पूर्व कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य पर हमले को लेकर उत्तराखंड में सियासत गर्म, कांग्रेस उठाना चाहेगी पूरा फायदा
पूर्व कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य व उनके बेटे नैनीताल के निवर्तमान विधायक संजीव आर्य पर हुए हमले की घटना को लेकर प्रदेशभर में सियासत तेज होने के आसार हैं। कांग्रेस पार्टी अब पूरे मामले को राजनीति स्तर पर भुनाने का प्रयास कर सकती है।
संवाद सहयोगी, बाजपुर : पूर्व कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य व उनके बेटे नैनीताल के निवर्तमान विधायक संजीव आर्य पर हुए हमले की घटना को लेकर प्रदेशभर में सियासत तेज होने के आसार हैं। कांग्रेस पार्टी अब पूरे मामले को राजनीति स्तर पर भुनाने का प्रयास कर सकती है।
बाजपुर में हुई घटना को लेकर कांग्रेस के बड़े नेता एक-दो दिन में हल्द्वानी पहुंचेंगे और राजनीतिक स्तर पर इसे भुनाने का पूरा प्रयास करेंगे। सूत्रों की मानें तो पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल रविवार को हल्द्वानी पहुंच रहे हैं। वह यशपाल आर्य का हाल-चाल जानेंगे। वहीं पूरी घटना की जानकारी लेने के बाद इसे राजनीतिक स्तर पर भुनाने का प्रयास होगा।
यदि देखा जाए तो कुलविंदर सिंह किंदा काफी समय तक भाजपा में रहे हैं और उन्होंने भगत सिंह कोश्यारी से लेकर अरविंद पांडेय, अजय भट्ट व यशपाल आर्य को भी चुनाव लड़वाया था। वर्तमान समय में वह किसानों की राजनीति कर रहे हैं। उन्होंने आर्य के कांग्रेस में शामिल होने का विरोध करते हुए अक्टूबर में एलान किया था कि यशपाल आर्य को क्षेत्र में घुसने नहीं दिया जाएगा। जरूरत पड़ी तो लाठी-डंडों से भी विरोध करने से पीछे नहीं हटेंगे। इस मामले में दोनों ही तरफ से एक-दूसरे के खिलाफ तहरीर भी दी गई थीं, जिसकी अभी तक जांच चल रही है। इस बीच शनिवार को यह घटना हो गई। पूर्व में दी गई चेतावनी को मुद्दा बनाते हुए कांग्रेसजन जनता के बीच में जाने की तैयारी कर रहे हैं।
अब चुनाव में प्रशासन को रहना होगा सतर्क
शनिवार की घटना को लेकर यदि प्रशासन किसी निर्णायक मोड़ पर नहीं पहुंचा तो आने वाले चुनाव में हिसंक वारदातें होने से इन्कार नहीं किया जा सकता, क्योंकि एक वर्ग द्वारा यह माना जा रहा है कि यशपाल आर्य ने कांग्रेस में आकर उनकी कांग्रेस से विस चुनाव लडऩे की वर्षों की तैयारी में रोड़ा अटका दिया है। उनके समर्थक चाहते हैं कि किसी प्रकार यशपाल आर्य बाजपुर छोड़कर अन्य किसी सीट से चुनाव लड़ें और स्थानीय सीट पर सुनीता टम्टा बाजवा को टिकट मिल जाए। इस बात की मांग कई बार खुले मंचों से भी की जा चुकी है। ऐसे में दोनों गुटों में समय-समय पर संघर्ष होने की संभावनाओं से इन्कार नहीं किया जा सकता है।