पुलिस-पीएससी कर्मियों के स्‍वजनों की अपनों के लिए अपनों से ही लड़ाई

रविवार का दिन पुलिस व पीएससी कर्मियों और उनके स्वजनों के लिए कुछ अलग सा था। सुबह चाय नाश्ता कराने के बाद पत्नी और माताओं ने अपने पति व बेटों को ड्यूटी पर भेजा। फिर महिलाएं भी हाथों में न्याय की मांग वाली तख्तियां लेकर निकल पड़ी।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Tue, 27 Jul 2021 08:26 AM (IST) Updated:Tue, 27 Jul 2021 08:45 AM (IST)
पुलिस-पीएससी कर्मियों के स्‍वजनों की अपनों के लिए अपनों से ही लड़ाई
पुलिस-पीएससी कर्मियों के स्‍वजनों की अपनों के लिए अपनों से ही लड़ाई

हल्‍द्वानी, जागरण संवाददाता : रविवार का दिन पुलिस व पीएससी कर्मियों और उनके स्वजनों के लिए कुछ अलग सा था। सुबह चाय नाश्ता कराने के बाद पत्नी और माताओं ने अपने पति व बेटों को ड्यूटी पर भेजा। फिर महिलाएं भी हाथों में न्याय की मांग वाली तख्तियां लेकर निकल पड़ी। मांग यही थी कि उनके अपनों को भी पुलिस महकमा 4600 ग्रेड पे का भुगतान करे। देहरादून और रुद्रपुर में महिलाएं घरों से बाहर निकल पड़ीं तो महकमे के अधिकारी भी टेंशन में आ गए। दरअसल पुलिस विभाग में हड़ताल प्रतिबंधित है। ऐसे में पुलिस कर्मियों के स्वजन उठ खड़े हुए। विरोध सार्वजनिक हुआ तो सुलह की कोशिशें होने लगीं। अफसरों ने फिर उन्हीं बेटों और पतियों को मनाने के लिए ड्यूटी पर लगा दिया जिनके लिए उनकी मां व पत्नियां आवाज बुलंद कर रही थी। बड़ी अजीब स्थिति रही कि यहां अपनों के लिए लड़ाई में साथ भी अपने थे और खिलाफ भी अपने ही।

फिर भी नहीं पड़ रहा सरकार पर असर

शहरों में जगह-जगह गंदगी के ढेर लगे हैं। गली-मोहल्लों और सड़कों पर बिखरे कूड़े से दुर्गंध उठ रही है। प्रदेश में सफाई कर्मचारियों की हड़ताल को सप्ताह भर हो गया है। मगर सरकार के कानों तक न तो कर्मचारियों की आवाज पहुंची है और न नाक तक बदबू। सिस्टम की आंखें कचरे के ढेर को भी नहीं देख पा रही हैं। यहां तक कि शहरी विकास मंत्री बंशीधर भगत के आवास तक का घेराव हो चुका है। सीएम पुष्कर धामी भी ऊधम सिंह नगर जिले में विरोध झेल गए हैं। ऐसे में विकास के मॉडल की बातों को बेमानी न कहा जाए तो क्या कहें। कोरोना की तीसरी लहर के खतरे के बीच न तो हड़तालियों पर सख्ती का साहस सरकार में अभी तक दिखा और न उन्हें मनाने की सार्थक कोशिश। यही वजह है कि अब यह मामला भी हाई कोर्ट की चौखट तक पहुंच गया है। देखिए कोर्ट आगे क्या तंज सिस्टम पर कसती है...।

ऑल वेदर रोड बन गई मुसीबत

पहाड़ का सफर बेहद सुगम और आसान हो जाएगा। जाम से मुक्ति मिलेगी और दुर्घटनाओं का अंदेशा भी कम होगा। कुछ ऐसा ही सोचा गया था पहाड़ में ऑल वेदर यानी हर मौसम के लिए तैयार चौड़ी सड़क बनाने से पहले। टनकपुर से पिथौरागढ़ के बीच बनकर तैयार हुई सड़क से भी सभी को यही अपेक्षा थी। मगर यहां तो स्थिति उलट हो रही। सड़क चौड़ी करने के लिए काटे गए पहाड़ तभी से दरक रहे हैं। इस वजह से हादसों में घायल होने व मौत के आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं। लोग कहने लगे हैं कि सड़क चौड़ी नहीं थी तब भी हालात इतने बुरे नहीं थे। दरअसल संवेदनशील एवं कमजोर पहाड़ों के कटान ने भी ऐसी विपरीत स्थिति पैदा की है। भू-विज्ञानियों एवं सरकारों के लिए भी नसीहत है कि पर्वतीय इलाकों में विकास के सभी मानकों का सख्ती से पालन भी हो।

मोमबत्ती का इंतजाम और थप्पड़ की गूंज

प्रदेश में गजब की स्थिति है। राजनीतिक दलों में बिजली मुफ्त देने की होड़ मची है। बड़े-बड़े दावे हो रहे हैं और आम आदमी पार्टी तो इन दिनों जनता को मुफ्त बिजली का गारंटी कार्ड भी बांट रही है। दूसरी ओर चुनावी साल में ऊर्जा के तीनों निगमों के कर्मचारी कहने लगे हैं मोमबत्ती का इंतजाम कर लो। कर्मचारियों की मांगें सरकार से हैं जो वर्षों से लंबित हैं। हालात आगे क्या होंगे स्पष्ट होना। दूसरी ओर सत्ताधारी दल के विधायक ने लोहाघाट में दो अधिकारियों को हाईवे खोलने को लेकर हुई कहासुनी में थप्पड़ जड़ दिए। बात बढ़ गई और एनएच के कार्मिकों ने विरोध में उतर काम रोक दिया है। विधायक के खिलाफ तहरीर भी दे दी गई है, हालांकि विधायक ने आरोप खारिज किए हैं। यह दोनों तस्वीरें बता रही हैं कि हालात ठीक नहीं हैं। तंत्र समय रहते जागता दिख नहीं रहा और कार्मिक भी परिस्थिति अपने मुताबिक न होने पर झंडा उठाने को तैयार बैठे हैं।

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