Uttarakhand : नियमावली बनने में लगे चार साल, अब चकबंदी के लिए सर्वे को तैयार नहीं अफसर
चकबंदी अधिनियम व नियमावली बनने के बाद भी राज्य में चकबंदी शुरू नहीं हो सकी। हाईकोर्ट में सरकार की ओर से दाखिल हलफनामे में स्वीकार किया है कि रानीखेत के झालोड़ी गांव के स्वैच्छिक चकबंदी के प्रस्ताव को 2016 में बोर्ड ऑफ रेवेन्यू भेज दिया गया।
नैनीताल, जागरण संवाददता : राज्य में अनिवार्य चकबंदी तो दूर स्वैच्छिक चकबंदी को लेकर ग्रामीणों के प्रस्ताव पर शासन विचार करने को तैयार नहीं है। चकबंदी अधिनियम व नियमावली बनने के बाद भी राज्य में चकबंदी शुरू नहीं हो सकी। हाईकोर्ट में सरकार की ओर से दाखिल हलफनामे में यह स्वीकार किया है कि रानीखेत के झालोड़ी गांव के स्वैच्छिक चकबंदी के प्रस्ताव को 2016 में बोर्ड ऑफ रेवेन्यू भेज दिया गया, लेकिन अब तक गांव का सर्वे तक नहीं हुआ है।
राज्य में कृषि उत्पादन में कमी और पहाड़ पर खेती किसानी के प्रति रुझान कम होने की बड़ी वजह बिखरी हुई जोत भी है। कृषि विशेषज्ञ लंबे समय से राज्य में चकबंदी लागू करने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि यदि चकबंदी नहीं की गई तो पूरा पहाड़ी इलाका अन्न समेत अन्य उत्पादों के मामले में पूरी तरह दूसरों पर निर्भर हो जाएगा।
इस बीच 2016 में रानीखेत के झालोड़ी निवासी केवलानंद तिवारी ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की। उन्होंने कहा कि उनका गांव पूरी तरह स्वैच्छिक चकबंदी के लिए तैयार है लेकिन डिमांड के बाद भी सर्वे नहीं किया जा रहा है। सरकार की ओर से जवाब दाखिल कर बताया गया है कि 2016 में एक्ट बनने के बाद ही यह मामला बोर्ड ऑफ रेवेन्यू को भेजा गया है।
अधिसूचना के बाद आगे नहीं बढ़ी कवायद
राज्य में 28 अगस्त 2020 को चकबंदी एक्ट व नियमावली बनाई गई। जिसके नियम 56 में साफ कहा है राज्य के टिहरी, पौड़ी, नैनीताल, चंपावत व देहरादून के मैदानी इलाकों को छोड़कर पर्वतीय इलाकों में चकबंदी के लिए कार्मिकों की नियुक्ति होने तक जिला स्तर पर कमेटी बनाई है। जिसमें डीएम उपसंचालक या बंदोबस्त अधिकारी, तहसीलदार को चकबंदी अधिकारी के साथ ही राजस्व निरीक्षक व लेखपाल को शामिल किया गया है। हाईकोर्ट में अब इस मामले में सुनवाई 16 दिसंबर को तय है।