रानीखेत के कालिका वन अनुसंधान केंद्र में उगाई जा रही औषधीय गुणों वाली वनप्याज
औषधीय गुणों से लबरेज तमाम प्रजातियों ने स्वरोजगार की राह भी दिखाई है। इन्हीं में एक है जंगली प्याज। लंबे शोध व अध्ययन के बाद कालिका वन अनुसंधान केंद्र के शोध कार्मिकों ने बीते वर्ष डेढ़ हेक्टेयर में एक हजार से ज्यादा वनप्याज के बल्ब लगाए
दीप सिंह बोरा, रानीखेत। चौतरफा चुनौतियों से घिरी पर्वतीय खेती, उस पर जंगली जानवरों का सितम। फसल बर्बाद होने से खेती छोड़ रहे मायूस किसान अब कड़वा मगर औषधीय गुणों से भरपूर जंगली प्याज की खेती से आर्थिकी सुधार सकेंगे। कालिका वन अनुसंधान केंद्र में प्रयोग सफल होने के बाद विभागीय स्तर पर ग्रामीणों को वनप्याज की खेती की तकनीक से रूबरू करा उन्हें आय बढ़ाने को प्रेरित किया जाएगा।
वैश्विक महासंकट के इस दौर में वन क्षेत्रों की वनस्पतियों का महत्व भी बढ़ा है। औषधीय गुणों से लबरेज तमाम प्रजातियों ने स्वरोजगार की राह भी दिखाई है। इन्हीं में एक है जंगली प्याज। लंबे शोध व अध्ययन के बाद कालिका वन अनुसंधान केंद्र के शोध कार्मिकों ने बीते वर्ष डेढ़ हेक्टेयर में एक हजार से ज्यादा वनप्याज के बल्ब लगाए थे। लहसुन के आकार वाले ये वल्व परिपक्व पौधे बन चुके हैं। यानि पैदावार अच्छी रही।
ऐसे किया गया प्रयोग
पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र के वन क्षेत्रों में बहुतायत में उगने वाले वन प्याज के बल्ब रानीखेत के कालिका वन अनुसंधान केंद्र के पौधालय में लगाए गए। सभी बल्ब अंकुरित हुए। फिर बेमौसम भी अभिनव प्रयोग किया गया। इसमें भी कामयाबी मिली।
ये हैं औषधीय गुण
विटामिन-सी व बी6, लौहतत्व, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट आदि अहम तत्वों के साथ ही एंटी आक्सीडेंट वन प्याज का बड़ा गुण। साथ ही त्वचारोग, गठिया, घुटने व जोड़ों के दर्द में भी यह कारगर होता है।
वन क्षेत्राधिकारी आरपी जोशी ने बताया कि लहसुन के आकार वाले जंगली प्याज के बल्ब लगाने का सही वक्त नवंबर का है। जनवरी से फरवरी तक फसल तैयार हो जाती है। हमने बेमौसम में भी बल्ब लगाए। यह प्रयोग भी सफल रहा। यह औषधीय गुणों का भंडार है। ग्रामीणों को इसकी खेती के लिए प्रेरित किया जाएगा।