आइएफएस संजीव को अपना केस खुद लडऩे की अनुमति, हाई कोर्ट ने कहा - मुश्किल लड़ाई लड़ रहे हैं संजीव

अब मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने संजीव को खुद पैरवी करने की अनुमति प्रदान करते हुए अगली तिथि 23 अक्टूबर नियत की है। इस मुद्दे पर बार तथा कानून से पेशे से जुड़े लोगों को आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता भी है।

By Prashant MishraEdited By: Publish:Tue, 28 Sep 2021 10:12 PM (IST) Updated:Wed, 29 Sep 2021 08:57 AM (IST)
आइएफएस संजीव को अपना केस खुद लडऩे की अनुमति, हाई कोर्ट ने कहा - मुश्किल लड़ाई लड़ रहे हैं संजीव
संजीव द्वारा केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव पद पर भर्ती प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिका से जुड़ा है।

जागरण संवाददाता, नैनीताल : उत्तराखंड हाई कोर्ट ने चर्चित आइएफएस संजीव चतुर्वेदी को अपने मामले में खुद पैरवी करने की अनुमति प्रदान कर दी है। यह मामला संजीव द्वारा केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव पद पर भर्ती प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिका से जुड़ा है।

आइएफएस संजीव ने फरवरी 2020 में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) की नैनीताल बेंच में याचिका दायर की थी। दिसंबर 2020 में भारत सरकार की याचिका पर कैट चेयरमैन ने इस मामले की सुनवाई कैट की दिल्ली बेंच को स्थानांतरित कर दी थी। संजीव ने इस स्थानांतरण आदेश को उत्तराखंड हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। जिस पर कोर्ट ने केंद्र सरकार व कैट चेयरमैन से जवाब मांगा था। इस प्रकरण में तब नया मोड़ आया जब 26 अगस्त को हुई सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इस बिंदु पर निर्णय सुरक्षित कर लिया था कि संजीव अपने केस की पैरवी खुद कर सकते हैं या नहीं। अब मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने विस्तृत आदेश में संजीव को इस मामले में खुद पैरवी करने की अनुमति प्रदान करते हुए अगली तिथि 23 अक्टूबर नियत की है।

खंडपीठ ने 13 पेज में दिया निर्णय 

खंडपीठ ने अपने 13 पेज के आदेश में कहा है कि इस केस के रिकार्ड से स्पष्ट है कि संजीव वास्तव में मुश्किल लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्होंने कई मौकों पर व्हीसिल ब्लोअर की भूमिका निभाई है। कोर्ट का स्पष्ट मत है कि संजीव अपने मामले में तथ्य तथा कानूनी प्रविधान दोनों के अनुसार पैरवी करने में पूर्णत: सक्षम हैं। संजीव ने अपने पूरक शपथ पत्र में कोर्ट को बताया था कि किस प्रकार जिन अधिवक्ताओं ने निश्शुल्क उनके केस की पैरवी की थी, उन्हें आपराधिक अवमानना के मामलों में दंडित किया गया या जुर्माना लगाया गया। इस वजह से वह अपने किसी मामले में किसी अधिवक्ता को शामिल कर उसे नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते हैं।

न्यायालय ने टिप्पणी की है कि संजीव का यह विचार है कि उनकी शक्तिशाली व्यक्तियों के खिलाफ इस अकेली लड़ाई में किसी अधिवक्ता को दिक्कत नहीं होनी चाहिए। यह बहुत दु:खद है कि एक याचिकाकर्ता के तौर पर संजीव ने न्यायालय में यह कहा कि उनका किसी बार के किसी सदस्य पर भरोसा नहीं है। यह संजीव की भ्रांति हो सकती है, क्योंकि ईमानदार व मेहनती अधिवक्ताओं की कमी नहीं है। साथ ही इस मुद्दे पर बार तथा कानून से पेशे से जुड़े लोगों को आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता भी है।  

यह था मामला

वर्तमान में आइएफएस संजीव चतुर्वेदी हल्द्वानी में मुख्य वन संरक्षक (अनुसंधान) पद पर तैनात हैं। संजीव ने केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव पद पर भर्ती मामले में कथित अनियमितताओं के मामले को कैट में चुनौती दी थी। उन्होंने केंद्र की ओर 2020 में सीधी भर्ती किए गए संयुक्त सचिवों की नियुक्ति में घपले का आरोप लगाते हुए याचिका दायर की थी। इसका आधार कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय के उन अधिकारियों की फाइल नोटिंग को बनाया था, जिसमें साफ लिखा था कि इनमें से कई नियुक्तियां उन लोगों की हुई हैं, जो प्रकाशित विज्ञापन की मूल अर्हता पूरी नहीं करते। केंद्र ने कुल 21 पदों में से दस पदों पर नियुक्ति की थी। कैट इलाहाबाद बेंच में सुनवाई के दौरान केंद्र ने कैट चेयरमैन दिल्ली के समक्ष इलाहाबाद से याचिका ट्रांसफर करने की याचिका दायर की थी। यह मामला सर्वोच्च न्यायालय भी पहुंचा था। फिर नैनीताल हाई कोर्ट आया है।

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