फिर कब्जा नहीं छोड़ते। कर्मचारी इस बात की शिकायत लगाते रहे हैं कि सरकारी आवास में रहे कई कर्मचारियों के खुद की भवन हैं। यह खेल रिटायरी तक ही नहीं मौत के बाद तक चलता रहता है।
जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : आय नहीं बढऩे के कारण नगर निगम प्रशासन दो साल बाद भी आधे शहर में सफाई कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं कर पाया है। कई कर्मचारी सरकारी आवास नहीं मिलने की वजह से किराए के कमरों में रहने को मजबूर हैं। दूसरी तरफ ऐसे भी कर्मचारी हैं जो सेवानिवृत्त होने के बाद भी सरकारी आवास का मोह नहीं छोड़ पा रहे। 15 से बीस साल पहले सेवानिवृत्त हो गए कई कर्मचारियों की मौत भी हो चुकी है। सरकारी आवासों पर कर्मचारियों के परिजन मौज काट रहे हैं। नगर निगम के 20 सरकारी आवासों पर रिटायर्ड कर्मचारियों के स्वजन रह रहे हैं।
विवादों में रहे हैं निकाय आवास
नगर निगम के सरकारी आवास को लेकर लगातार विवाद होता रहा है। कई बार कर्मचारी झूठे शपथपत्र देकर सरकारी आवास कब्जा लेते है और फिर कब्जा नहीं छोड़ते। कर्मचारी इस बात की शिकायत लगाते रहे हैं कि सरकारी आवास में रहे कई कर्मचारियों के खुद की भवन हैं।
मालिकाना हक मिलने का भरोसा
आवास से कब्जा नहीं छोडऩे के पीछे मालिकाना हक मिलने का लालच रहता है। दरअसल निगम के सरकारी आवास नजूल भूमि पर बने हैं। यहां रहने वाले कार्मिक कमरे के आसपास निर्माण कराते रहते हैं। बाद में नजूल पर बने आवास को फ्री होल्ड कराकर अपने नाम करा लिया जाता है।
आवास के लिए धरने पर सतेंद्र
गांधीनगर निवासी सतेंद्र पिछले आठ दिनों से धरने पर बैठे हैं। सतेंद्र का आरोप है कि निगम ने उन्हें उनके पैतृक मकान से निकाल दिया है। निगम प्रशासन के दस्तावेज में यह आवास 1963 में सतेंद्र की दादी को आवंटित हुआ था। वह निगम में कार्यरत रहीं। 2002 में रिटायर्ड हुई। 2012 में निधन हो गया। परिवार इसके बाद भी आवास में रहते रहा। पिछले दिनों दूसरे कर्मचारी को कमरा आवंटित हुआ तो सतेंद्र ने धरना शुरू कर दिया। सतेंद्र ने का तर्क है कि आवास उनका पैतृक है। इस संबंध में न्यायालय में वाद भी चल रहा है।