राष्ट्रीय धरोहर घोषित अल्मोड़ा का नौला बताएगा कत्यूरकालीन इतिहास, 14वीं सदी में हुआ था निर्माण

त्यूरकाल में सामरिक लिहाज से बेहद अहम स्यूनराकोट की तलहटी पर बने मंदिरनुमा प्राचीन नौले के राष्टï्रीय धरोहर घोषित होने से आने वाली पीढ़ी के लिए अध्ययन स्थली भी बनेगा। 14वीं सदी में निर्मित प्राचीन नौले में भगवान विष्णु के दस अवतारों को स्थापत्यकला के जरिये अलंकृत किया गया है।

By Prashant MishraEdited By: Publish:Tue, 27 Jul 2021 11:55 PM (IST) Updated:Tue, 27 Jul 2021 11:55 PM (IST)
राष्ट्रीय धरोहर घोषित अल्मोड़ा का नौला बताएगा कत्यूरकालीन इतिहास, 14वीं सदी में हुआ था निर्माण
कुमाऊं की चुनिंदा अद्भुत एवं उत्तम स्थापत्यकला का उदाहरण भी है।

दीप बोरा, अल्मोड़ा। कत्यूरकालीन सभ्यता एवं संस्कृति का गवाह स्यूनराकोट किला राष्टï्रीय महत्व वाले विरासत स्थलों की सूची में शामिल हो गया है। कत्यूरकाल में सामरिक लिहाज से बेहद अहम स्यूनराकोट की तलहटी पर बने मंदिरनुमा प्राचीन नौले के राष्टï्रीय धरोहर घोषित होने से आने वाली पीढ़ी के लिए अध्ययन स्थली भी बनेगा। 14वीं सदी में निर्मित प्राचीन नौले में भगवान विष्णु के सभी दस अवतारों को दुर्लभ स्थापत्यकला के जरिये अलंकृत किया गया है। यह कुमाऊं की चुनिंदा अद्भुत एवं उत्तम स्थापत्यकला का उदाहरण भी है। साथ ही जल विज्ञान एवं संरक्षण की मिसाल भी।

संस्कृति मंत्रालय की पहल पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने संरक्षण के मकसद से राष्टï्रीय महत्व के 21 पुरातात्विक स्थलों व स्मारकों का चयन किया है। इनमें अल्मोड़ा जनपद की बिनसर घाटी में कत्यूरकालीन स्यूनराकोट का ऐतिहासिक नौला भी शामिल है। इसे दुर्लभ एवं अद्भुत स्थापत्य कला वाले गुमनाम प्राचीन नौले को बीते वर्ष दैनिक जागरण अपने सबरंग के अंक में जनमानस के बीच लाया था।

ये हैं खासियत

स्थानीय ग्रीन ग्रेनाइट पत्थरों से बने प्राचीन नौले के चारों ओर संधी उपासना की कलाकृतियां उकेरी गई हैं। गर्भगृह व बाहरी भाग में मंदिर जैसी कलाकृतियां तथा भगवान विष्णु के दस अवतारों की आकृतियां इसे और विशिष्टï बनाती हैं। स्यूनराकोट का प्राचीन नौला चारों तरफ से खुला है। पुरातत्वविद चंद्र सिंह चौहान कहते हैं संभवत: नौले की परिक्रमा की परंपरा रही होगी। अलंकृत मुख्य द्वार त्रिद्वार शाखा है।

कुबेर मंदिर समूह भी देश का विरासतीय स्थल

जागेश्वर : स्यूनराकोट के प्राचीन नौले के साथ ही जागेश्वर मंदिर समूह से करीब 50 मीटर दूर पूर्व दिशा में देववृक्षों से घिरी एक और कत्यूरकालीन धार्मिक विरासत यक्षराज भगवान कुबेर का मंदिर भी राष्टï्रीय धरोहर बनने जा रहा। यहां तीन मंदिर समूह हैं, जो सातवीं से 14वीं सदी के बीच निर्मित हैं। प्रधान पुजारी पंडित हेमंत भट्ट के अनुसार कुबेर धन के देवता हैं। धनतेरस व दीपावली पर माता लक्ष्मी एवं श्रीगणेश के साथ कुबेर देव की भी पूजा का विधान है। कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को भगवान कुबेर की विशेष पूजा की परंपरा सदियों से चली आ रही।

कुमाऊं के पुरातत्व प्रभारी चंद्र सिंह चौहान ने बताया कि राष्टï्रीय धरोहर बनने से इसका संरक्षण हो सकेगा। मौलिक स्वरूप बरकरार रहेगा। आने वाली पीढ़ी के लिए यह ऐतिहासिक विरासत सुरक्षित रहेगी। रखरखाव आदि के लिए केंद्र से बजट भी मिलेगा। जागेश्वर मंदिर समूह के पास ही कत्यूरकालीन कुबेर मंदिर को भी संरक्षित रखा जा सकेगा।

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