पंत विवि में तैयार हो रही मक्के नई प्रजाति, बारिश व सूखे में भी लहलहाएगी फसल, रोग प्रतिरोधक क्षमता होगी अधिक

बारिश हो या फिर सूखा अब मक्के की फसल खराब नहीं होगी। रोग भी न के बराबर लगेंगे और पैदावार भी बढ़ेगी। यह सब संभव होगा मक्के की नई प्रजाति से। जीबी पंत विश्वविद्यालय के विज्ञानी मक्के की जंगली जीन से इसे विकसित करने में जुटे हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Mon, 06 Dec 2021 08:21 AM (IST) Updated:Mon, 06 Dec 2021 08:21 AM (IST)
पंत विवि में तैयार हो रही मक्के नई प्रजाति, बारिश व सूखे में भी लहलहाएगी फसल, रोग प्रतिरोधक क्षमता होगी अधिक
पंत विवि में तैयार हो रही मक्के नई प्रजाति, बारिश व सूखे में भी लहलहाएगी फसल!

अरविंद कुमार सिंह, रुद्रपुर : बारिश हो या फिर सूखा, अब मक्के की फसल खराब नहीं होगी। रोग भी न के बराबर लगेंगे और पैदावार भी बढ़ेगी। यह सब संभव होगा मक्के की नई प्रजाति से। गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय पंतनगर के विज्ञानी मक्के की जंगली जीन से इसे विकसित करने में जुटे हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में पहले साल के परिक्षण में इसके बेहतर परिणाम मिलने से विज्ञानी उत्साहित हैं। दूसरे वर्ष के परीक्षण के परिणाम अप्रैल में आएंगे। इसके बाद इस प्रजाति को नाम देते हुए बाजार में उतारा जाएगा।

देश में चाहे पहाड़ी क्षेत्र हो या मैदानी, कही सूखे की समस्या रहती है तो कहीं जलभराव की। इसका सीधा असर अन्य फसलों की तरह मक्के पर भी पड़ता है। वर्तमान में पंत विवि की प्रजाति पंत संकर मक्कर-पांच व छह की उत्पादन क्षमता करीब 50 क्विंटल प्रति एकड़ है। रोग लगने से करीब 15 से 20 फीसद फसल बर्बाद भी होती है। मक्के की फसल को बारिश व रोग से बचाने के लिए विवि के आनुवंशिकीय एवं पादप प्रजनन विभाग के प्रोफेसर एनके सिंह जुटे हैं।

उन्होंने मक्के की जंगली प्रजातियों के जीन्स में ट्रांसफर का प्रयोग किया है। इस प्रयोग में पौधों में कई शाखाएं निकलीं। जिससे चारे का उत्पादन भी बढ़ेगा। डा. सिंह के मुताबिक जंगली प्रजाति के मक्के बिना किसी के देखभाल के होते हैं। ऐसे में नई प्रजाति में बीमारी की आशंका करीब 80 प्रतिशत कम होगी। मक्का की खेती बेमौसमी धान का विकल्प है और कम खर्च में इससे अधिक आय होती है।

सफल रहा शोध

डा. सिंह के अनुसार मक्के की जंगली प्रजाति जीया मेज को उप प्रजाति पार्वीग्लुमिस के जीन्स में ट्रांसफर किया गया। इसका असर यह दिखा कि मेडीस लीफ ब्लाइट, बैंडेड लीफ, डेथ लीफ व रस्ट आदि रोग नहीं दिखे। जबकि जीया निकाराग्युनसिस जंगली प्रजाति जीन को मक्के की प्रजाति में ट्रांसफर कर बारिश के पानी से होने वाले नुकसान से बचाने में कारगर साबित हुआ है।

रिजल्‍ट के बाद प्रजाति को दिया जाएगा नाम

पंत विवि के आनुवंशिकीय एवं पादप रोग विभाग के प्रोफेसर डा. एनके सिंह ने बताया कि जंगली प्रजातियों के जीन्स को वर्तमान संकर प्रजाति में ट्रांसफर करने का परिणाम सफल रहा है। जब रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी व जलभराव से भी नुकसान नहीं होगा तो निश्चित तौर पर उत्पादन बढ़ेगा और किसानों की आय में इजाफा होगा। अप्रैल में दूसरे परीक्षण का रिजल्ट मिलने के बाद विकसित प्रजाति को नाम दिया जाएगा।

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