बागेश्वर से लिखी गई रक्तहीन क्रांति कुली बेगार के अंत की गाथा, जानिए इतिहास

कुली बेगार आंदोलन ने न केवल अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिलाई बल्कि अहिंसात्मक आंदोलन कर देश में नई चेतना का प्रसार किया। पहाड़ी कौम के स्वाभिमान के पहले सबसे बड़े आंदोलन को गांधी जी ने रक्तहीन क्रांति कहा और पैदल बागेश्वर की धरती पर कदम रखा।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Wed, 13 Jan 2021 08:36 AM (IST) Updated:Wed, 13 Jan 2021 08:36 AM (IST)
बागेश्वर से लिखी गई रक्तहीन क्रांति कुली बेगार के अंत की गाथा, जानिए इतिहास
बागेश्वर से लिखी गई रक्तहीन क्रांति कुली बेगार के अंत की गाथा, जानिए इतिहास

बागेश्वर, चंद्रशेखर द्विवेदी : कुली बेगार आंदोलन ने न केवल अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिलाई, बल्कि अहिंसात्मक आंदोलन कर देश में नई चेतना का प्रसार किया। पहाड़ी कौम के स्वाभिमान के पहले सबसे बड़े आंदोलन को गांधी जी ने रक्तहीन क्रांति कहा और पैदल बागेश्वर की धरती पर कदम रखा। 14 जनवरी 1921 के ऐतिहासिक दिन बागेश्वर के लोगों ने अंग्रेजों की गुलामी स्वीकार न करने का संकल्प लिया और बेगारी के रजिस्टर सरयू बगड़ में प्रवाहित कर दिया।

यह आजादी के आंदोलन का वह दौर था जब महात्मा गांधी भी विदेशी धरती छोड़ भारत में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अहिंसात्मक आंदोलन कर रहे थे। वह इस आंदोलन से काफी प्रभावित हुए। इस आंदोलन ने देश मे साम्राज्यवादियों के खिलाफ अहिंसात्मक आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार की। आंदोलन की धमक का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि 1929 में महात्मा गांधी आंदोलन की इस धरती को छूने पैदल यहां पहुंचे।

कुली बेगार आंदोलन के 100 साल गुजर जाने का बाद भी इस तरह की राजनीतिक चेतना जगाने वाला आंदोलन फिर नही देखने को मिला। पृथक उत्तराखंड आंदोलन में इसका संक्षिप्त रूप जरूर दिखा था। जिसमें पहाड़ के लोगों ने अपने अस्तित्व के लिए एकजुट होकर संघर्ष किया।

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राम सिंह चौहान ने बताया कि अब आंदोलनों के वह दौर नही दिखता है। सब अपने स्वार्थों के लिए लड़ रहे। पहले देश के लिए संघर्ष होता था। लोग स्वाभिमानी होते थे। कुली बेगार आंदोलन आज भी जीने की प्रेरणा देता है।

40 हजार लोगों ने कहा, कुली बेगार बन्द करो

14 जनवरी 1921 को उत्तरायणी पर्व के अवसर पर कुली बेगार आन्दोलन की शुरुआत हुई। इस आंदोलन में आम आदमी की सहभागिता रही। अलग-अलग गांवों से आए लोगों के हुजूम ने इसे एक विशाल प्रदर्शन में बदल दिया। सरयू और गोमती के संगम (बगड़) के मैदान से इस आंदोलन का उद्घोष हुआ। इस आंदोलन के शुरू होने से पहले ही जिलाधिकारी द्वारा पं. हरगोव‍िंंद पंत, लाला चिरंजीलाल और बद्री दत्त पांडे को नोटिस थमा दिया। इसका कोई असर उन पर नहीं हुआ। उपस्थित जनसमूह ने सबसे पहले बागनाथ मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना की। फिर 40 हजार लोगों का जुलूस सरयू बगड़ की ओर चल पड़ा। जुलूस में सबसे आगे एक झंडा था, जिसमें लिखा था- कुली बेगार बद करो।

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