उत्तराखंड में वन्यजीवों के हमले में हर साल औसतन 38 की मौत और 203 लोग हुए घायल

उत्तराखंड में इन दिनों मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं बढ़ गई हैं। सबसे आसान शिकार बन रहे हैं महिलाएं और बच्चे। महिलाएं जहां गांव से सटे जंगल से घास लाने के दौरान आदमखोर का शिकार हो रही हैं वहीं कई बच्चों को तेंदुए घर से उठा ले गए।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Sun, 25 Oct 2020 08:11 AM (IST) Updated:Sun, 25 Oct 2020 08:11 AM (IST)
उत्तराखंड में वन्यजीवों के हमले में हर साल औसतन 38 की मौत और 203 लोग हुए घायल
उत्तराखंड में वन्यजीवों के हमले में हर साल औसतन 38 की मौत और 203 लोग हुए घायल

हल्द्वानी, जेएनएन : उत्तराखंड में इन दिनों मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं बढ़ गई हैं। आए दिन हमले में लोग जान गंवा रहे हैं। सबसे आसान शिकार बन रहे हैं महिलाएं और बच्चे। महिलाएं जहां गांव से सटे जंगल से घास लाने के दौरान आदमखोर का शिकार हो रही हैं, वहीं कई बच्चों को तेंदुए घर से उठा ले गए। नैनीताल जिले के ओखलकांडा ब्लॉक में महज सात दिनों के अंदर तीन महिलाओं को जान गंवानी पड़ी। तीन घटनाओं के बाद जब लोगों में रोष बढ़ा तो तब वन महकमे की नीद टूटी।

मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने को लेकर होने वाली बड़ी-बड़ी प्लानिंग कभी धरातल पर उतरी नहीं। आंकंड़ें बताते हैं कि हर साल उत्तराखंड में औसतन 38 लोग वन्यजीवों का शिकार हो रहे हैं और 203 लोग गंभीर रूप से जख्मी हे रहे हैं। सबसे ज्यादा भुगतना पहाड़ के लोगों को पड़ता है। तेंदुआ खूंखार इसलिए माना गया क्योंकि 70 फीसद से ज्यादा हमले उसके द्वारा हुए हैं।

कुमाऊं में इन दिनों मैदान से लेकर पहाड़ तक वन्यजीवों ने आतंक मचा रखा है। हाथी फसल को रौंद रहे और तेंदुए जान के दुश्मन बन गए। आश्चर्य कि बात यह है कि बढ़ते गुलदारों की कभी सटीक तरीके से गिनती ही नहीं हुई। बस अनुमान लगाया लिया गया कि वो 2500 से ज्यादा होंगे। वन विभाग के आंकड़ों पर निगाह दौड़ाने पर पता चलता है कि साल 2000 से अब तक गुलदार, हाथी, बाघ, भालू, सांप और सुअर ने 764 लेागों की जिदंगी खत्म कर दी। और 4065 लोग इनके हमले में घायल हुए।

13 साल में 203 वन्यजीव आदमखोर

साल 2006 से 2018 के बीच 189 तेंदुए नरभक्षी घोषित किए। लोगों की जान लेने पर 18 बाघ और दो हाथियों को भी आदमखोर श्रेणी में डाला गया। सबसे ज्यादा आदमखोर साल 2018 में 32 घोषित किए गए।

chat bot
आपका साथी