उत्‍तराखंड बनने के बाद से नैनीताल ज‍िला अदालत ने अब तक छह मामलों सुनाई फांसी की सजा

अलग राज्य बनने के बाद जिला अदालत नैनीताल से अब तक छह गंभीर अपराध के मामलों में फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। इन छह मामलों में चार केसों में अभियोजन की ओर से पैरवी जिला शासकीय अधिवक्ता फौजदारी सुशील कुमार शर्मा ने की है।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Thu, 25 Nov 2021 08:40 AM (IST) Updated:Thu, 25 Nov 2021 08:40 AM (IST)
उत्‍तराखंड बनने के बाद से नैनीताल ज‍िला अदालत ने अब तक छह मामलों सुनाई फांसी की सजा
राज्य बनने के बाद से जिला अदालत से अब तक छह केस में मिली फांसी

जागरण संवाददाता, नैनीताल : अलग राज्य बनने के बाद जिला अदालत नैनीताल से अब तक छह गंभीर अपराध के मामलों में फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। इन छह मामलों में चार केसों में अभियोजन की ओर से पैरवी जिला शासकीय अधिवक्ता फौजदारी सुशील कुमार शर्मा ने की है। इनमें संजना हत्याकांड, जैमती देवी हत्याकांड के साथ ही 2004 में दुराचार व हत्या के दो अलग-अलग केसों के अभियुक्तों को मौत की सजा डीजीसी सुशील कुमार शर्मा ने दिलाई है।

1. नौ मई 2002 को तत्कालीन डीजे पीसी पंत की कोर्ट ने हत्या के मामले में राजेश व नवीन को मृत्युदंड व निशार खान, गुलजार व भूरा को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

3. सात जनवरी 2004 को दुष्कर्म व हत्या मामले में एडीजे जीके शर्मा की ही अदालत ने अभियुक्त आफताब व मुमताज को भी मौत की सजा दी थी।

2. 28 जून 2004 को तत्कालीन एडीजे जीके शर्मा ने दुराचार व हत्या के अभियुक्तों बाबू, आमिर, पवन व अर्जुन

को मिली मौत की सजा।

4. 28 फरवरी 2014 को तत्कालीन जिला एवं सत्र न्यायाधीश मीना तिवारी की कोर्ट ने लालकुआं क्षेत्र के बहुचर्चित संजना हत्याकांड में अभियुक्त दीपक को फांसी की सजा सुनाई थी।

5. 11 मार्च 2016 को पिथौरागढ़ की नन्हीं कली की हल्द्वानी में अपहरण व दुष्कर्म के बाद हत्या मामले में हल्द्वानी की पाक्सो कोर्ट की जज प्रीतू शर्मा ने अभियुक्त अख्तर अली को फांसी की सजा सुनाई थी।

6. 24 नवंबर 2021 में प्रथम अपर जिला सत्र न्यायाधीश प्रीतू शर्मा की अदालत ने मां जैमती देवी के हत्यारे बेटे को भी फांसी की सजा सुनाई।

अभियुक्त के प्रति उदार दृष्टिकोण नहीं अपनाया जा सकता

जिला अदालत नैनीताल ने टिप्‍पणी करते हुए कहा कि अभियुक्त ने बिना किसी गंभीर कारण के न सिर्फ यह वारदात की, बल्कि यह अपराध इतनी क्रूरता से किया, जिसने न केवल न्यायिक बल्कि सामाजिक विवेक को भी झकझोर दिया। इसलिए अभियुक्त के प्रति उदार दृष्टिकोण नहीं अपनाया जा सकता। यह केस दुर्लभ से दुर्लभतम है। इस बिंदु को देखे जाने से साफ है कि अभियुक्त ने अपनी मां की निर्मम हत्या की, जबकि मां का स्थान सामाजिक मान्यता के अनुसार पृथ्वी पर ईश्वर के समान माना जाता है और मां का अपने पुत्र के पालन पोषण में किए गए श्रम का कोई विकल्प नहीं हो सकता।

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