किसी के खाते में तीन माह का वेतन एक साथ पहुंचा तो किसी को तीन माह का वेतन ही नहीं मिला, डिजिटल लेन देन को लेकर हाई कोर्ट सख्‍त

हाई कोर्ट ने राज्य में वित्तीय लेनदेन डिजिटल माध्यम से करने के लिए सरकार अधिकृत कंपनी की वित्तीय अनियमितताओं के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई की।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Sun, 17 Nov 2019 08:38 AM (IST) Updated:Sun, 17 Nov 2019 08:38 AM (IST)
किसी के खाते में तीन माह का वेतन एक साथ पहुंचा तो किसी को तीन माह का वेतन ही नहीं मिला, डिजिटल लेन देन को लेकर हाई कोर्ट सख्‍त
किसी के खाते में तीन माह का वेतन एक साथ पहुंचा तो किसी को तीन माह का वेतन ही नहीं मिला, डिजिटल लेन देन को लेकर हाई कोर्ट सख्‍त

नैनीताल, जेएनएन : हाई कोर्ट में राज्य में वित्तीय लेनदेन डिजिटल माध्यम से करने के लिए सरकार की ओर से अधिकृत कंपनी की वित्तीय अनियमितताओं के खिलाफ दायर याचिका पर शनिवार को सुनवाई ही। मामले में कोर्ट ने मुख्य सचिव को तीन सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही केंद्रीय वित्त मंत्रालय, राज्य वित्त विभाग, पेंशन निदेशालय, अपर सचिव वित्त अरुणेंद्र सिंह चौहान, इंड्स वेब्स सॉल्‍यूशन कंपनी तथा एनआइसी को नोटिस जारी किया है। आरोप है कि कंपनी के पास अनुभव न होने के कारण कर्मचारियों के खातों में वेतन आदि का सही तरीके से भुगतान नहीं हो पा रहा है।

सीमा भट्ट ने दायर की है याचिका

आरटीआइ क्लब देहरादून की अध्यक्ष सीमा भट्ट ने जनहित याचिका दायर कर कहा कि सरकार द्वारा राज्य में वित्तीय प्रबंधन बेहतर करने के लिए इंटीग्रेटेड फाइनेंशियल मैनेजमेंट सॉफ्टवेयर या आइएसएमएस सॉफ्टवेयर संचालन की जिम्मेदारी इंडस वेब्स सॉल्‍यूशन कंपनी को दी गई मगर कंपनी द्वारा नियमों को ताक पर रखकर वित्तीय प्रबंधन में गड़बड़ी की जा रही है। सॉफ्टवेयर की गड़बड़ी की वजह से किसी कर्मचारी को तीन माह का वेतन एक साथ दे दिया तो ऐसे भी कर्मचारी हैं, जिन्हें तीन माह से वेतन नहीं मिला। कतिपय कर्मचारियों के वेतन का पैसा जीपीएफ में चला गया। एक कार्मिक को 14 हजार का भुगतान करना था, मगर कंपनी द्वारा एक करोड़ भुगतान कर दिया। पुलिस विभाग, शिक्षा विभाग, पीएसी व अन्य के अलावा कर्मचारियों द्वारा भी सॉफ्टवेयर की गड़बडिय़ों को लेकर शिकायत की गई है।

कंपनी के पास वित्‍तीय प्रबंधन का अनुभव नहीं

याचिकाकर्ता सीमा भट्ट के अनुसार कंपनी को वित्तीय प्रबंधन का कोई अनुभव नहीं है। उन्‍होंने आरोप लगाया कि कंपनी को सरकारी अधिकारियों का संरक्षण मिला है। यही वजह है कि टेंडर की शर्तों के अनुसार कंपनी को कार्य के लिए कर्मचारी रखने थे मगर सरकारी कर्मचारियों से काम लिया जा रहा है। कंपनी को इंटीग्रेटेड मॉनीटङ्क्षरग की दक्षता हासिल नहीं है।  यह सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग है, लिहाजा कंपनी का टेंडर निरस्त किया जाए। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने मामले में सुनवाई करते हुए मुख्य सचिव को तीन सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं जबकि अन्य पक्षकारों को नोटिस जारी किया है।

यह भी पढ़ें : हाईकोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण का मामला फिर से सरकार के पाले में डाला 

यह भी पढ़ें : धार्मिक व औषधीय गुणों से भरपूर मानी जानी वाली तुलसी देश में सबसे ज्यादा उत्तराखंड में संरक्षित

chat bot
आपका साथी