याचक विभाग के स्तर पर लटके हैं वन अधिनियम के 400 से अधिक मामले

वन अधिनियम 1980 के अंतर्गत लटके विकास के कार्यों की वजह अक्सर वन विभाग को माना जाता है। मगर हकीकत यह है कि याचका विभागों की पत्रावलियों को तैयार करने में हीलाहवाली इसके लिए कहीं अधिक जिम्मेदार है।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Fri, 05 Mar 2021 12:00 PM (IST) Updated:Fri, 05 Mar 2021 12:00 PM (IST)
याचक विभाग के स्तर पर लटके हैं वन अधिनियम के 400 से अधिक मामले
याचक विभाग के स्तर पर लटके हैं वन अधिनियम के 400 से अधिक मामले

नैनीताल, जागरण संवाददाता : वन अधिनियम 1980 के अंतर्गत लटके विकास के कार्यों की वजह अक्सर वन विभाग को माना जाता है। मगर हकीकत यह है कि याचका विभागों की पत्रावलियों को तैयार करने में हीलाहवाली इसके लिए कहीं अधिक जिम्मेदार है। वन विभाग की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। जिले में वन अधिनियम के पेंच की वजह से 400 से अधिक बिजली, सड़क, सिंचाई, पेयजल, नहर के मामले अभी क्लियरेंस के लिए पेंडिंग में हैं।

प्रभागीय वनाधिकारी नैनीताल की ओर से दक्षिणी कुमाऊं वन संरक्षक को भेजी रिपोर्ट में बताया है कि भारत सरकार ने जिले की सड़क से संबंधित 137, पेयजल के 128, सिंचाई के 11, विद्युत के 14 और 43 अन्य मामलों की मंजूरी मिल चुकी है। इन योजनाओं में अब वन भूमि हस्तांतरण की सिर्फ औपचारिकता ही बाकी है।

रिपोर्ट के अनुसार वन अधिनियम से संबंधित मामले भारत सरकार स्तर पर दस, याचक विभाग के अंतर्गत 39 मामले जबकि वन विभाग के नोडल अधिकारी स्तर पर 29 मामले लंबित हैं। जिले में वन विभाग के स्तर पर एक भी प्रकरण लंबित नहीं है। जिस विभाग को विकास कार्य के लिए वन भूमि की आवश्यकता होती है, उसे याचक बनकर पत्रावली बनाकर वन विभाग के नोडल अधिकारी के समक्ष रखना होगा।

औपचारिकता पूरी करने के लिए दिल्ली देहरादून की दौड़ नहीं लगानी पड़ती बल्कि कार्रवाई ऑनलाइन की जाती है। जिले में वन अधिनियम की वजह से  ओखलकांडा, बेतालघाट, कोटाबाग पर्वतीय, भीमताल के तमाम महत्वपूर्ण काम लटके हैं। जिलाधिकारी धीराज गर्ब्याल का कहना है कि याचक विभाग के साथ ही अन्य को भी इसमें सक्रियता दिखानी होगी। वन अधिनियम से बाधित मामलों की जल्द समीक्षा बैठक होगी।

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